Wheat Varieties: पंजाब सरकार ने नई गेहूं किस्मों पर उठाया सवाल, कहा- “इनमें जरूरत से ज्यादा केमिकल खाद की मांग”

Wheat Varieties: पंजाब सरकार ने नई गेहूं किस्मों पर उठाया सवाल, कहा- “इनमें जरूरत से ज्यादा केमिकल खाद की मांग”

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) की आपत्ति के बाद राज्य सरकार ने ICAR से मांगा स्पष्टीकरण. छह नई गेहूं किस्मों को मंजूरी पर रोक की संभावना, क्योंकि इनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की अधिक जरूरत बताई गई है.

गेहूं की उन्नत किस्म और उसकी खासियतगेहूं की उन्नत किस्म और उसकी खासियत
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Nov 13, 2025,
  • Updated Nov 13, 2025, 11:47 AM IST

पंजाब सरकार ने कुछ गेहूं की किस्मों को जारी करने की इजाजत देने पर आईसीएआर (ICAR) के सामने ऐतराज जताया है. आलू की इन किस्मों में अधिक खादों की जरूरत होती है. सरकार का यह ऐतराज पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) की ओर से आलू की इन किस्मों पर अपनी आपत्ति जताने के बाद आई है. बताया जा रहा है कि राज्य सरकार ने केमिकल खादों के उपयोग को रोकने के लिए पंजाब में इन किस्मों को इजाजत नहीं देने का फैसला किया है.

पिछले हफ्ते भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक को लिखे एक पत्र में, पंजाब राज्य बीज निगम (पनसीड) की प्रबंध निदेशक शैलेंद्र कौर ने कहा कि उन्हें इस मुद्दे पर "तत्काल गाइडेंस और स्पष्टीकरण" की जरूरत है क्योंकि किसानों को जल्द से जल्द उपयुक्त किस्में उपलब्ध कराने की जरूरत है.

सवालों में ये 6 गेहूं किस्में

अक्टूबर में, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक अजमेर सिंह धत्त ने राज्य सरकार को छह गेहूं किस्मों - डीबीडब्ल्यू 303, डीबीडब्ल्यू 327, डीबीडब्ल्यू 332, डीबीडब्ल्यू 370, डीबीडब्ल्यू 371 और डीबीडब्ल्यू 372 - के बारे में बताया था. इन किस्मो को केंद्र सरकार ने कई टेस्ट और ट्रायल के बाद बुवाई के लिए अधिसूचित किया है. इसके अलावा, उन्होंने बताया कि इन किस्मों में अन्य गेहूं किस्मों की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का प्रयोग किया गया है.

उदाहरण के लिए, यदि कोई किसान यूरिया/एनपीके/डीएपी के 2 बैग का उपयोग कर रहा है, तो उसे इन किस्मों के लिए 3 बैग का उपयोग करना होगा. इसके अलावा, इन किस्मों में अच्छी उपज पाने के लिए गोबर की खाद (एफवाईएम) के साथ-साथ ग्रोथ रेगुलेटर (लेहोसिन) भी डाला गया है.

धत्त ने कहा, "इन किस्मों को सामान्य खाद मात्रा के लिए अधिसूचित नहीं किया गया है. पीएयू ने हमेशा खादों, कवकनाशी और ग्रोथ रेगुलेटर के बहुत अधिक उपयोग के पक्ष में नहीं, बल्कि उचित मात्रा में खादों के उपयोग की वकालत की है. इसलिए, पीएयू पंजाब के किसानों के खेतों में इन किस्मों की खेती की सिफारिश नहीं करता है."

ICAR की चौखट पर मामला 

इस पत्र का हवाला देते हुए, पनसीड की कौर ने आईसीएआर के महानिदेशक एम एल जाट को सूचित किया है कि चूंकि पनसीड को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) योजना के तहत प्रमाणित गेहूं के बीज राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के तहत बाढ़ प्रभावित किसानों को रियायती दरों पर और मुफ्त में उपलब्ध कराने हैं, इसलिए करनाल स्थित भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान (आईआईडब्ल्यूबीआर) में बने इन छह किस्मों के संबंध में स्पष्टीकरण की जरूरत है.

दूसरी ओर, आईसीएआर के सूत्रों ने बताया कि इन किस्मों की उपज 7.5 टन से 8 टन प्रति हेक्टेयर तक होती है, जबकि अन्य किस्मों से औसतन 5-6 टन उपज मिलती है. चूंकि इन छह किस्मों को जल्दी बुवाई के लिए सिफारिश की गई है, इसलिए खादों की कुछ अतिरिक्त खुराक की जरूरत होगी. सूत्रों ने अधिक मात्रा में खादों के इस्तेमाल पर सहमति जताते हुए 'बिजनेसलाइन' से कहा.

धान की जल्दी कटाई से बढ़ी बीज की मांग

“यह किसानों को तय करना है और अगर वे अधिक उपज चाहते हैं, तो उन्हें इसकी अनुमति दी जानी चाहिए. इस साल धान की कटाई सामान्य से पहले होने के कारण मांग बढ़ गई है. अब तक धान की लगभग 35 लाख हेक्टेयर भूमि में से 93 प्रतिशत जमीन गेहूं की बुवाई के लिए खाली हो चुकी है." सूत्र ने कहा.

आईसीएआर के सूत्रों ने यह भी बताया कि पीएयू के बनाए पीबीडब्ल्यू 872 नामक गेहूं की एक किस्म है, जिसके गुण डीडब्ल्यूआर सीरीज के आलू से मिलते हैं और इसका टेस्ट भी खाद की अधिक मात्रा में किया गया है. सूत्रों ने बताया कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में तैयार इसी प्रकार की एक और गेहूं की किस्म भी खेती में है.

पीबीडब्ल्यू 872 एक उच्च उपज देने वाली गेहूं की किस्म है जो भूरे रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखती है और चपाती बनाने के लिए अच्छी है. इसे पकने में लगभग 152 दिन लगते हैं और इसकी उपज क्षमता 9 टन प्रति हेक्टेयर से अधिक है.

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