विदर्भ के किसानों की बदहाली: सोयाबीन का दाम आधा, मेहनत बेकार- "कर्ज नहीं छुड़ा पाए, सोना भी जाएगा"

विदर्भ के किसानों की बदहाली: सोयाबीन का दाम आधा, मेहनत बेकार- "कर्ज नहीं छुड़ा पाए, सोना भी जाएगा"

महाराष्ट्र के वाशिम जिले की उपज मंडियों में किसान बारिश से बची हुई सोयाबीन बेचने पहुंचे. 3 से 4 हजार रुपये प्रति क्विंटल के भाव से फसल बिक रही है, लेकिन लागत भी नहीं निकल पा रही. किसानों ने सरकार से कहा — "अगर सही दाम मिल जाए तो कर्ज माफी की जरूरत ही नहीं पड़े."

soybean farmersoybean farmer
ज़का खान
  • Washim,
  • Nov 06, 2025,
  • Updated Nov 06, 2025, 1:33 PM IST

महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में इस बार मूसलाधार बारिश के बाद किसानों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं. वाशिम जिले के कारंजा उपज मंडी में इन दिनों किसानों की भीड़ लगी हुई है, जहां वे अपनी बची-खुची सोयाबीन की फसल बेचने पहुंचे हैं. खेतों में नुकसान झेल चुके किसानों को अब बाजार में भी औने-पौने दाम मिल रहे हैं.

मंडी में जगह-जगह सैकड़ों क्विंटल सोयाबीन के ढेर दिखाई दे रहे हैं. व्यापारियों ने किसानों की मेहनत की फसल के बदले 3,000 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल का दाम दिया है. लेकिन किसान कह रहे हैं कि इस रकम से तो खेती की लागत भी पूरी नहीं हो रही.

"डेढ़ लाख का खर्च, सिर्फ 70 हजार मिले"

एक किसान ने 'आजतक' से बातचीत में कहा, “मेरी सोयाबीन की बुआई पर डेढ़ लाख रुपये खर्च हुए थे. अब जो फसल बची थी, उसे बेचने आया हूं. बदले में सिर्फ 70 हजार रुपये मिलेंगे. बीवी के गहने गिरवी रखकर कर्ज लिया था — अब इन पैसों में वह भी नहीं छुड़ा पाऊंगा.”

उसने आगे कहा कि अगर गेहूं की अगली फसल खराब हुई तो घर का सोना चला जाएगा. 

"नेफेड केंद्र पर दाम ठीक, लेकिन भुगतान देर से"

जब किसानों से पूछा गया कि वे अपनी फसल सरकारी नेफेड केंद्रों पर क्यों नहीं बेचते, तो जवाब मिला —“वहां दाम ठीक मिलते हैं, लेकिन पैसे आने में बहुत समय लगता है. किसान को तत्काल पैसे चाहिए ताकि वह अगली फसल की तैयारी कर सके.”

बच्चू कडू के आंदोलन और सरकार का वादा

हाल ही में प्रहार जनशक्ति पार्टी प्रमुख बच्चू कडू के नेतृत्व में किसानों के कर्ज माफी आंदोलन के बाद सरकार ने घोषणा की थी कि जून 2026 तक कर्ज माफी दी जाएगी. लेकिन किसानों का कहना है कि यह सिर्फ आश्वासन है, कोई सरकारी आदेश (GR) नहीं निकला.

एक किसान ने कहा, “बच्चू कडू ही एक ऐसे विधायक हैं जो किसानों के हक की बात करते हैं. लेकिन बाकी नेताओं के शरीर से अगर कांटे भी निकालो, तो खून की जगह पानी निकलेगा.”

"उचित दाम मिले तो कर्ज माफी की जरूरत नहीं"

कई किसानों ने कहा कि अगर फसलों को उचित बाजार मूल्य (फेयर प्राइस) मिल जाए, तो उन्हें न तो कर्ज की जरूरत पड़ेगी, न ही माफी की. एक किसान ने कहा, “सरकार बड़ी-बड़ी कंपनियों का कर्ज बिना आंदोलन के माफ कर देती है, लेकिन किसानों को सड़कों पर उतरना पड़ता है. हमें भी उतनी ही संवेदना चाहिए.”

विदर्भ के किसानों की हालत बताती है कि कर्ज माफी से ज्यादा जरूरी है फसल का उचित दाम और भुगतान की समयबद्ध व्यवस्था. मूसलाधार बारिश, बाजार की गिरती कीमतें और भुगतान में देरी — इन तीनों ने मिलकर किसानों की कमर तोड़ दी है. अब सवाल यह है कि सरकार के “कर्जमुक्त किसान” के वादे कब हकीकत में बदलेंगे.

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