माछ, पान और मखान मिथिला की पहचान है. अब मखाना के कारण मिथिला की पहचान देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी होने वाली है. इसके पीछे का कारण है मिथिला मखाना को GI टैग मिलना. यहां बताना जरूरी है कि मखाना की खेती करना हर किसी के बस की बात नहीं है. यह खेती ज्यादातर साहनी समाज के लोग करते हैं और इस काम में वे एक्पर्ट होते हैं. यू कहें कि पूर्वजों के समय से मखाना की खेती करते रहने के कारण उन्हें इसका पूरा अनुभव होता है. यह खेती पानी के अंदर की जाती है. कांटे भरे मखाने की खेती पूरी होने के बाद पानी से मखाने के काले गोटे निकाले जाते हैं. फिर उसे कड़ी धूप में सुखाया जाता है. घर की महिला चूल्हे पर गर्म कड़ाही में काले दाने को कुछ देर गर्म करती है. जैसे ही मखाने का यह दाना गर्म होता है, पास बैठे घर के पुरुष इन गर्म दानों को पीट-पीट कर उससे मखाना निकालने का काम शुरू कर देते हैं.
अब इसी मखाने को जीआई टैग मिल गया है. केंद्र सरकार और राज्य सरकार की अलग-अलग स्कीम से मखाना उत्पादन में लगे न सिर्फ किसान को फायदा मिल रहा है बल्कि इसका फायदा मखाना कारोबार से जुड़े व्यापारी को भी मिल रहा है. मिथिला मखाना को GI टैग मिलने के करीब एक साल की भीतर दरभंगा मखाना अनुसंधान केंद्र को भी राष्ट्रीय स्तर का दर्ज़ा मिलने से लोगों में खुशी की लहर है. साथ ही मखाना की खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार भी अलग-अलग तरह की स्कीम के जरिये किसानों को मदद करती है.
मिथिला मखाना को GI टैग मिलने और दरभंगा मखाना अनुसंधान को राष्ट्रीय स्तर का दर्ज़ा मिलने का फायदा किसानों को साफ़ दिखाई देता है. किसानों को लगता है कि आने वाले समय में न सिर्फ मिथिला मखाना को पूरी दुनिया में पहचान मिलेगी बल्कि इस व्यापार में कई असीम संभावनाएं दिखने लगी हैं. इसके अलावा केंद्र सरकार और राज्य सरकार के फायदे वाली स्कीम अलग ही आकर्षित कर रही हैं. MBA मखाना वाले इंजीनियर श्रवण कुमार की मानें तो स्कीमों की वजह से अब मिथिला के कई जिलों में लोग मखाने की खेती पहले से ज्यादा करने लगे हैं. श्रवण कुमार खुद भी अब जनक फ़ूड की जगह सुपर फ़ूड मखाना को अलग तरह से देश भर के लोगों की थाली में परोस रहे हैं. इसके लिए उन्होंने कई फ्लेवर तैयार किए हैं. आनेवाले समय में जल्द ही MBA मखाना वाला रेस्टोरेंट खोला जाएगा जहां सिर्फ मखाना के बने व्यंजन ही मिलेंगे.
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मखायो कंपनी के निदेशक भुवन सरावगी ने बताया कि किसी भी प्रोडक्ट को GI टैग उसके इलाके को दर्शाता है. मिथिला मखाना को GI टैग मिलने से अब दुनिया भर के लोगों को यह पता चल जाएगा की मखाना मिथिला का प्रोडक्ट है. लोग इससे जुड़े किसी भी चीज़ के लिए सीधे मिथिला आएंगे. इससे यहां के किसान और मखाना के व्यापार करने वाले लोगों को फायदा मिलेगा. उन्होंने माना कि अभी वे देश के अलग-अलग कोने के अलावा पड़ोसी देश नेपाल में ही मखाना भेज रहे थे. अब वे कई देशों में मिथिला मखाना की सप्लाई करने जा रहे हैं.
MBA मखाना वाले इंजीनियर श्रवण कुमार कहते हैं कि उनके काम को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री ने देखा और सराहा है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो रेस्टोरेंट खोलने की बात कही. उन्होंने यह भी बताया कि पति-पत्नी दोनों ने अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़ कर फुड इंजीनियरों की एक टीम बनाई है जो मखाना के अलग-अलग अलग सेक्टर में काम कर रही है.
मखाना की खेती करने वाले किसान रमेश सहनी ने बताया कि उनका पूरा परिवार इसी काम में लगा है. यह काम उनके पूर्वज भी किया करते थे और इसी की कमाई से पूरा परिवार चलता है. साल के तकरीबन छह माह तक यह काम चलता है और करीब दो से तीन लाख रुपये तक परिवार का एक सदस्य पैसा कमा लेता है. सहनी कहते हैं कि जीआई टैग मिलने से उनके मखाना को फायदा होगा और उनकी आमदनी भी बढ़ेगी. उन्होंने खुशी जताते हुए कहा कि मखाने की मांग बढ़ेगी तो काम भी बढ़ेगा. काम बढेगा तो कमाई भी बढ़ेगी.
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वही किसान जूही देवी ने बताया कि वे बचपन से ही परिवार वालों के साथ यह काम कर रही हैं. जब शादी के बाद ससुराल आई तब करीब दस वर्षों से वे मखाना के काम में लगी हैं. इसी की कमाई से पूरा परिवार चलता है.(प्रहलाद कुमार की रिपोर्ट)