तिवारी पिछले महीने एमपी के सूचना आयुक्त के पद से रिटायर होने के बाद अब प्रगतिशील किसान बन गए हैं. वह वैज्ञानिक पद्धति से खेती कर रहे हैं. उन्होंने विदिशा जिले में अपने पैतृक गांव पलीता को अब अपनी कर्मभूमि बनाया है. तिवारी ने Israel Technique पर आधारित अमरूद की खेती का सफल मॉडल बनाया है. इस मॉडल के जरिए वह इलाके के किसानों को कम संसाधनों में अधिक मुनाफा देने वाली Horticulture Farming अपनाने के लिए प्रोरित कर रहे हैं. साथ ही वह नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने का मौका देने वाले Reverse Migration के प्रति जागरुक भी कर रहे हैं.
तिवारी ने 'किसान तक' को बताया कि उन्होंने 30 साल तक महानगरों में बतौर लेखक और पत्रकार के रूप में नौकरी करने के बाद गांव का रुख किया. उन्होंने बताया कि गांव में उन्होंने 12 एकड़ खेत पर वीएनआर थाई अमरूद का बाग लगाया है. वैसे तो भोपाल, विदिशा और रायसेन जिलों में किसान गेहूं और धान की पारंपरिक खेती करते है. इस इलाके में बागवानी खेती का चलन बिल्कुल नहीं है. उन्होंने बताया कि बागवानी खेती को अपनाने की प्रेरणा उन्हें मां से मिली.
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तिवारी ने इसके पीछे की कहानी साझा करते हुए बताया कि दो दशक पहले उनके पिता ने खेत में लगे महुआ के एक पुराने पेड़ को कटवा दिया था. इससे दुखी होकर उनकी मां ने एक पेड़ काटने की भरपाई के तौर पर 3 एकड़ में आम का बाग लगाया था. उन्होंने बताया कि आम के बाग का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए उन्होंने अपनी दिवंगत मां की याद में अमरूद का बाग लगा दिया.
तिवारी ने बताया कि खबरों की दुनिया से खेत का रुख करने का फैसला उन्होंने कोरोना काल में कर लिया था. उसी समय खेत पर अमरूद का बाग लगाने के लिए कम संसाधनों में खेती करने वाले तकनीकी उपकरण जुटाने और फार्म की डिजायनिंग का काम कर लिया गया था. उन्होंने बताया 3 साल में सिंचाई के लिए ड्रिप तकनीक के अलावा अन्य जरूरी उपकरण जुटाने के बाद 2021 में छत्तीसगढ़ में रायपुर से एक्पोर्ट क्वालिटी के वीएनआर अमरूद की पौध मंगाकर रोप दिया गया था. महज दो साल में अमरूद की पहली फसल ली गई है.
उन्होंने बताया कि इजरायल की तकनीक को अमल में लाते हुए अमरूद का पेड़ बनाने के बजाए उसे बेल का रूप दिया गया है. इसके लिए उन्होंने अमरूद की Layer Farming को अपनाया है. वह बताते हैं कि अमरूद के पाैधों को पेड़ बनने से रोकने के लिए स्टील के 3 तारों की कतार लगा कर इनके सहारे हर पेड़ की सिर्फ 3 शाखाओं को ऊपर बढ़ने दिया गया है. बाकी की शाखाओं को काट दिया जाता है.इस तकनीक के लाभ का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि तीन डालियों में ही पूरे पेड़ का पोषण होने से इनमें लगने वाले फल भी पुष्ट रहते हैं.
तिवारी ने बताया कि डाल में फल लगने के बाद हर फल को कीट के प्रकोप से बचाने के लिए तिहरे सुरक्षा कवच में रखा जाता है. उन्होंने बताया कि फलों को Three Layer Safety में रखने के लिए हर फल को 3 पॉली कवर से ढंका जाता है. इससे फल को कीट के प्रकोप से बचाने के साथ उसे जल्द पकने लायक उचित तापमान भी मिल जाता है.
इतना ही नहीं फलों के अलावा बेल को रोग और कीट आदि के प्रकोप से बचाने के लिए गेंदा के पौधे लगाए गए हैं. साथ ही पूरी फसल को ड्रिप तकनीक से दवा और पानी दिया जाता है् इससे बेहद कम समय में दवा और पानी की उचित मात्रा हर पौधे को मिल जाती है. जैविक तरीके से अमरूद की खेती करने में लागत काफी कम हुई है. इससे जानलेवा रासायनिक दवाओं से मुक्त ऑर्गेनिक अमरूद उपभोक्ताओं तक पहुंचाना मुमकिन हुआ है.
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तिवारी ने बताया कि बाग से अमरूद की पहली उपज लेने में लगभग 3 लाख रुपये की लागत आई है. इसके एवज में अब तक उन्हें लगभग 10 लाख रुपये तक की आपूर्ति के ऑर्डर मिल चुके हैं. उन्हाेंने बताया कि उपज से मिले लाभ को बढ़ाने के लिए अब आकर्षक पैकिंग और मार्केटिंंग पर काम चल रहा है.
इसके लिए गांव की महिलाओं को पैकिंग की जिम्मेदारी दी गई है. डाल पर पके फलों काे और अच्छे से पकाने के लिए अखबार में कुछ दिन के पैक करके रखा जाता है. उन्होंने बताया कि अमरूद के पैकिंग बॉक्स पर वीएनआर अमरूद की तस्वीर के साथ लिखा गया है कि ''अमरूद ताजे हैं, मां ने भेजे हैं.'' इतना ही नहीं इस बॉक्स पर Reverse Migration का संदेश देने के लिए लिखा गया है कि खेत मां ने खरीदे थे, हमने शहर से गांव लौट कर एक बाग लगाया है.
तिवारी ने बताया कि पके हुए अमरूदों की पहली खेप भोपाल भेजी जा रही है. इसके लिए अमरूद का एक्सपोर्ट करने वाले डीलर्स से करार किया गया है. उन्होंने बताया कि हाल ही में वह दिल्ली की आजादपुर फल मंडी भी गए थे, जहां कुछ कारोबारियों ने वीएनआर अमरूद खरीदने का करार किया है.