वैसे तो चाय के बागान की बात सुनते ही पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग से लेकर असम सहित अन्य पूर्वोत्तर के राज्यों की तस्वीर ही जेहन में आती है. देश में चाय, खासकर Green Tea Farming को लेकर इस पहचान का दायरा समय के साथ बढ़ रहा है. इस दायरे में अब छत्तीसगढ़ भी शामिल हो गया है. छत्तीसगढ़ में चाय की खेती का अंकुरण साल 2010 में जशपुर जिले से हुआ था. राज्य के नवनियुक्त मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का गृह जनपद जशपुर, महज 12 साल के भीतर ही छत्तीसगढ़ का पहला Tea Producer District बन गया है. हालांकि जशपुर में अभी सिर्फ 7 एकड़ में ही चाय की खेती का सफल मॉडल विकसित किया गया है, मगर दुनिया भर में ग्रीन टी के मुख्य गढ़ माने गए चीन और जापान में जशपुर की ग्रीन टी का डंका बजने से अब छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए चाय की खेती के रास्ते खुल गए हैं.
छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से बताया गया कि जशपुर जिले के सोगड़ा गांव में एक आश्रम से चाय की खेती का आगाज 2010 में हुआ था. छत्तीसगढ़ को ग्रीन टी उत्पादक राज्य की पहचान दिलाने की शुरुआत यहां के लोकप्रिय संत गुरूपद संभवराम के मार्गदर्शन में मनोरा ब्लाॅक के सोगड़ा स्थित सर्वेश्वरी आश्रम में चाय के पौधरोपण से हुई थी. यह आश्रम आध्यात्मिक चेतना के साथ समाज और पर्यावरण के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.
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सोगड़ा के चाय बागान से पत्तियों की तुड़ाई का काम मई 2010 से ही चल रहा है. राज्य सरकार का दावा है कि इस आश्रम के चाय बागान से तोड़ी गई पत्तियों से 22 प्रतिशत तक Green Tea मिल रही है. राज्य सरकार ने इसका परीक्षण चीन एवं जापान के अंतरराष्ट्रीय चाय विशेषज्ञों एवं राष्ट्रीय चाय विकास बोर्ड से करवाया है. इनकी रिपोर्ट में सोगड़ा की ग्रीन टी, असम एवं दार्जिलिंग से बेहतर होने की पुष्टि की गई है. रिपोर्ट के अनुसार जशपुर की जलवायु ग्रीन टी के उत्पादन के लिए बेहद अनुकूल पाई गई है. इतना ही नहीं, दुनिया भर में ग्रीन टी की सबसे ज्यादा खपत वाले देश चीन एवं जापान में जशपुर की ग्रीन टी अब निर्यात भी होने लगी है.
सरकार के प्रयास से सोगड़ा में चाय की खेती का दायरा सर्वेश्वरी आश्रम में 7 एकड़ से बढ़कर जिले के अन्य किसानों के माध्यम से 85 एकड़ तक पहुंच गया है. सोगड़ा में इस समय असम की मशहूर चाय प्रजाति 'टीवी 25, 26 और 27' के अलावा दार्जिलिंग की सीपी-1, पीके 78, टीवी एवं एवी किस्मों का रोपण किया जा रहा है. हर साल जुलाई के पहले सप्ताह में रोपे गए इन किस्मों के पौधे की ग्रोथ 4 महीने में ही दो से ढाई फीट तक हो जाती है. इस Growth Rate को असम एवं दार्जिलिंग से बेहतर माना गया है. जानकारों के मुताबिक असम और दार्जिलिंग में इन किस्मों के चाय के पौधों को 2 से 2.5 फुट तक ग्रोथ पाने में ढाई साल तक लग जाते हैं.
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जशपुर जिले में चाय की खेती के शुरुआती परिणाम बेहतर मिलने के बाद सोगड़ा में उत्पादित चाय पत्ती की प्रोसेसिंग के लिए बाला छापर में एक यूनिट स्थापित की गई है. अत्याधुनिक तकनीक से लैस यहां की Tea Leaf Processing Unit को लगाने में लगभग 40 लाख रुपये की लागत आई है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार सोगड़ा में सर्वेश्वरी आश्रम के संत गुरुपद संभव बाबा हजारीबाग से चाय के पौधे लाए थे. इन पौधों को लगाने का प्रयोग सफल होने पर आश्रम की 7 एकड़ में चाय का बाग लगाया गया था. आश्रम में चाय की खेती का सफल मॉडल बनने के बाद अब गांव में चाय की खेती का रकबा 20 एकड़ से अधिक हो चुका है. इसके अलावा छत्तीसगढ़ सरकार के सहयोग से जशपुर, मनोरा और बगीचा तहसील में 85 एकड़ से अधिक जमीन पर चाय की खेती होने लगी है.