पाम ऑयल की खेती तेजी से किसानों के लिए आय का एक विश्वसनीय और टिकाऊ स्रोत बनती जा रही है. इस बात का जीता जागता सबूत हैं छत्तीसगढ़ के किसान. एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि यहां पिछले 4 सालों में 2,600 हेक्टेयर से अधिक जमानी पर यह फसल बोई गई है. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार, केंद्र के सहयोग से, किसानों को अतिरिक्त आय के अवसर प्रदान करने के लिए पाम ऑयल और अन्य बागवानी फसलों की खेती को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रही है.
एक सरकारी बयान में कहा गया है कि राष्ट्रीय तिलहन और ऑयल पाम मिशन के तहत, छत्तीसगढ़ में 4 वर्षों में 2,689 हेक्टेयर भूमि को पाम तेल की खेती के अंतर्गत लाया जा चुका है. इस बयान के अनुसार, पाम तेल बिस्कुट, चॉकलेट, इंस्टेंट नूडल्स, स्नैक्स जैसे उत्पादों के साथ-साथ साबुन, क्रीम, डिटर्जेंट और जैव ईंधन में सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले खाद्य तेलों में से एक है. इसमें कहा गया कि किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें मुफ्त ट्रेनिंग के साथ सब्सिडी भी उपलब्ध करा रही हैं.
सरकारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व और कृषि मंत्री रामविचार नेताम के मार्गदर्शन में बस्तर (जगदलपुर), कोंडागांव, कांकेर, सुकमा, नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, महासमुंद, रायगढ़, सारंगढ़-बिलाईगढ़, जांजगीर-चांपा, दुर्ग, बेमेतरा, जशपुर, सरगुजा, कोरबा और बिलासपुर सहित 17 जिलों में ऑयल पाम की खेती की जा रही है और इसे बढ़ावा दिया जा रहा है.
सरकारी बयान में कहा गया है कि तीन सालों (2021-22, 2022-23 और 2023-24) में 1,150 किसानों ने 1,600 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में पाम ऑयल की फसल लगाई है और 2024-25 में 802 किसानों ने 1,089 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में पाम ऑयल की फसल लगाई है. रायगढ़ जिले के चक्रधरपुर गांव के किसान राजेंद्र मेहर ने बागवानी विभाग की मदद से अपने 10 एकड़ के भूखंड पर 570 पाम के पौधे लगाए हैं. मेहर ने कहा कि मेरी ज़मीन कई सालों से बेकार पड़ी थी. तकनीकी मार्गदर्शन मिलने और पाम ऑयल की खेती के फ़ायदों के बारे में जानने के बाद, मैंने इसे अपनाने का फ़ैसला किया." विज्ञप्ति में कहा गया है कि महासमुंद जिला वर्तमान में 611 हेक्टेयर क्षेत्र में पाम ऑयल की खेती के साथ सबसे आगे है.
बागवानी विभाग के अधिकारियों के अनुसार, इस सरकारी योजना के तहत किसानों को प्रति हेक्टेयर 29,000 रुपये मूल्य के 143 पौधे मुफ्त दिए जाएंगे. पौधे लगाने, बाड़ लगाने, सिंचाई, रखरखाव और अंतर-फसलों की कुल लागत लगभग 4 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा 1-1 लाख रुपये का अनुदान दिया जाता है. विज्ञप्ति में कहा गया है कि बाकी राशि बैंक लोन के माध्यम से जुटाई जा सकती है.
इसके अलावा, कृषि रखरखाव, ड्रिप सिंचाई, अंतर-फसल, बोरवेल, पंप सेट, जल संचयन, वर्मीकम्पोस्ट इकाइयां, ताड़ कटर, तार जाल, मोटर चालित छेनी, चारा कटर और ट्रैक्टर ट्रॉलियों के लिए अतिरिक्त सब्सिडी भी मिल जाती है. पाम की खेती में उत्पादन तीसरे साल से शुरू होकर 25-30 सालों तक जारी रहता है और पौधों के परिपक्व होने के साथ उपज बढ़ती जाती है. रिपोर्ट के अनुसार, किसान प्रति हेक्टेयर सालाना 15-20 टन ताजे फलों के गुच्छों की उम्मीद कर सकते हैं, जिससे उन्हें सालाना 2.5 लाख रुपये से 3 लाख रुपये तक की आय हो सकती है.
विज्ञप्ति में कहा गया है कि पाम ऑयल के पौधों के बीच की दूरी किसानों को उनके बीच सब्ज़ियां या अन्य अंतर-फसलें उगाने की सुविधा देती है और इनके लिए सब्सिडी भी उपलब्ध है. इसमें ये भी कहा गया है कि 2 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर अन्य फसलें उगाने वाले किसानों को बोरवेल लगाने के लिए 50,000 रुपये की अतिरिक्त सब्सिडी मिल सकती है. केंद्र ने अनुबंध कंपनियों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर किसानों से सीधे पाम ऑयल उत्पाद खरीदने की व्यवस्था की है, जिसका भुगतान सीधे उनके बैंक खातों में किया जाएगा.
कृषि मंत्रालय ने 2024-25 में घरेलू पाम तेल उत्पादन में 15 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है और 2029-30 तक इसे 28 लाख टन तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है. सरकार तेलंगाना, असम, मिज़ोरम, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों, खासकर बस्तर और दंतेवाड़ा जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आय और रोज़गार के नए अवसर पैदा करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है.
(सोर्स- PTI)
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