बीएयू सबौर में मल्टी-कट चारा मक्का विकसित करने की पहल, टियोसिन्टे का होगा उपयोग

बीएयू सबौर में मल्टी-कट चारा मक्का विकसित करने की पहल, टियोसिन्टे का होगा उपयोग

पशुपालन को सशक्त बनाने और पशुओं को सालभर हरा चारा उपलब्ध कराने की दिशा में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर ने बड़ी पहल की है. विश्वविद्यालय अब टियोसिन्टे, मक्का के जंगली पूर्वज, की मदद से मल्टी-कट चारा मक्का विकसित करने जा रहा है, जिससे बायोमास उत्पादन, पोषण गुणवत्ता और किसानों की आय—तीनों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी.

BAU sabaur teamBAU sabaur team
अंक‍ित कुमार स‍िंह
  • Patna,
  • Oct 15, 2025,
  • Updated Oct 15, 2025, 1:19 PM IST

बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर, कृषि और पशुपालन क्षेत्र में नई तकनीकों को अपनाते हुए मल्टी-कट चारा मक्का विकसित करने जा रहा है. इस योजना के तहत मक्का के जंगली पूर्वज टियोसिन्टे (Teosinte) को प्रजनन कार्यक्रमों में शामिल किया जाएगा. इससे किसानों को पूरे साल हरा चारा उपलब्ध होगा, साथ ही बायोमास उत्पादन और पोषण गुणवत्ता में भी सुधार होगा.

आईसीएआर–भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR), लुधियाना की उच्च स्तरीय मॉनिटरिंग टीम ने बीएयू सबौर का दौरा कर इस शोध की समीक्षा की और इसे कृषि क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम बताया. टीम ने टियोसिन्टे के उपयोग को मल्टी-कट मक्का किस्मों के विकास में अहम बताया, जो पूरे मौसम में कई बार कटाई के बाद लगातार हरा चारा मुहैया कराएगी.

चारा मक्का प्रजनन बीएयू सबौर का मुख्य लक्ष्य

बीएयू के कुलपति डॉ. डी. आर. सिंह ने बताया कि आनुवंशिक सुधार, कृषि तकनीक और रोग-कीट प्रबंधन के समेकित प्रयास से मक्का की स्थायी उत्पादकता और चारा सुरक्षा सुनिश्चित होगी. वहीं, विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. ए. के. सिंह ने कहा कि चारा मक्का प्रजनन बीएयू सबौर का मुख्य लक्ष्य है.

कुलपति डॉ. डी. आर. सिंह ने कहा कि AICRP on Maize के तहत आनुवंशिक सुधार, कृषि तकनीक और रोग–कीट प्रबंधन का समेकित दृष्टिकोण स्थायी मक्का उत्पादकता और चारा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उत्कृष्ट उदाहरण है. 

डॉ. एन. के. सिंह ने इस शोध के महत्व पर जोर देते हुए टियोसिन्टे जर्मप्लाज्म साझा करने का आश्वासन दिया, ताकि बीएयू सबौर में इस नवाचारी प्रजनन कार्यक्रम की शुरुआत हो सके.

पोषक तत्वों से भरपूर मक्का किस्में

वहीं, विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक टियोसिन्टे का उपयोग करके मल्टी-कट, उच्च बायोमास और पोषक तत्वों से भरपूर मक्का किस्में विकसित कर रहे हैं. यह शोध हरा चारा उपलब्धता को बढ़ाएगा, पशुपालन को मजबूत करेगा और बिहार के किसानों की आजीविका में सुधार लाएगा. इसके साथ ही किसानों की आय में भी काफी वृद्धि होगी.

वहीं, वैज्ञानिकों ने मक्का की खेती से जुड़े सुझाव भी दिए. डॉ. श्राबणी देबनाथ ने बैक्टीरियल लीफ और शीथ ब्लाइट रोगों पर अनुसंधान तेज करने की आवश्यकता जताई. डॉ. महेश कुमार ने रेज्ड-बेड प्लांटिंग प्रणाली की सराहना की, जबकि डॉ. सौजन्या पी. एल. ने बीएयू को फॉल आर्मी वॉर्म कीट निगरानी और स्क्रीनिंग का क्षेत्रीय केंद्र बनाने का सुझाव दिया.

यह पहल न केवल पशुपालन को मजबूत करेगी, बल्कि बिहार में कृषि क्षेत्र को भी नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी.

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