थनैला रोग ( Thanela disease) पशुओं की एक ऐसी गंभीर बीमारी है, जिसका समय रहते पहचान और उपचार करना जरूरी होता है. इसकी पहचान करने में अगर पशुपालक देरी करते हैं तो इसका गंभीर खामियाजा भी पशुओं को भुगतना पड़ता है. थनैला रोग के चलते दुग्ध उद्योग को भी भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ती है. इस बीमारी से प्रभावित पशुओं के दूध उत्पादन की क्षमता पर विपरीत असर होता है. इस बीमारी में दुधारू पशुओं के थन प्रभावित होते हैं. इस बीमारी के चलते हर वर्ष दुग्ध उत्पादन और इलाज के रूप में बड़ी धन हानि भी होती है. यह बीमारी सबसे ज्यादा गाय और भैंस में होती है. हालांकि भेड़, बकरी और ऊंट को भी यह बीमारी प्रभावित करती है. थनैला मुख्यतः बैक्टीरिया से प्रभावित होने वाली बीमारी है. थन में चोट लगना, पशु बाड़े में अच्छी तरह साफ सफाई न होना, संतुलित पशु आहार और आहार में खनिजों की कमी भी इस रोग के लिए बड़े कारक होते हैं.
उत्तर प्रदेश पशुपालन विभाग में थनैला रोग के प्रभारी डॉ राम अवतार ने किसान तक को बताया कि इस बीमारी के फैलने का सबसे ज्यादा खतरा पशुओं के बच्चा देने से 1 महीने तक होता है. इस दौरान पशुपालकों को विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए. पशुओं की थनैला बीमारी को बड़े ही आसानी से पहचाना जा सकता है. इसके शुरुआती लक्षण थानों में सूजन का आना, पानी जैसे दूध का आना, दूध में छिछड़े आना है. वहीं दूध का नमकीन या बेस्वाद होना, थन का कड़ा होना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं. वहीं कई बार यह लक्षण पशुओं में नहीं दिखाई देते हैं. इसके लिए दूध की प्रयोगशाला में जांच कराकर पता लगाया जा सकता है. इस रोग की शुरू में पहचान होने पर पूरी तरह रोकथाम हो सकती है. अगर इलाज में देरी होने पर दुग्ध उत्पादन से लेकर पशुओं के थन खराब होने का भी खतरा रहता है.
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उत्तर प्रदेश में पशुपालन विभाग के थनैला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर राम अवतार ने बताया पशुओं में थनैला रोग के लक्षण पाए जाने पर सबसे पहले पशुपालकों को साफ-सफाई का विशेष ध्यान देना चाहिए. दुधारू पशुओं का दूध निकालने से पहले थन को लाल दवा से साफ करके साफ कपड़े से पोंछना चाहिए. वहीं जहां पशु बैठते हैं, वहां विशेष साफ-सफाई रखनी चाहिए. इसके अलावा दूध निकालने की आधे घंटे बाद तक पशुओं को जमीन पर बैठने ना दें इस दौरान पशुपालक उन्हें चारा फैलाकर खड़े रखने की कोशिश करें.
पशुओं में थनैला रोग सबसे बड़ा वाहक जीवाणु, विषाणु व प्रोटोजोआ का संक्रमण होता है. हालांकि यह बीमारी छुआछूत से दूसरे पशुओं में भी फैल सकती है. इसलिए एक बार थनैला रोग की पहचान हो जाने पर संक्रमित पशु को दूसरे पशुओं से अलग रखना चाहिए. डॉ राम अवतार ने बताया किसान के ऊपर किसी प्रकार के गर्म तेल या पानी की मालिश नहीं करनी चाहिए. दूध निकालने के बाद किसी एंटीसेप्टिक लोशन से धुलाई करना चाहिए, पशु में एंटीबायोटिक सेंसटिविटी परीक्षण से रोग के वाहक का पता चलता है, जिससे इस बीमारी का इलाज आसान हो जाता है. पशुपालक थनैला बीमारी का पता लगने पर इलाज पूरा कराएं. वही थनैला से पीड़ित पशु के दूध का उपयोग पीने में नहीं करना चाहिए क्योंकि इसमें एंटीबायोटिक एवं जीवाणुओं की संख्या सबसे अधिक रहती है.