Moringa Farming: मोरिंगा की खेती के लिए खास हैं ये तीन बातें, ख्याल रखा तो खूब होगा मुनाफा 

Moringa Farming: मोरिंगा की खेती के लिए खास हैं ये तीन बातें, ख्याल रखा तो खूब होगा मुनाफा 

Moringa Farming गर्मी में हरा चारा ना के बराबर रह जाता है, जबकि बरसात के दौरान हरे चारे में नमी ज्यादा होती है. बकरियों को भी दाने और सूखे चारे के साथ हरे चारे की जरूरत होती है. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के साइंटिस्ट की मानें तो मोरिंगा (सहजन) एक ऐसा हरा चारा है जिसके पत्ते से लेकर तना तक भेड़-बकरियों के लिए चारे के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. 

सहजन की पत्तियों की खेती. (सांकेतिक तस्‍वीर)सहजन की पत्तियों की खेती. (सांकेतिक तस्‍वीर)
नासि‍र हुसैन
  • Delhi,
  • Oct 28, 2025,
  • Updated Oct 28, 2025, 6:43 PM IST

Moringa Farming मोरिंगा (सहजन) की खेती ऐसी है जिसके दो बाजार हैं. पहला मोरिंगा की फली और पत्ते इंसानी इस्तेमाल के लिए बाजार में बिकते हैं. दूसरा है पशुओं के चारे का बाजार. चारा बाजार के लिए एक और खास बात ये है कि पत्ती के साथ-साथ मोरिंगा का तना भी बिकता है. लेकिन दोनों ही बाजारों में मुनाफा कमाने के लिए जरूरी है कि मोरिंगा की खेती करते वक्त खासतौर पर तीन बातों का खास ख्याल रखा जाए. अगर बुवाई और पहली-दूसरी कटाई का ख्याल रखा तो फिर बड़ा मुनाफा होना पक्का है. इंसानी इस्तेमाल के साथ-साथ पशुओं के लिए भी मोरिंगा की डिमांड बढ़ रही है. खासतौर से भेड़-बकरियां मोरिंगा के पत्ते से लेकर तना तक खाती हैं. 

मोरिंगा से दूध उत्पादन भी बढ़ता है. बकरे के मीट की ग्रोथ तेज हो जाती है. और सबसे अच्छी बात ये है कि मोरिंगा पूरे साल मिलता है. क्योंकि आज किसी भी पशुपालक की सबसे बड़ी परेशानी है कि हरा चारा आसानी से और पौष्टिक नहीं मिलता है. ऑर्गेनिक की डिमांड के चलते पशुओं के लिए हरा चारा जुटाना मुश्किल हो गया है. सर्दियों के मौसम में तो फिर भी हरे चारे की जुगाड़ हो ही जाती है, लेकिन सबसे ज्या‍दा परेशानी आती है गर्मी और बरसात के मौसम में. 

मोरिंगा की खेती में बहुत जरूरी हैं ये तीन बातें 

फोडर एक्सपर्ट और साइंटिस्ट का कहना है कि सबसे पहली बात तो ये कि मोरिंगा लगाने के लिए गर्मी और बरसात का मौसम सही होता है. जैसे अगर जून से मोरिंगा लगाना शुरू कर दिया जाए तो फायदेमंद रहता है. दूसरा इस बात का ख्याल रखना है कि इसे पेड़ नहीं बनने देना है. इसके लिए यह जरूरी है कि 30 से 45 सेंटी मीटर की दूरी पर इसकी बुवाई की जाए. तीसरी खास बात ये कि इसकी पहली कटाई 90 दिन यानि तीन महीने के बाद करनी है. तीन महीने के वक्त में यह आठ से नौ फीट की हाईट पर आ जाता है. तो इस तरह से पहली कटाई 90 दिन में करने के बाद बाकी की कटाई हर 60 दिन बाद करनी है. काटते वक्त यह खास ख्याल रखना है कि इसकी कटाई जमीन से एक से डेढ़ फीट की ऊंचाई से करनी है. इससे होता यह है कि नई शाखाएं आने में आसानी रहती है. 

खूब बिकते हैं मोरिंगा के तने से बने पैलेट्स  

एक्सपर्ट का कहना है कि मोरिंगा के तने को भी बकरी खाती है. क्योंकि इसका तना बहुत ही मुलायम होता है. इसकी पत्तियों को भी बकरे और बकरी बड़े ही चाव से खाते हैं. अगर आप चाहें तो पहले बकरियों को पत्तियां खिला सकते हैं. इसके तने को अलग रखकर उसके पैलेट्स बना सकते हैं. पैलेट्स बनाने का एक अलग तरीका है. ऐसा करके आप बकरे और बकरियों के लिए पूरे साल के चारे का इंतजाम कर सकते हैं. 

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