बरसात के महीने में दुधारू पशुओं में बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है. अगर पशु बीमार हो जाएं तो किसानों को नुकसान झेलना पड़ता है क्योंकि, बीमार पशुओं में दूध में कमी हो जाती है. वहीं, देश के कई किसान दूध उत्पादन कर अपनी आय में वृद्धि करते हैं, लेकिन बरसात के मौसम में उन्हें सचेत रहने की जरूरत होती है. ऐसे में आइए जानते हैं कि बारिश के मौसम में पशुओं को कौन सी बीमारियों से खतरा होता है और उनसे बचाव के तरीके क्या हैं.
बरसात आते ही मिट्टी गीली हो जाती है. दुधारू पशु उसी कीचड़ में चरते और बैठते हैं. ऐसे में उनके पैर और थन में कीड़े लग जाते हैं. इससे उनके पैरों और थन में घाव हो जाते हैं. साथ ही बरसात में उगने वाली घास में कई तरह के कीटाणु होते हैं, जो दुधारू पशु बाहर चरते वक्त उस घास को खाते हैं तो कीटाणु पेट में चले जाते हैं. ये कीड़े इतने खतरनाक होते हैं कि पशुओं की कई बार मौत भी हो जाती है.
ये भी पढ़ें:- Lumpy Cow: इस मौसम में गायों को ऐसे बचाएं लंपी वायरस से, पढ़ें उपाय
बरसात के मौसम में पशुओं को सबसे ज्यादा थन में कीटाणु लग जाने की वजह से थनैला रोग होते हैं. वहीं, कीचड़ या दलदल में रहने की वजह से खुर की बीमारी हो जाती है. साथ ही कीटाणु वाली घास खाने से गलघोटू की बीमारी हो सकती है. इसमें सबसे ज्यादा ख़तरनाक बीमारी गलाघोंटू है, जिसके होने से दुधारू पशुओं को 105 से 106 डिग्री तक बुखार हो सकता है और दोनों आंखें लाल या सूज जाती हैं. दोनों पैर में सूजन हो जाती है. इसके अलावा पशुओं को सांस लेने में दिक्कत होती है, जिससे उनकी मृत्यु भी हो जाती है.
इन सभी बीमारियों से बचने के लिए दुधारू पशुओं को हर तीन-तीन महीने में कृमि नाशक दवा देनी चाहिए. वहीं, बरसात में या बरसात से एक महीने पहले खुराहा का टीकाकरण सभी दुधारू पशुओं में करवा लेना चाहिए. लेकिन, अगर किन्हीं पशुओं में खुरहा बीमारी हो गई तो एंटीबायोटिक दवा जैसे की पेनिश्री आदि इंजेक्शन लगातार पांच दिनों तक दिलवाएं और बुखार की दवा भी चलाएं. साथ ही अभी की घास में पोषक तत्व की कमी रहती है तो पोषक तत्व की कमी को दूर करने के लिए मिनरल मिक्सचर आहार में दें, ताकि दुधारू पशुओं के शरीर मे पोषक तत्व की कमी न हो. ऐसा करने से पशु दूध भी कम नहीं करते और स्वस्थ भी रहते हैं.