
कृषि से लेकर पशुपालन के क्षेत्र में तकनीक का उपयोग काफी बढ़ा है. वहीं बीते कुछ सालों की बात किया जाए तो बिहार के इकलौते बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय पटना (बासु) द्वारा भी पशुओं में प्रेगनेंसी को लेकर कार्य किया जा रहा है. जिसमें आई.वी.एफ और इटीटी तकनीक का उपयोग किया गया है साथ ही साथ अब बकरियों में कृत्रिम गर्भधारण कृत्रिम को बढ़ावा देने के लिये गोट सीमेन सेंटर (बकरों के सीमेन) की स्थापना करने जा रही है. बिहार वेटनरी कॉलेज पटना के डीन डॉ जे.के.प्रसाद कहते हैं कि अभी तक आईवीएफ और इटीटी तकनीक से 9 साहीवाल गाय के बच्चों का जन्म हुआ है, जिसमें इटीटी तकनीक से 6 और आई.वी.एफ से 3 बाछी का जन्म हो चुका है और 6 गाय आई.वी.एफ तकनीक से प्रेग्नेंट भी हैं. तकनीक से जन्मे सभी पशु पूरी तरह से स्वस्थ है.
बता दें कि बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय पटना में भारत सरकार की ओर से राष्ट्रीय गोकुल मिशन’ के तहत भ्रूण प्रत्यारोपण सह आईवीएफ प्रयोगशाला की स्थापना की गई है जिसका शिलान्यास माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने किया है. इस परियोजना प्रयोगशाला में कार्यरत वैज्ञानिकों के निरंतर प्रयास से साहिवाल, रेड सिंधी इत्यादि उच्च क्षमता वाली देसी गायों से आई.वी.एफ तकनीक के माध्यम से गर्भ के बाहर ही निषेचित मादा-भ्रूण की उपलब्धता हो गयी है तथा राज्य के पशुपालकों अब इस सुविधा का लाभ मिलना शुरू हो गया है. पशुपालक अपनी मौजूद गाय से ही उस नस्ल की बाछी प्राप्त कर सकते है.
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बिहार वेटनरी कॉलेज पटना के डीन डॉ जे.के.प्रसाद कहते हैं कि जो पशुपालक भाई अपने पशुओं को आई.वी.एफ तकनीक से प्रेग्नेंट करना चाहते है उनके लिए यह सुविधा अभी निःशुल्क रखा गया है.किसानों के द्वार पर भी उच्च नस्ल की गाय-भैसों का भ्रूण प्रत्यारोपण किया जा सकेगा. यह परियोजना पिछले तीन सालों से कार्य कर रही है. वहीं परियोजना के क्रियान्वयन से जुड़े वैज्ञानिक डॉ दुष्यन्त यादव ने बताया कि यह तकनीक पूर्ण रूप से सुरक्षित है. इससे पैदा होने वाली बाछी उसी तरह से दूध देने में सक्षम है जैसे की समान्य प्रक्रिया के तहत जो बाछी जन्म लेती है और आज के समय में नस्ल सुधार के लिए आई. वी. एफ़ तकनीक से बेहतर कोई विकल्प नही है.किसान तक सब बातचीत में उन्होंने बताया कि यहां आई.वी.एफ तकनीक से पैदा हुई तीनों बाछी तनुजा, वैदेही और मैथिली पूरी तरह से स्वस्थ हैं.
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बिहार वेटनरी कॉलेज पटना के डीन डॉ जे.के.प्रसाद ने किसान तक को बताया कि भारत सरकार की ओर से एक परियोजना के तहत गोट सीमेन लेबोरेटरी बनाने की अनुमति मिली है जिस पर कार्य अपने अंतिम पड़ाव की ओर है और इस साल के अंतिम तक गोट सीमेन (बकरे का सीमेन) तैयार होना शुरू हो जाएगा. पहले चरण में ब्लैक बंगाल और सिरोही नस्ल के बकरों का सीमेन तैयार किया जाएगा. इसके लिए बेहतर नस्ल के बकरों को रखा जाएगा. साथ ही इसको लेकर लोगों को प्रशिक्षण देने का भी काम किया जाएगा.
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