बरसात का मौसम किसानों के लिए फायदेमंद जरूर होता है, लेकिन पशुपालन के लिहाज से यह सबसे संवेदनशील और चुनौतीपूर्ण होता है. इस मौसम में बढ़ी हुई नमी, कीचड़ और साफ-सफाई की कमी से मवेशियों में कई खतरनाक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. खास बात यह है कि इन बीमारियों का असर केवल पशुओं की सेहत पर नहीं, बल्कि उनके दूध उत्पादन और प्रजनन क्षमता पर भी पड़ता है, जिससे पशुपालकों की आमदनी पर इसका सीधा असर दिखता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि बारिश के मौसम में पशुओं को 3 कौन सी बीमारियों से खतरा होता है और उनसे बचाव का तरीका क्या है.
लंगड़ा बुखार और उससे बचाव के उपाय
- पशुओं के लिए लंगड़ा बुखार एक गंभीर और जानलेवा बीमारी है.
- ये बीमारी खासतौर पर गोवंश यानी गायों में देखी जाती है.
- बरसात के मौसम में यह बीमारी तेजी से फैलती है और समय पर इलाज न हो तो पशु की जान भी जा सकती है.
- इस बीमारी में पशु की पिछली या अगली टांगों में अचानक तेज सूजन आ जाती है.
- सूजन की वजह से वह लंगड़ाकर चलने लगते हैं या फिर पूरी तरह बैठ जाता है.
- इस बीमारी से बचने के लिए मवेशियों को हर साल लंगड़ा बुखार यानी ब्लैक क्वार्टर का टीका लगवाना जरूरी होता है.
- सरकार की तरफ से यह टीका मुफ्त में लगाया जाता है.
- अगर किसी पशु में यह बीमारी हो जाए तो प्रोकेन पेनिसिलिन नाम की दवा काफी असरदार होती है.
- लेकिन ध्यान रहे, इलाज में थोड़ी भी देर हुई तो जानवर की जान भी जा सकती है.
मिल्क फीवर के लक्षण और बचाव का तरीका
- दुधारू पशुओं में मिल्क फीवर एक आम बीमारी है.
- ये ज्यादातर उन जानवरों में होती है जो बहुत अधिक दूध देती हैं.
- यह बीमारी आमतौर पर पशुओं के ब्यांत यानी ब्याने के बाद पहले कुछ दिनों में होती है.
- इस दौरान जानवर के शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाती है.
- इस बीमारी में पशु अचानक बहुत सुस्त हो जाता है और शरीर ठंडा पड़ने लगता है.
- इससे बचाव के लिए जरूरी है कि ब्याने के बाद पशु को कैल्शियम, फास्फोरस और मिनरल मिक्चर मिलाकर चारा दिया जाए.
- इसके अलावा, 10-15 दिनों तक पूरा दूध नहीं दुहना चाहिए ताकि शरीर पर ज्यादा दबाव न पड़े.
- इससे बचाव के लिए कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट का इंजेक्शन नस (IV) या त्वचा के नीचे (SC) देना होता है.
किलनी और टीका-फीनर संक्रमण से बचाव
- पशुओं में किलनी एक खतरनाक बाहरी परजीवी है.
- ये पशुओं के शरीर में बरसात के मौसम में तेजी से बढ़ती है.
- यह केवल जानवरों का खून चूसती ही नहीं, बल्कि टीका-फीनर जैसी घातक बीमारी भी फैलती है.
- किलनी होने पर मवेशियों को तेज बुखार, कमजोरी, भूख न लगना और पीलिया जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
- बचाव के लिए जरूरी है कि पशुओं के बाड़े की नियमित सफाई करें.
- इसके अलावा ध्यान रखें कि जहां पशु रहते हैं वहां नमी और गंदगी जमा न होने दें.
- साथ ही पशुओं की त्वचा पर दवा का छिड़काव करें ताकि किलनी न लग सके.
बीमारियां होने का क्या है कारण?
बरसात आते ही मिट्टी गीली हो जाती है और दुधारू पशु उसी कीचड़ में चरते और बैठते हैं. ऐसे में उनके पैर और थन में कीड़े लग जाते हैं. इससे उनके पैरों और थन में घाव हो जाते हैं. साथ ही बरसात में उगने वाली घास में कई तरह के कीटाणु होते हैं, जो दुधारू पशु बाहर चरते वक्त उस घास को खाते हैं तो कीटाणु पेट में चले जाते हैं. ये कीड़े इतने खतरनाक होते हैं कि पशुओं की कई बार मौत भी हो जाती है.