
भैंस जैसे ही हीट में आती है तो ऐसे में उसे गाभिन कराने के लिए प्रोजेनी टेस्टिंग (पीटी) बुल की जरूरत होती है. हालांकि अब तो पीटी बुल की सीमन स्ट्रॉ से भी काम हो जाता है. क्योंकि जागरुकता के चलते पशुपालक अब प्राकृतिक तरीके से भैंस को गाभिन कराने के बजाए आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन (कृत्रिम गर्भाधान) से भी गाभिन कराने लगे हैं. लेकिन परेशानी ये है कि पशुपालन के क्षेत्र में न तो जल्दी पीटी बुल मिल पाता है और न ही पीटी बुल की सीमन स्ट्रॉ. कई बार तो पशुपालकों को आसपास के शहरों तक में पीटी बुल नहीं मिल पाता है.
एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो इसकी एक वजह ये भी है कि हर कोई बुल पीटी बुल नहीं बन पाता है. कई साल की मेहनत और तमाम तरह के टेस्ट के बाद ही एक बुल को पीटी बुल का दर्जा मिलता है. इसी के चलते पीटी बुल को पशुपालकों का काला सोना भी कहा जाता है. और इसीलिए एक्सपर्ट हर एक मौसम में पीटी बुल की खास देखभाल की सलाह देते हैं.
डॉ. सज्जन सिंह ने बताया कि एक सामान्य बुल को पीटी बुल बनाने के लिए खानपान के साथ और भी बहुत सारे काम किए जाते हैं. जैसे उस बुल से पैदा होने वालीं 80 से 100 भैंसों का दूध उत्पादन देखा जाता है. साथ ही वो बच्चा किस दर (रिप्रोडक्शन रेट) से दे रही है ये जांच भी की जाती है. लगातार बुल की टेस्टिंग की जाती है. और अच्छे पीटी बुल तैयार करने के लिए उन्हीं की बेटियों से पैदा होने वाले मेल बछड़ों को ही आगे के लिए तैयार किया जाता है. डेयरी फार्म में पीटी बुल रखकर भी कमाई की जा सकती है. आज पीटी बुल के वीर्य की एक स्ट्रॉ 800 से एक हजार रुपये तक की मिलती है.
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