मछली पालकों को कमाई बढ़ाने के लिए मल्टी फिश फार्मिंग तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए. जबकि, मैरीकल्चर में किसानों को आय बढ़ाने के लिए शैवाल की खेती भी जरूरी हो जाती है. केंद्रीय मत्स्य पालन राज्य मंत्री एस पी सिंह बघेल ने कहा कि केंद्र सरकार मछली पालन करने वाले किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर करने के लिए मत्स्य संपदा योजना जैसी कई स्कीम पर काम कर रही है. मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए 1,148 करोड़ राशि जारी की गई है.
केंद्रीय मत्स्य पालन राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल ने रविवार को कोच्चि में आईसीएआर-केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (CMFRI) में कहा कि समुद्री खेती नीली अर्थव्यवस्था को बेहतर करने के लिए उभरता हुआ सेक्टर है. समुद्री खेती में नई तकनीक और विधियों के इस्तेमाल से मछली पालन समुदाय की कमाई बढ़ाई जा सकती है. उन्होंने कहा कि केंद्र देश के मत्स्य पालन क्षेत्र में सुधार, मछुआरों की कमाई बढ़ाने और बुनियादी ढांचे को मॉडर्न करने पर जोर है.
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि समुद्र में पिंजरा विधि के तहत फिनफिश की खेती, समुद्री शैवाल की खेती और एक साथ कई जलीय खेती जैसे कैट और कॉर्प मछलियों और शैवाल की एक साथ खेती करना किसानों का उत्पादन बढ़ाएगा और लागत घटाएगा. इससे नतीजे में मछली पालक को अच्छी आय हासिल हो सकेगी. मंत्री ने कहा कि समुद्री खेती और अच्छी किस्म के बीज का इस्तेमाल भी उत्पादन बढ़ाने में मददगार है.
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) योजना मछली पालन, मछली प्रॉसेसिंग यूनिट और मछली पकड़ने की मॉडर्न तकनीक के इस्तेमाल को प्रोत्साहित कर रही है. इसके लिए केंद्र सरकार किसानों को सब्सिडी और वित्तीय सहायता देती है. उन्होंने कहा कि मत्स्य संपदा योजना के तहत देश के मत्स्य पालन क्षेत्र को बेहतर करने के लिए केंद्र सरकार ने 1,148.88 करोड़ रुपये किए हैं. जबकि, एग्री इंफ्रा फंड के जरिए देश के 3.3 लाख मछुआरों को सीधा लाभ मिल रहा है.
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत का मछली उत्पादन 2024-25 तक 220 लाख मीट्रिक टन तक पहुंचाने का टारगेट है. आंकड़े के अनुसार वित्त वर्ष 2022-23 में 175 लाख मीट्रिक टन उत्पादन दर्ज किया गया है. इसमें से करीब 25 फीसदी योगदान समुद्री मछली उत्पादन का है. इससे पहले 1950-51 में मछली उत्पादन 7.5 लाख मीट्रिक टन था. वहीं, प्रति व्यक्ति मछली की खपत 6.31 किलोग्राम है.