गाय-भैंस पालन का पूरा अर्थशास्त्र उसके बच्चा देने पर टिका होता है. जब तक गाय-भैंस बच्चा नहीं दे देती है तो ये मान कर चलिए कि उस पर किया जाने वाला खर्च उसकी सेहत बनाने के लिए किया जा रहा है. बाकी उसका और कोई फायदा नहीं है. एक तरह से ये खर्च पशुपालन की लागत को ही बढ़ाता है. इसे इस तरह से भी समझ सकते हैं कि जब तक गाय-भैंस बच्चा नहीं देगी तो उसका दूध उत्पादन भी नहीं होगा. और गाय-भैंस से असल मुनाफा दूध बेचकर ही होता है. अब बच्चा देने के लिए भी ये जरूरी है कि गाय या भैंस जो भी है वो वक्त से हीट पर आ जाए.
क्योंकि हीट में आने के बाद ही गाय-भैंस को बुल से मिलाया जाता है. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि गाय-भैंस हीट से आ जाती हैं और पशुपालक को पता ही नहीं चल पाता है. और एक बार हीट मिस करने का मतलब होता है कि दोबारा उसे हीट में आने में करीब 15 से 20 दिन का वक्त लगेगा ही लगेगा. एनीमल एक्सपर्ट की मानें तो हीट में आने के लिए वक्त लेने वाली भैंस पशुपालकों की लागत को बढ़ाती हैं. ऐसी भैंस पशुपालक के मुनाफे को कम कर देती हैं. क्योंकि दो से ढाई साल की भैंस की खुराक और दूध देने वाली भैंस की खुराक में ज्यादा अंतर नहीं होता है.
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सेंटर ऑफ एडवांस फैकल्टी ट्रेनिंग (सीएएफटी), लुधियाना के निदेशक डॉ. मृगांक होनपरखे बताते हैं कि देशभर के करीब 30 फीसद दुधारू पशुओं में बाझंपन की परेशानी है. लेकिन छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देते हुए बांझपन की बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सकता है. बांझपन खत्म करने के लिए किसान को हम सबसे पहले यह बताते हैं कि वो बांझपन का इलाज कराने में देरी न करें. क्योंकि बांझपन अगर पुराना होगा तो इलाज में उतनी ही परेशानी होगी. आएगी. अगर गाय-भैंस के हीट में आने में वक्त लग रहा है तो सही समय पर पशुओं की जांच करा लें. जैसे भैंस दो से ढाई साल में हीट पर आ जानी चाहिए. अगर ढाई साल में नहीं आती है तो दो-तीन महीने और इंतजार किया जा सकता है. अगर इतने पर भी हीट में नहीं आती है तो फौरन अपने पशु की जांच कराएं. इसी तरह से गाय के साथ है. अगर गाय डेढ़ साल में हीट पर न आए तो उसे भी दो-तीन महीने इंतजार के बाद डॉक्टर से सलाह जरूर करें.
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डॉ. मृगांक ने बताया कि कई बार ऐसा होता है कि एक बार बच्चा देने के बाद भी पशु में बांझपन की शिकायत आती है. इसलिए इस बात का हमेशा ख्याल रखें कि पहला बच्चा होने के बाद गाय-भैंस को दोबारा गाभिन कराने में देर न करें. वैसे तो पहली ब्यात के बाद दो महीने का अंतर रखा जाता है. लेकिन कभी भी इस अंतर को ज्यादा ना रखें. क्योंकि अंतर जितना ज्यादा होगा बांझपन की परेशानी उतनी ही ज्यादा बढ़ेगी.