देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बकरी पालन का रोजगार अब दिन प्रतिदिन तेजी से बढ़ता जा रहा है. बकरी पालन का काम गांव में बीते कई दशकों से चलता आ रहा है, लेकिन मौजूदा समय में बकरी पालन एक बेहतर कारोबार के रूप में तेजी से विकसित हो रहा है. बकरी पालन के व्यवसाय से जुड़कर कई किसान आर्थिक तौर पर मजबूत भी हुए हैं. लेकिन पशुपालकों को कई बार बकरियों के बांझपन की समस्या से जूझना पड़ता है. इस बीमारी का असर बकरियों या अन्य पशुओं के साथ-साथ पशुपालकों की आर्थिक स्थिति पर भी दिखाई देता है. जिस वजह से पशुपालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. दरअसल, बांझ पशुओं को पालना एक आर्थिक बोझ है. ऐसे में आइए जानते हैं कैसे कर सकते हैं इस समस्या से बचाव.
आपको बता दें कि एक बार जब कोई बकरी अपना बच्चा देती है तो अगले बच्चे के जन्म तक बकरी पालक के लिए यह बोझ बन जाती है, जिससे बकरी पालक को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है. गर्भपात एक संक्रामक रोग है और इस संक्रामक रोग के मुख्य कारण ब्रुसेलोसिस, सालमोनेलोसिस, विबियोसिस, क्लैमाइडियासिस आदि हैं.
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बकरियों के बांझपन की समस्या सबसे ज्यादा रोगग्रस्त बकरी के गर्भाशय स्राव (uterine discharge), पेशाब, गोबर, नाल आदि के माध्यम से बीमारी बाहर निकलते हैं. फिर अन्य पशुओं को भी संक्रमित कर देते हैं. यह संक्रमण स्राव से सना हुआ चारा खाने, पशु की योनि चाटने और एक दूसरे के करीब आने से होता है. जिसके कारण अन्य जानवर भी इस रोग से पीड़ित हो जाते हैं और उनमें भी बांझपन की समस्या हो जाती है. बात करें इस रोग की पहचान कि तो रोगग्रस्त बकरियों में मुख्य लक्षण बेवक्त गर्भपात है. गर्भपात से पहले योनि सूज जाती है और भूरे रंग का स्राव होता है. साथ ही थन सूज कर लाल हो जाता है.
इस बीमारी के इलाज और रोकथाम के लिए बीमार बकरियों को पूरी तरह से अलग कर देना चाहिए. उनके बाड़ों को साफ-सुथरा रखना चाहिए. बीमार बकरी के पिछले हिस्से को रेड मेडिसिन आदि कीटनाशकों से साफ करना चाहिए और कूड़े के डिब्बे में फ्यूरी बोलस या हैबिटिन पेसरी आदि दवाएं भी डालनी चाहिए. उचित निदान के बाद रोगग्रस्त नर-मादा को समूह में नहीं रखना चाहिए और प्रजनन के लिए भी उनका उपयोग नहीं करना चाहिए.