मौजूदा समय में किसान खेती के साथ-साथ बड़े स्तर पर मछली पालन भी कर रहे हैं. इससे किसानों की अच्छी आमदनी हो रही है. इसे बढ़ावा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें भी कई योजनाएं चला रही हैं. लेकिन सवाल उठता है, जब तक किसानों के पास मछली पालन से जुड़ी जरूरी जानकारी नहीं होगी, वो सही तरह से मछली पालन नहीं कर पाएंगे. ऐसे में किसानों को मछली पालन में आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. इसलिए आज हम मछली पालकों बताएंगे कि अगर मछली के जीरे का वजन तेजी से बढ़ाना है तो किस चमत्कारी खाद का प्रयोग करें. साथ ही ये भी बताएंगे कि इस खाद का इस्तेमाल कैसे करें.
बात करें इस चमत्कारी खाद की तो वो महुआ खली हैं. इस खली का इस्तेमाल मौसमी तालाबों में मांसाहारी प्रजातियों और अन्य कीड़े-मकोड़ों को मारने के लिए किया जाता है. जिन तालाबों में हानिकारक मछलियां हों उन तालाबों में मछलियों को मारने के लिए 2000 से 2500 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से महुआ खली का इस्तेमाल करें.
इससे बड़ी मछलियों को काफी फायदा होता है क्योंकि इससे मछलियों के वजन बढ़ने में भी मदद मिलती है. अगर तालाब से हानिकारक जीवों और छोटी मछलियों को नहीं हटाया जाए तो बड़ी मछलियों का जीरा ठीक से नहीं बढ़ पाएगा और मछली पालन में घाटा उठाना पड़ सकता है. साथ ही तालाब की सफाई ठीक से नहीं हो तो मछलियों का जीरा नहीं बढ़ पाएगा. इसके लिए महुआ खली का प्रयोग किया जाता है.
महुआ खली के इस्तेमाल में मछली पालक को ये ध्यान देना चाहिए कि इसके इस्तेमाल के बाद तालाब से 2 से 3 हफ्ते तक नए मछली को न डालें. वहीं, महुआ खली डालने के तीन सप्ताह बाद तालाब में साफ पानी भरें. फिर उसमें 250 से 300 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से चूना डालें. चूना डालने के एक सप्ताह बाद तालाब में गोबर की खाद डालना चाहिए.
इन सभी कामों को करने के बाद तालाब में नए जीरे को डालें, फिर तालाब में महुआ खली खाद को डालें. इससे जीरे के वजन में तेजी से बढ़ोतरी होती है. इसके अलावा मछलियों का साइज बढ़ाने के लिए आहार के रूप में चावलकी भूसी और सरसों की खली को बराबर मात्रा में मिला कर उसका इस्तेमाल कर सकते हैं.