देश के ग्रामीण क्षेत्र में किसानों के बीच मछली पालन का क्रेज काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है. लेकिन मछली पालन में कई बार पशुपालकों को नुकसान भी हो जाता है. ऐसा तब होता है, जब तालाब की मछलियों में कोई बीमारी हो जाए. दरअसल, तालाब में सफाई और चूना की व्यवस्था सही तरीके से होने पर मछलियों को बीमारियों से बचाया जा सकता है. हालांकि, कई बार मछली पालक लापरवाही कर जाते हैं, जिससे बीमारियां फैलने लगती हैं और मछलियों की मौत हो जाती है. ऐसे में आइए आज जानते हैं मछलियों को होने वाली पांच खतरनाक बीमारियों के बारे में. साथ ही सस्ता और टिकाऊ इलाज भी जान लेते हैं.
ड्रॉप्सी बीमारी: इस बीमारी में मछली के किसी भी अंग में पानी सा भर जाता है, जिससे वो बीमार होकर पानी के अंदर ही रहती है और कुछ दिनों में उसकी मौत हो जाती है. ऐसे में इस बीमारी के लक्षण दिखने पर मछलियों को तालाब से बाहर निकाल देना चाहिए. बता दें कि ये बीमारी उन तालाबों में अधिक होती है जहां पर्याप्त भोजन की कमी होती है. ऐसे में बचाव के लिए मछलियों को पर्याप्त भोजन देना चाहिए. इसके अलावा तालाब में 15 दिन के अंतराल में 100 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से चूना डालें.
सफेद चकत्तों की बीमारी: मछलियों में सफेद चकतों की बीमारी बहुत खतरनाक मानी जाती है. इस बीमारी में मछलियों के शरीर पर सफेद चकत्ते पड़ जाते हैं, जिसके बाद मछलियां बीमार हो जाती हैं और कुछ दिनों में मरने लगती हैं. वहीं, इसके उपचार के लिए कुनीन की दवाई का प्रयोग करना चाहिए.
गिलरॉट बीमारी: गिलरॉट मछलियों की एक खतरनाक बीमारी है. इस बीमारी में मछलियों के गलफड़े सड़ जाते हैं और मछलियां मर जाती हैं. ऐसे में गिलरॉट से ग्रसित मछलियों को तालाब से बाहर निकाल दें और मछलियों का भोजन बंद कर दें. वहीं, इस बीमारी से बचाव के लिए तालाब में ताजा पानी भरवाएं. साथ ही बीमार मछलियों को एंटी ब्राइन घोल में नहलाएं.
लार्निया बीमारी: मछलियों में लार्निया की बीमारी बहुत खतरनाक मानी जाती है. इस बीमारी में लार्निया कीट मछली के शरीर से चिपक जाती है और मछली के शरीर पर घाव बना देती है. इस बीमारी से बचाव के लिए तालाब में पोटेशियम परमैंगनेट का प्रयोग करना चाहिए.
फफूंद बीमारी: अगर मछलियों के शरीर पर कोई चोट या रगड़ लग जाती है तो उस पर रुई की तरह फफूंद लग जाती है जिससे मछलियां सुस्त होकर पानी की सतह पर आ जाती हैं. ऐसे में इस बीमार से बचाव के लिए मछलियों को 5 से 10 मिनट तक नमक का घोल, नीला थोथा का घोल और पोटेशियम परमैग्नेट के घोल से नहलाएं.