Profit from Dung: दूध से पहले मिल रहे गोबर के दाम, जानें पशुपालकों की कैसे हो रही डबल इनकम 

Profit from Dung: दूध से पहले मिल रहे गोबर के दाम, जानें पशुपालकों की कैसे हो रही डबल इनकम 

Profit from Dung दूध के साथ-साथ ही वक्त से गोबर का पेमेंट भी हाथों-हाथ मिल रहा है. इतना ही नहीं बाद में खेतों के लिए सस्ते दाम पर तरल गोबर वापस मिल जाता है. इस तरह कमाई के साथ खेतों की मिट्टी और पर्यावरण की हैल्थ भी बन रही है. देश की कई बड़ी डेयरी कोऑपरेटिव पशुपालकों से रोजाना हजारों टन गोबर खरीद रही हैं. 

नासि‍र हुसैन
  • Delhi,
  • Nov 17, 2025,
  • Updated Nov 17, 2025, 1:10 PM IST

Profit from Dung गोबर के दिन फिर चुके हैं. और अगर गोबर देसी गाय का है तो फिर वो ब्रॉउन गोल्ड है. मतलब उसे बेचकर कभी भी खरे नोट हासिल किए जा सकते हैं. यही वजह है कि आज पशुपालकों को दूध से पहले गोबर के दाम मिल रहे हैं. कई ऐसे उदाहरण हैं जहां दूध से ज्यादा गोबर से कमाई हो रही है. इसीलिए अब गोबर न तो फिकता है, और न ही उसे जलाया जा रहा है. पशुपालक जब सुबह डेयरी प्लांट पर दूध बेचने जाते हैं तो साथ में गोबर लेकर भी जाते हैं. 
प्लांट में एंट्री करने के साथ ही पहले गोबर बिकता है. बेचे गए गोबर का पेमेंट भी खाते में तुरंत ही हो जाता है. बड़ी-बड़ी डेयरी कोऑपरेटिव पशुपालकों से गोबर खरीद रही हैं. वाराणसी दुग्ध संघ हर महीने दो हजार टन गोबर की खरीद कर रहा है. वजह है कि आम के आम और गुठलियों के दाम की तर्ज पर गोबर का इस्तेमाल किया जा रहा है. 

दूध के साथ गोबर से ऐसे हो रही कमाई 

ग्रामीण क्षेत्रों में डेयरी कोऑपरेटिव हर रोज पशुपालकों से दूध खरीदती हैं. 
कई बड़ी कोऑपरेटिव ने दूध संग गोबर की खरीदारी भी शुरू कर दी है. 
पशुपालक रोजाना सुबह दूध के साथ-साथ गोबर लेकर भी आते हैं. 
डेयरी कोऑपरेटिव पशुपालकों से 50 पैसे किलो के हिसाब से गोबर खरीद रही हैं. 
वाराणसी दुग्ध संघ का वाराणसी प्लांट हर महीने करीब दो हजार टन गोबर खरीदता है.
इस प्लांट को गुजरात की बनास डेयरी चला रही है. 
हाल ही में प्लांट ने पशुपालकों को गोबर का 2.5 करोड़ रुपये का भुगतान किया है. 

डेयरी प्लांट इस तरह कर रहे गोबर का इस्तेमाल 

  • वाराणसी के प्लांट पर रोजाना 1.35 लाख लीटर दूध बेचते हैं. 
  • प्लांट में दूध खरीद का ये आंकड़ा डेढ़ लाख लीटर को छूने वाला है. 
  • प्लांट की प्रोसेसिंग क्षमता भी दो लाख लीटर रोजाना की हो चुकी है. 
  • प्लांट में मिल्क प्रोडक्ट और वाराणसी की पारंपरिक मिठाइयों भी बनेंगी. 
  • प्लांट में खरीदे गए गोबर से बायोगैस तैयार की जाती है. 
  • बायोगैस का इस्तेमाल मिल्क प्रोसेसिंग में किया जाता है. 
  • बायोगैस प्लांट थर्मल और इलेक्ट्रि‍क दोनों ही जरूरतों को पूरा कर रहा है. 
  • मिल्क प्रोसेसिंग में गोबर गैस का इस्तेमाल होने से 50 पैसे लीटर की बचत हो रही है. 
  • गोबर गैस की वजह से मीथेन गैस का उत्सर्जन भी कम हो रहा है. 
  • गोबर बिकने की वजह से गांव भी गंदगी से मुक्त स्वच्छ हो गए हैं. 
  • गैस बनने के बाद गोबर की स्लरी बनती है. 
  • बची हुई स्लरी को वापस पशुपालकों को ही बेच दिया जाता है. 
  • जिन पशुपालकों से दूध खरीदा जाता है उन्हीं को सस्ते दाम पर स्लरी बेची जाती है. 

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