PMMSY 56 गांव की एक पीढ़ी तो इस उम्मीद में इस दुनिया को छोड़ गई कि उनकी जमीन के बदले शायद उन्हें स्थायी रोजगार या नौकरी मिलेगी. दूसरी पीढ़ी भी जवान होते ही रोजी-रोटी की तलाश में एक शहर से दूसरे शहर और राज्यों में भटकने लगी. लेकिन दूसरी पीढ़ी को भी राहत मिली तो पूरे 61 साल बाद. छह दशक से भी ज्यादा वक्त के बाद अब गांव के लोगों को अपनी ही जमीन पर मछली पालन करने का मौका मिला है. और ये सब मुमकिन हुआ है केन्द्र और राज्य सरकार की बदौलत.
केन्द्र की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) और झारखंड सरकार के सहयोग से गांवों के महिला-पुरुष एक खास तकनीक के साथ मछली पालन कर रहे हैं. अब रोजी-रोटी का हाल ये है कि बिहार और झारखंड के कारोबारी उनके गांव में मछली खरीदने आते हैं. डिमांड इतनी है कि पहले से मोबाइल पर ही मछली की बुकिंग हो जाती है.
हजारीबाग में बुंडू गांव का रहने वाला 31 साल का पिंटू यादव राजस्थान में ट्रक चलाता था. इस दौरान कई बार ट्रक से वो मछली भी यहां से वहां ले गया. तभी उसे पता चला कि मछली पालन में खासा मुनाफा है. पिंटू यादव ने किसान तक को बताया, ‘मछली पालन के बारे में जब ये पता चला कि इसमे बहुत मुनाफा है तो मैंने 2017 में गांव आकर तालाब में मछली पालन शुरू कर दिया. पांच हजार रुपये का मछली का बीज लेकर आया और जब वो बड़ी और वजनदार हो गईं तो बाजार में बेच दीं. जिसके बदले हाथ में 50 हजार रुपये आए. इसी दौरान मछली पालन को और अच्छे से करने के लिए रांची में मछली पालन विभाग से ट्रेनिंग ली. जब विभाग के संपर्क में आया तो सरकारी योजनाओं के तहत मदद मिलना शुरू हो गई. साल 2017-18 में झारखंड सरकार से दो केज मिले, उसके बाद 2021 में PMMSY योजना के तहत आठ केज मिले. एक केज में एक बार में चार टन तक मछली उत्पादन हो जाता है. हम पंगेशियस और मोनोसेस तिलापिया मछली पालन करते हैं. ये एक साल में दो बार बाजार में बेचने के लिए तैयार हो जाती हैं. 100 से 120 रुपये किलो के हिसाब से मछली बाजार में बिक जाती हैं. जिसमे से 40 फीसद मुनाफा हमे मिल जाता है.’
हजारीबाग के जिला मत्स्य अधिकारी (डीएफओ) प्रदीप कुमार ने किसान तक को बताया, ‘साल 1952-52 में तिलैया डैम निर्माण के दौरान 56 गांव की जमीन ली गई थी. तभी से इस गांव के लोग दूसरे कामों में लगे हुए थे. लेकिन 2017-18 से गांव के लोगों को मछली पालन से जोड़ा गया. जिस तिलैया डैम में गांव के लोगों की जमीन गई थी उसी में उन्हें केज दिए गए. आज साल 2012-13 से गांव के लोग डैम के पानी में केज की मदद से मछली पालन कर रहे हैं. सरकारी योजनाओं का फायदा देते हुए उन्हें केज कल्चर तकनीक से जोड़ा जा रहा है. गांव के लोगों ने एक सोसाइटी बनाई हुई है. इसी सोसाइटी के मदद से तैयार मछली बेची जाती है. तिलैया डैम में आज 2265 केज हैं. एक केज की लागत डेढ़ लाख रुपये आती है. पांच सोसाइटी यहां काम कर रही हैं. सोसाइटी के सदस्यों की संख्या 958 है.’
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