देश के पशुपालन सेक्टर में दुधारू पशुओं के लिए एक खास चारे रेड अल्गी पर बात हो रही है. बात होने की वजह है पशुपालकों की इनकम डबल करने को लेकर. क्योंकि इसे पशु को खिलाने से जहां पशु को खुराक मिलेगी वहीं इसे खिलाने पर पशुपालकों को नकद इनकम भी होगी. और बड़ी बात ये है कि इसे पशुओं को खिलाना भी जरूरी होगा. क्योंकि डेयरी सेक्टर में अब ग्लोबल वार्मिंग को लेकर खूब चर्चाएं हो रही है. डेयरी एक्सपर्ट का कहना है कि मीथेन गैस उत्सर्जन भी इसकी एक बड़ी वजह है.
और पशुपालन में मीथेन गैस उत्सर्जन बड़ी मात्रा में होने लगा है. जानकारों की मानें तो एनर्जी प्रोडयूसर, ट्रैफिक और खेती-पशुपालन मीथेन गैस उत्सर्जन को बढ़ाने में पहले, दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं. एक्सपर्ट बताते हैं कि छोटे जुगाली करने वाले पशुओं के मुकाबले गाय-भैंस से मीथेन गैस का उत्सर्जन ज्यादा होता है. इसे लेकर बहुत ही गंभीरता के साथ काम चल रहा है, इसी के चलते पशुओं के चारे में कुछ खास बदलाव किए जा रहे हैं.
एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि जब पशुपालक रेड अल्गी वाला खास एनिमल फीड खरीदते हैं तो फीड की बोरी में अंकों वाला एक कोड निकलता है. इस कोड को कंपनी के ऐप पर जाकर सबमिट करना होता है. इस अंकों वाले कोड से पता चल जाता है कि पशुपालक ने अपने पशुओं को कितना रेड अल्गी वाला फीड खिलाया जिससे मीथेन गैस का उत्सर्जन कम करने में मदद मिली. इसकी मदद से वाल्यूम में ये भी पता चल जाएगा कि पशुपालक ने कितनी गैस का उत्सर्जन होने से रोक लिया. उसी आधार पर पशुपालक को क्रेडिट नंबर मिल जाएंगे. इसके बाद पशुपालक इन नंबरों को बेचकर नकद मुनाफा भी कमा सकता है.
एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि गाय-भैंस सबसे ज्यादा मुंह के रास्ते मीथेन गैस का उत्सर्जन करती हैं. वो जिस तरह का चारा खाती हैं उसे चबाने की पहली स्टेज के चलते ही मीथेन गैस ज्यादा बनती है. लेकिन रेड अल्गी से इसे कम किया जा सकता है. लेकिन रेड अल्गी को एक कट्टे फीड में कितना मिलाना है इसका भी बहुत ख्याल रखना पड़ता है. क्योंकि अगर फीड में रेड अल्गी ज्यादा हो गई तो फिर गाय-भैंस के दूध का उत्पादन कम हो जाएगा. जबकि हमे फीड भी ऐसा तैयार करना है जो दूध उत्पादन बढ़ाने वाला हो. भारत में हर साल करीब 21.4 मिलियन टन मीथेन का उत्पादन होता है.
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