International Tea Day: यहां लगे हैं चाय के 150 साल पुराने पौधे, अरब-यूरोप में होती है एक्सपोर्ट

International Tea Day: यहां लगे हैं चाय के 150 साल पुराने पौधे, अरब-यूरोप में होती है एक्सपोर्ट

कांगड़ा टी की अपनी एक पहचान है. पहचान भी ऐसी कि देश से ज्यादा विदेशों में इसकी खासी डिमांड है. ये कांगड़ा जिले के कुछ ही इलाकों में होती है. कांगड़ा चाय का एक बड़ा हिस्सा एक्सपोर्ट हो जाता है. कांगड़ा टी का उत्पादन हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा और धर्मशाला के आसपास ही होता है. कांगड़ा में सबसे ज्यादा उत्पादन होता है. आज भी पालमपुर में 150 साल पुराने कांगड़ा टी के पौधे लगे हुए हैं.

नासि‍र हुसैन
  • NEW DELHI,
  • May 21, 2025,
  • Updated May 21, 2025, 4:45 PM IST

देश ही नहीं विदेशों में भी इस चाय की अपनी एक पहचान है. दूसरी चाय के मुकाबले इसका स्वाद भी अलग है. अगर उत्पादन की बात करें तो असम और दार्जिलिंक चाय के मुकाबले बहुत कम है. लेकिन इस खास कांगड़ा चाय के 150 साल पुराने पौधे आज भी पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में लगे हुए हैं. इस चाय की पहचान कांगड़ा टी के नाम से है. स्वाद इतना खास है कि कांगड़ा से अरब और यूरोप के अलावा दूसरे देशों को भी एक्सपोर्ट की जाती है. कांगड़ा के कुछ ही इलाकों में इस चाय का उत्पादन होता है. 

लेकिन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयो रिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश कांगड़ा टी पर लगातार रिसर्च कर रहा है. संस्थान ने कांगड़ा की चाय की पत्तियों से चाय के अलावा टी कोल्ड ड्रिंक्स और टी वाइन भी बनाई है. संस्थान से जुड़े साइंटिस्ट का कहना है कि कांगड़ा टी की यूरोपियन देशों में बहुत डिमांड रहती है. कांगड़ा टी से ही कॉस्मेटिक प्रोडक्ट भी बनाए जा रहे हैं. कोरोना के खतरनाक दौर में कांगड़ा टी से हैंड सेनेटाइजर भी बनाया गया था. आज इंटरनेशनल टी डे के मौके पर हम आपको इसकी और भी खूबियों के बारे में बताने जा रहे हैं.

पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड में कांगड़ा टी उगाने की तैयारी  

आईएचबीटी के साइंटिस्ट डॉ. सनत सुजात सिंह ने किसान तक को बताया कि हिमाचल प्रदेश में खासतौर पर कांगड़ा और धर्मशाला में कांगड़ा टी का उत्पादन होता है. दो हजार हेक्टेयर जमीन पर कांगड़ा टी उगाई जाती है. करीब 10 लाख किलो चाय का उत्पादन होता है. चाय के इन पौधों को 150 साल पहले अंग्रेजों ने लगाया था. खास बात ये है कि कांगड़ा टी का इस्तेमाल असम और दार्जिलिंग की चायपत्ती की तरह से नहीं होता है. ये हर्बल और ब्लैक टी की तरह से इस्तेमाल की जाती है. अरब और यूरोप समेत कई और देशों में कांगड़ा टी एक्सपोर्ट की जाती है. उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा एक्सपोर्ट कर दिया जाता है. डिमांड को देखते हुए कांगड़ा का उत्पादन पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड में करने की कोशिश चल रही है. इसके लिए आईएचबीटी हर तरह की मदद किसानों को दे रही है. 

कांगड़ा टी के लिए आईएचबीटी ने बनाई मशीन 

डॉ. सनत ने बताया कि कांगड़ा टी का उत्पादन न बढ़ने के पीछे एक सबसे बड़ी वजह चाय बागान में काम करने वाले मजदूरों की कमी भी है. चाय की पत्तिीयां तोड़ने के लिए जरूरत की संख्या में मजदूर वक्त पर नहीं मिलते हैं. इसी परेशानी को देखते हुए आईएचबीटी ने चाय की पत्तियां तोड़ने के लिए दो तरह की मशीन बनाई हैं. इसमे एक मशीन ऐसी है जिसे एक ही आदमी ही चला सकता है. इसके इस्तेमाल से हाथ से पत्ती तोड़ने के मुकाबले 10 गुना काम ज्यादा होता है. इसी तरह से दूसरी मशीन को दो आदमी चलाते हैं और इससे 20 गुना काम ज्यादा होता है.    

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