ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि देश में इस बार मॉनसून के दौरान सामान्य से कहीं ज्यादा बारिश हो सकती है. बता दें कि देश के उत्तर-पश्चिम, उत्तर-पूर्व और मध्य इलाके इस बार सर्दियों में कमोबेश सूखे ही रहे हैं. वहीं यह भी अनुमान है कि इन क्षेत्रों में इस साल बसंत और गर्मियां कुछ ज्यादा ही गर्म रह सकती हैं. यदि इन मौसमी बदलावों के कारणों पर नजर डालें तो जहां अनुमान है कि साल के अंत तक बनने वाली ला नीना की घटना बारिश में वृद्धि की वजह बन सकती हैं. वहीं दूसरी तरफ अल नीनो और ग्लोबल वार्मिंग का मिला जुला प्रभाव बढ़ते तापमान की वजह बन सकता है. डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी गई है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अल नीनो और ला नीना दोनों ही भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में घटित होने वाली मौसमी हलचलें हैं. यह दोनों ही घटनाएं अल नीनो दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) नामक घटना के दो विपरीत चरण हैं. जहां अल नीनो भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के पूर्वी और मध्य भागों के तापमान में वृद्धि से जुड़ा है, वहीं दूसरी तरफ ला नीना तापमान में आने वाली गिरावट को दर्शाता है.
ये भी पढ़ेंः Weather News (12 Feb): हिमाचल में बदलेगा मौसम का मिजाज, 17-20 फरवरी तक बर्फबारी की संभावना
यह दोनों ही घटनाएं करीब-करीब पूरी दुनिया को प्रभावित करती है. यदि भारत में मॉनसूनी पर पड़ने वाले इसके असर को देखें तो जहां अल नीनो, मॉनसून को कमजोर करता है, वहीं दूसरी तरफ ठंडा चरण, ला नीना, बारिश में इजाफा करता है. हालांकि ऐसा नहीं है कि ला नीना हमेशा ऐसा ही प्रभाव डालेगा, इसका भी चरित्र बदल सकता है. उदाहरण के लिए भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में बने ला नीना के बावजूद भारत में मार्च से जून 2022 के बीच भीषण गर्मी और लू का कहर देखा गया था.
वैज्ञानिकों के मुताबिक भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में मौजूदा अल नीनो की अप्रैल 2024 तक विदाई हो सकती है. नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नए अपडेट के अनुसार, अप्रैल से जून तक ईएनएसओ तटस्थ परिस्थितियों (न तो एल नीनो और न ही ला नीना) के एक संक्षिप्त चरण के बाद, जुलाई में दोबारा ला नीना में बदल सकता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल ला नीना की उम्मीद है लेकिन अहम सवाल यह है कि, यह ला नीना कितना मजबूत होगा. उनके अनुसार अल नीनो मई के आसपास अचानक से कमजोर पड़ सकता है और एक मजबूत ला नीना में बदल सकता है. अनुमान है कि इसकी वजह से दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के उत्तरार्ध में भारत के अधिकांश हिस्सों में औसत से अधिक बारिश हो सकती है, जो आम तौर पर जून में शुरू होती है और हाल के वर्षों में अक्टूबर तक बढ़ रही है. इसकी वजह से भारत में औसत बारिश पर सकारात्मक प्रभाव पड़ना चाहिए, लेकिन उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों को फिर से बारिश में कमी का सामना करना पड़ सकता है.
ये भी पढ़ें: Farmers Protest: सरकार के साथ बातचीत बेनतीजा, आज 10 बजे दिल्ली कूच करेगा किसानों का मार्च
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today