खबर हिमाचल प्रदेश के पालमपुर की है. पालमपुर का नजारा देवदार (Deodar Trees) के पेड़ों के लिए मशहूर है. देवदार के पेड़ यहां एक अलग ही छटा पेश करते हैं. लेकिन इन पेड़ों को आजकल किसी की नजर लग गई है. मौसमी मार कहें या कुछ और, क्या वजह है जो पालमपुर के देवदार सूखते जा रहे हैं. उनकी हरियाली मरी सी जा रही है. इस बारे में खोजबीन जारी है और वन विभाग के अधिकारी समाधान ढूंढने में लगे हैं. पालमपुर के देवदार (Palampur Deodar) पेड़ों की हरियाली तेजी से खत्म हो रही है और यहां के कई इलाकों में ये पेड़ सूख रहे हैं. ऐसे में उस रहस्यमयी बीमारी का पता लगाया जा रहा है जो देवदार के पेड़ों को अंदर-अंदर खाए जा रही है.
हिमाचल प्रदेश का पालमपुर पूरी दुनिया में विख्यात है. इसके पीछे एक बड़ी वजह यहां के हरे-भरे देवदार (Deodar Trees) के पेड़ और उसके जंगल हैं. देश-विदेश के सैलानी इन पेड़ों की हरियाली और खूबसूरती निहारने के लिए पालमपुर आते हैं. लेकिन ये हरे पेड़ अभी किसी रहस्यमयी बीमारी से जूझ रहे हैं. रहस्यमयी इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि बीमारी का कोई अता-पता नहीं है और पेड़ सूखते जा रहे हैं.
'दि ट्रिब्यून' की एक रिपोर्ट कहती है, पालमपुर के अलग-अलग हिस्सों में पिछले 10 साल में 200 से अधिक देवदार (Palampur Deodar) के पेड़ सूख गए हैं. जिन इलाकों में देवदार के पेड़ सूखे हैं उनमें पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस, रोटरी भवन, तहसील ऑफिस, बस स्टैंड, एमसी ऑफिस और सेंट पॉल स्कूल शामिल हैं. अभी तक वन अधिकारी इस रहस्यमयी बीमारी का पता नहीं लगा पाए हैं जिससे पेड़ लगातार मुर्झा रहे हैं. हालांकि वजह जानने की कोशिशें जारी हैं.
पालमपुर डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर नितिन पाटिल कहते हैं, अधिकांश सूखे हुए पेड़ पुराने हैं और उन्होंने अपनी जिंदगी पूरी कर ली है. हालांकि हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि साल दर साल देवदार के पेड़ क्यों सूख रहे हैं. जहां तक म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन एरिया की बात है, तो इन पेड़ों की देखरेख और सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी निगम आयुक्त की है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल मई महीने में एमसी परिसर में रातोंरात 8 देवदार (Deodar Trees) के पेड़ काट दिए गए, जो कि कायदे-कानूनों का घोर उल्लंघन है. आधिकारिक सूत्रों ने इस बात की तस्दीक की है कि पेड़ों की कटाई के लिए राज्य सरकार से कोई इजाजत नहीं ली गई थी. यह मुद्दा मीडिया में कई दिनों तक छाया भी रहा, मगर कोई कार्रवाई नहीं की गई. पेड़ों को काटने के लिए प्रदेश की ट्री कमेटी से अनुमति लेनी होती है जिसका अंतिम फैसला प्रदेश कैबिनेट से होता है.
इस बीच, कई स्वयंसेवी संगठनों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने हिमाचल सरकार से आग्रह किया है कि देवदार के पेड़ों को बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं. सरकार से मांग की गई है कि इसके लिए फौरी तौर पर जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए क्योंकि ये पेड़ शहर की शान हैं. इन पेड़ों को पालमपुर में 100 साल पहले अंग्रेजों ने लगाया था. पालमपुर के देवदार के पेड़ किसी विरासत से कम नहीं और शहर के हर नागरिकों को इसकी रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध बताया जाता है.
देवदार (Palampur Deodar) के किसी पेड़ को पूरी तरह से विकसित होने में 70 से 80 साल लगते हैं. पालमपुर में 3,000 से 4,000 फीट की ऊंचाई पर देवदार के पेड़ उगाए जाते हैं. अगर इन पेड़ों को बचाने के लिए जल्दी ठोस कदम नहीं उठाए गए तो इस पूरे शहर की रौनक खत्म हो जाएगी. लिहाजा जिस रौनक को देखने देश-विदेश के टूरिस्ट आते हैं, उनकी आवक भी बंद होने का खतरा मंडरा रहा है.
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