आप कुछ भी कहें, लेकिन इस बार दक्षिण पश्चिम मॉनसून का रुख कुछ बदला हुआ जरूर है. जिस तेजी के साथ बारिश होनी चाहिए, वैसी नहीं देखी जा रही. एक्सपर्ट इस गड़बड़ी का ठीकरा जलवायु परिवर्तन या चक्रवात बिपरजॉय पर फोड़ रहे हैं. मॉनसून का रुख कितना बदला हुआ है, इसे समझने के लिए रविवार की घटना को देख सकते हैं. उस दिन दिल्ली और मुंबई में एक साथ मॉनसून की आमद हुई जो कि अक्सर ऐसा नहीं होता. 21 जून, 1961 के बाद बीते रविवार को ही ऐसा हुआ कि दोनों महानगरों में एक साथ मॉनसून ने दस्तक दी. इन दोनों शहरों के साथ विचित्र बात ये रही कि दिल्ली में मॉनसून दो दिन पहले आ गया जबकि मुंबई में इसकी दस्तक तकरीबन दो हफ्ते देरी से रही. अब इंतजार इस बात का है कि मॉनसून पूरे देश को कवर करे ताकि बारिश का सही-सही सिलसिला शुरू हो और खेती-बाड़ी का आगाज हो सके. लेकिन अगली चिंता जुलाई की है जिसमें अल-नीनो के आने का खतरा है.
आज की तारीख में मॉनसून की उत्तरी सीमा (एनएलएम) पोरबंदर, अहमदाबाद, उदयपुर, नारनौल, फिरोजपुर से गुजर रही है और आईएमडी का कहना है कि अगले दो दिन में पंजाब, गुजरात, राजस्थान के कुछ और हिस्सों, हरियाणा के बाकी हिस्सों और इसके आगे बढ़ने के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं. इस बीच, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली में मॉनसून की तेजी 'जोरदार' रही है. इन स्थानों पर बारिश 'सामान्य' से अधिक और व्यापक होने की संभावना है.
आम तौर पर मॉनसून केरल में एक जून तक, मुंबई में 11 जून तक और दिल्ली में 27 जून तक पहुंच जाता है. इस साल हालांकि मॉनसून केरल में आठ जून को पहुंचा है, इस तरह उसके आगमन में आठ दिन की देरी देखी गई. मॉनसून पर भारत का लगभग आधा कृषि क्षेत्र निर्भर करता है. इसमें देश में चार महीने तक बारिश होती है. जून-सितंबर तक देश में हुई बारिश से जलाशय भर जाते हैं, भूजल बढ़ने में मदद मिलती है और बिजली उत्पादन क्षमता भी बढ़ जाती है. मॉनसून देश की अर्थव्यवस्था और लोगों की खुशहाली बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
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हालांकि, इस साल इसका रुख कुछ असामान्य रहा है. इसने लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के बड़े हिस्से सहित उत्तर भारत के बड़े भाग को निर्धारित समय से पहले कवर किया है, लेकिन पश्चिमी और मध्य भागों में दो सप्ताह पीछे रहा है.
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि बिपरजॉय ने अधिकांश नमी को सोख लिया है जिससे दक्षिण भारत और आसपास के पश्चिमी और मध्य भागों में मॉनसून प्रभावित हुआ है. इससे पश्चिमी तट पर इसकी गति धीमी हो गई. लेकिन बंगाल की खाड़ी के ऊपर बने बिपरजॉय के प्रभाव ने मॉनसून को उत्तर पूर्व और पूर्वी भारत में बारिश कराने में मदद की है. बंगाल की खाड़ी के ऊपर बिपरजॉय चक्रवात के कारण एलपीए बना जिसने मॉनसूनी बारिश में मदद की.
विशेषज्ञ कहते हैं कि मॉनसून के देर से आने का मतलब ये नहीं होता कि बारिश कम होगी, लेकिन आने वाले समय में अल-नीनो इसको प्रभावित कर सकता है. अल-नीनो भारत में मॉनसून को कमजोर कर सकता है और मौसम को सूखा बना सकता है. स्काईमेट के महेश पलावत के अनुसार, “अल-नीनो का प्रभाव जुलाई के पहले सप्ताह के आसपास देखने लायक होगा. सूखे जैसी स्थिति तो नहीं होगी लेकिन बारिश कम होगी और पूर्वी और उत्तर पश्चिम भारत में सामान्य से कम बारिश होगी. इसका असर सीज़न के अंत तक जारी रहेगा.”
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दूसरी ओऱ, आईएमडी ने कहा है कि अल नीनो की स्थिति के बावजूद पूरे देश में 'सामान्य' बारिश होने की उम्मीद है, लेकिन पूर्वी और उत्तर-पश्चिम भारत में कम बारिश होगी. दूसरे शब्दों में, पूरे देश में 'सामान्य' बारिश हो सकती है, लेकिन कुछ हिस्सों में अधिक बारिश होगी और कुछ हिस्सों में कमी होगी.
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