मॉनसून से जुड़ी दो खबरें आ रही हैं. पहली खबर में कहा गया है कि अगस्त के शुरुआती दो हफ्तों में मॉनसून की बारिश सामान्य से 36 परसेंट कम है. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि मॉनसून का ब्रेक चल रहा है जिसमें देश के कुछ हिस्सों को छोड़ दें तो बारिश बंद है. दूसरी खबर अल-नीनो को लेकर है. इसमें ऑस्ट्रेलिया के मौसम विभाग ने कहा है कि दुनिया में सितंबर से लेकर नवंबर के बीच अल-नीनो का असर देखा जाएगा. आइए दोनों खबरों के बारे में विस्तार से समज लेते हैं.
सबसे पहले बात मॉनसून में हुई कम बारिश की. एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगस्त के शुरुआती दो हफ्तों में बारिश कम होने से देश में मॉनसूनी बारिश में सामान्य से 36 परसेंट की कमी दर्ज की गई है. इसके अलावा उत्तर-पश्चिम, मध्य और दक्षिणी हिस्सों में बारिश की कमी 70 परसेंट तक पहुंच गई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून अभी हिमालय की तलहटी और उससे आसपास के इलाकों में एक्टिव है जबकि देश के अन्य हिस्सों में इसका सक्रिय होना बेहद जरूरी है क्योंकि इन क्षेत्रों में खरीफ फसलों की बुआई का काम 90 फीसद तक पूरा हो चुका है. बुआई के बाद फसलों में सिंचाई की जरूरत होती है. अगर फसलों को समय पर पानी नहीं मिले उसके सूखने का खतरा रहेगा.
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मौजूदा खरीफ सीजन में सरकार ने 158.06 मिलियन टन खाद्यान्न के उत्पादन का लक्ष्य तय किया है जिसमें 111 मिलियन टन चावल, 9.09 मिलियन टन दाल, 13.97 मिलियन टन श्रीअन्न और 24 मिलियन टन मक्का शामिल है. ऐसे में इस लक्ष्य को पाने के लिए फसलों को पर्याप्त सिंचाई की जरूरत होगी. अगर पानी की कमी होती है तो सरकार का लक्ष्य पिछड़ सकता है.
अभी तक इन फसलों पर कोई बुरा असर नहीं देखा जा रहा है क्योंकि सिंचाई का काम अभी पिछड़ा नहीं है, लेकिन आगे खतरा पैदा हो सकता है. हालांकि एक्सपर्ट मानते हैं कि अभी फसलों को बड़ा डर कीटों और रोगों से है. असम में जूट पर हेयरी कैटरपिलर, पंजाब में कॉटन पर पिंक बॉलवर्म, व्हाइट फ्लाई, थ्रिप्स और जेसिड्स और धान पर स्टेम बोरर का खतरा अधिक मंडरा रहा है. इसके अलावा महाराष्ट्र में मक्के पर फॉर आर्मी वर्म का खतरा है. एक्सपर्ट का कहना है कि अभी पूरे देश में खाद और कीटनाशकों की उपलब्धता पर्याप्त है जिससे किसानों को चिंता करने वाली कोई बात नहीं.
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दूसरी खबर अल-नीनो को लेकर है. इसके बारे में ऑस्ट्रेलिया के मौसम विभाग ने कहा है कि सितंबर से नवंबर के बीच अल-नीनो का असर देखा जा सकता है. इससे दुनिया के कई हिस्सों में मौसम सूखा रहेगा. इससे पहले वर्ल्ड मेटरोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन ने कहा था कि इस बार सात साल बाद अल-नीनो का गंभीर असर देखा जाएगा. इसमें कहा गया है कि दुनिया के दक्षिणी हिस्से में अल-नीनो का असर प्रभावी ढंग से देखा जा सकता है.
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