चक्रवात मिचौंग का असर सिर्फ तमिलनाडु ही नहीं, बल्कि ओडिशा में भी देखने को मिल रहा है. गंजम जिले में फिर से भारी बारिश की आशंका को देखते हुए प्रशासन ने हाई अलर्ट जारी किया है. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक, जिले में 7 से 11 सेमी तक भारी बारिश हो सकती है. ऐसे में लोगों को घर से नहीं निकलने की सलाद ही दी गई है. वहीं, कृषि विभाग ने अपने सारे अधिकारियों की छुट्टियां रद्द कर दी है. साथ ही उन्हें किसानों को उनकी फसलों की सुरक्षा के लिए गाइड करने का निर्देश दिया है.
मुख्य जिला कृषि अधिकारी सुब्रत साहू ने जिले के कलेक्टर दिव्यज्योति परिदा को कहा कि जिले में लगभग 1.79 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती होती है. हालांकि, अधिक बारिश के कारण धान की लगभग 25% फसल को नुकसान हुआ है. किसानों को कटे हुए धान को सुरक्षित स्थानों पर भंडारण करने की सलाह दी गई है. कलेक्टर ने किसानों से कहा है कि वे अपने खेत में जलभराव नहीं होने दें. खेत में जल निकासी की अच्छी तरह से व्यवस्था करें. ताकि बारिश का पानी खेत में खड़ी धान की फसल को नुकसान न पहुंचा सकें.
जिला कलेक्टर दिव्यज्योति परिदा ने किसानों से अपील की है कि अभी वे खेत में कीटनाशकों का छिड़काव नहीं करें. इससे फसलों को नुकसान पहुंच सकता है. उनका कहना है कि बंगाल की खाड़ी में चक्रवात मिचौंग फिर से सक्रिय हो गया है. ऐसे में हल्की से मध्यम बारिश फिर से शुरू होने की संभावना बढ़ गई है. हालांकि, आईएमडी ने मंगलवार को बारिश की तीव्रता में वृद्धि का अनुमान लगाया है. कलेक्टर ने संभावित भूस्खलन और जलभराव के बारे में आगाह करते हुए संवेदनशील क्षेत्रों में ब्लॉक विकास अधिकारियों और तहसीलदारों को भी अलर्ट पर रहने के लिए कहा है. खास बात यह है कि मछुआरों को 7 दिसंबर तक समुद्र में न जाने का निर्देश दिया गया है.
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दिव्यज्योति परिदा ने बताया कि बिजली और जल आपूर्ति अधिकारियों को हाई अलर्ट पर रहने का निर्देश दिया गया है. साथ ही जरूरत पड़ने पर निचले इलाकों के लोगों को चक्रवात आश्रय केंद्रों और नजदीकी सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करने की व्यवस्था की गई है. वहीं, कोरापुट जिले में भी अलर्ट जारी किया गया है. यहां कृषि कार्य ठप पड़ गया है. यहां पर सोमवार से ही रूक- रूक बारिश हो रही है. कहा जा रहा है कि बारिश की वजह से जिले में सबसे अधिक धान की फसल को नुकसान पहुंचा है. कोटपाड़ के किसान सुक्रिया प्रधान ने कहा कि हमारे पास कटे हुए धान को ऊंचे इलाकों में ले जाने और संभावित चक्रवाती तूफान से बचाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है, जिसे में 80 फीसदी से अधिक धान की कटाई हो गई है.
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