एक साल में मछली पालन से बना दी 40 लाख की कपंनी, जानिए कौन हैं काशी के सफल किसान केएन सिंह

एक साल में मछली पालन से बना दी 40 लाख की कपंनी, जानिए कौन हैं काशी के सफल किसान केएन सिंह

Fish Farming: काशी-भदोही रोड पर कपसेठी गांव निवासी केएन सिंह ने बताया कि पंगेसियस मछली की कीमत रिटेल में 150 रुपये प्रति किलो है, जबकि होलसेल में 100 रुपये के आसपास बिक जाती है. वहीं एक साल में 400 क्विंटल मछली का उत्पादन करते हैं.

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एक साल में मछली पालन से बना दी 40 लाख की कपंनी, जानिए कौन हैं काशी के सफल किसान केएन सिंहकाशी-भदोही रोड पर कपसेठी गांव निवासी किसान केएन सिंह (Photo Credit-Kisan Tak)

उत्तर प्रदेश में कई किसान मछली पालन करके लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं. इसी कड़ी में वाराणसी में मछली पालन कर रहे प्रगतिशील किसान केएन सिंह सिर्फ दो एकड़ से 40 लाख रुपये का टर्नओवर करते हैं. उनके मछली पालन के इस मॉडल को देखने अन्य राज्यों तक से लोग आते हैं. इंडिया टुडे के किसान तक से बातचीत में केएन सिंह ने बताया कि साल 2020 से मछली पालन के व्यवसाय से जुड़े थे. पहले साल से हम बंगाल की पंगेसियस मछली का पालन करते आ रहे है. क्योंकि इस मछली की डिमांड ज्यादा है, और समाज के हर व्यक्ति की पहुंच तक है. उन्होंने बताया कि पंगेसियस सिंगल कांटे की मछली होती है, जिसका सेवन हर उम्र के लोग कर लेते हैं.

एक साल में 400 क्विंटल पंगेसियस मछली का उत्पादन

काशी-भदोही रोड पर कपसेठी गांव निवासी केएन सिंह ने बताया कि पंगेसियस मछली की कीमत रिटेल में 150 रुपये प्रति किलो है, जबकि होलसेल में 100 रुपये के आसपास बिक जाती है.वहीं एक साल में 400 क्विंटल मछली का उत्पादन करते हैं. जबकि सारा खर्चा निकालने के बाद 35 से 40 लाख की मछली एक साल में बेच रहे है. हमारी मछलियों की डिमांड बहुत ज्यादा होती है. वाराणसी के लोकल मंडियों में सारी मछलियां बिक जाती है. पंगेसियस मछली का ग्रोथ रेट बहुत ज्यादा होता है. इस मछली बच्चा कोलकाता से आता है, वहीं बांग्लादेश से इस मछली की सप्लाई भारत समेत कई देशों में की जाती है.

मछली पालन में RAS तकनीक
मछली पालन में RAS तकनीक

असल में केएन सिंह, RAS तकनीक में कुछ बदलाव करके मछली पालन कर रहे हैं. यानी (Recirculatory Aquaculture System) तकनीक. तकनीक. इस तकनीक के बारे में उन्होंने बताया कि टैंक में मछली पालन किया जाता है. यहां का पानी मछली पालन करते हुए समय के साथ दूषित हो जाती है.

एक साथ मछली पालन और खेती

इस पानी को बॉयो फिल्टर के माध्यम से फिलटर कर एक स्टोरेज टैंक में सुरक्षित रखा जाता है. इस तकनीक में मछली पालन के लिए बनाये गये सभी टैंक एक सम्प टैंक और एक स्टोरेज टैंक से जुड़े होते हैं. टैंक का गंदा पानी सम्प टैंक से होते हुए बॉयो फिल्टर में जाता है. फिल्टर होने के बाद इसे स्टोरेज टैंक में रखा जाता है. इस तकनीक में आ‍वश्यकतानुसार टैंक से पानी को निकाला जा सकता है और भरा भी जा सकता है. इससे उन्हें अन्य मछली पालकों से अधिक मुनाफा होता है. इतना ही नहीं, वह एक ही पानी को तीन बार इस्तेमाल करके मछली पालन और खेती की लागत कम करने के साथ ही जल संरक्षण भी करते हैं.

जानिए इस प्रणाली के फायदे

प्रगतिशील किसान केएन सिंह ने आगे बताया कि इस तकनीक में मछली पालन इसमें बाजार की मांग के हिसाब से उत्पादन कर सकते हैं. इस तकनीक में उत्पादन को स्केल और मॉड्यूल किया जा सकता है.
तालाब की तुलना में आरएएस में बहुत कम पानी और कब जगह की आवश्यकता होती है.यह तकनीक कई प्रकार के डिजाइन में उपलब्ध है. मछली पालक इसे भौगोलिक स्थिति, जलवायु और पूंजी के आधार पर ईकाई के डिजाइन का चयन कर सकते हैं. इसमें मछलियों को खतरा नहीं होता है और रोग प्रबंधन बेहतर तरीके से होता है. इस तकनीक में कम जगह में बेहतर उत्पादन हासिल किया जा सकता है.

यूपी सरकार दे रही सब्सिडी

वाराणसी के किसान केएन सिंह ने बताया कि आरएएस निर्माण के लिए सब्सिडी दी जाती है. 2023 के बाद सब्सिडी में बदलाव किया गया है. जिसमें 25 प्रतिशत की सब्सिडी मिलती है. जिसमें महिला और एससी, एसटी के लोग शामिल है, वहीं बाकी लोगों के लिए 20 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाती है.आरएएस के निर्माण के लिए 50 लाख की परियोजना है. अधिक जानकारी के लिए इच्छुक किसान जिला मत्स्य पदाधिकारी से संपर्क कर सकते हैं. बता दें कि यूपी में मछली पालन एक बढ़ता हुआ व्यवसाय है जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. 

 

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