Fish Farming: पैसा कमाने के लिए लोग अलग-अलग तरह के बिजनेस करते हैं. आज हम आपको एक ऐसे ही बिजनेस के बारे में बताने वाले हैं, जिसमें लाखों रुपये की कमाई की जा सकती है. दरअसल, हम फिश फार्मिंग की बात कर रहे हैं. इसी कड़ी में देवरिया जिले (Deoria News) के भाटपाररानी तहसील के पिपरापट्टी गांव निवासी महिला किसान मनोरमा सिंह बायोफ्लॉक मछली पालन कर मछली पालकों के बीच आईकान बन गई है. वर्ष 2021 में मनोरमा ने 5 एकड़ भूमि पर सामान्य विधि से मछली पालन का व्यवसाय शुरू किया था. इससे उनकी आय सालाना 8 लाख रुपये तक ही थी.
इंडिया टुडे के डिजिटल प्लेटफॉर्म किसान तक से खास बातचीत में प्रगतिशील महिला किसान मनोरमा सिंह ने बताया कि करीब तीन साल पहले उन्हें बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन के विषय में जानकारी मिली. उन्होंने विकास भवन स्थित मत्स्य पालन विभाग में संपर्क स्थापित किया. जहां उन्हें बायोफ्लॉक तकनीक की जानकारी दी गई और विभाग द्वारा इसका प्रशिक्षण भी दिलवाया गया. बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन करने के बाद उतनी ही भूमि में ही उन्हें 8 लाख रुपए की आय हुई.
मनोरमा सिंह बताती हैं कि इस परियोजना को लगाने में 14 लाख रुपये के करीब लागत आई थी. इसमें से मत्स्य पालन विभाग द्वारा 8 लाख 40 हजार रुपये का अनुदान उपलब्ध कराया गया. उन्होंने बायोफ्लॉक विधि से अपने खेत के मध्य में 35/ 35 फीट के आकार का कृत्रिम तालाब का निर्माण कराया और फ़ंगेसियस एवं तिलापिया प्रजाति की मछलियों का पालन शुरू किया. बाकि भूमि पर पूर्व की भांति खेती जारी रखी, मछली पालन वाले तालाब के पानी में कई पोषक तत्व रहते हैं.
महिला मत्स्य पालक मनोरमा ने आगे बताया कि हर 6 माह में 7-8 लाख रुपये की आय हो जाती है. यानी एक साल में 16 लाख रुपये की बचत मछली पालन के व्यवसाय से उनको हो रहा है. उन्होंने बताया कि इस साल 16 कट्टा खेती की जमीन और खरीद ली है, जहां पर वो मछली पालन करेंगी.
मनोरमा सिंह ने बताया कि बायोफ्लॉक तकनीक की मदद से पंगेसियस, तिलापिया, देशी मांगुर, सिंघी, आदि मछली की प्रजातियों के पालन करने का प्लान हैं. इससे उनकी सालाना आय डबल हो जाएगी.
बायोफ्लॉक तकनीक में, बायोफ्लॉक नाम के एक बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया जाता है. इस तकनीक में सबसे पहले मछलियों को सीमेंट या मोटे पॉलिथीन से बने टैंक में डाला जाता है. फिर मछलियों को समान्यतः जो खाना दिया जाता है वह दिया जाता है. मछलियां जितना खाना खाती हैं, उसका 75 प्रतिशत मल के रूप में शरीर से बाहर निकाल देती हैं. फिर बायोफ्लॉक बैक्टीरिया इस मल को प्रोटीन में बदलने का काम करता है. जिसे मछलियां खा जाती हैं. जिससे उनका विकास बहुत तेजी से होता है.
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