मछली पालन के क्षेत्र में अब युवा भी तेजी से अपना करियर बना रहे हैं. इसकी मुख्य वजह अच्छा लाभ माना जा रहा है. मछली पालन के जरिए किसान कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं. बाराबंकी जिले के गंगवारा के रहने वाले मोहम्मद आरिफ सिद्दीकी पहले रियल एस्टेट का काम करते थे, लेकिन उनका मन उसमें नहीं लगा. फिर उन्होंने 2 वर्षों तक केले की खेती में हाथ आजमाया जिसमें उन्हें घाटा हुआ. उन्हें अपने दोस्त परवेश से मदद मिली. उन्होंने आर.ए.एस तकनीक का उपयोग करके मछली पालन के बारे में जाना. फिर क्या था. मोहम्मद आरिफ ने 2015 में पहले एक एकड़ क्षेत्रफल में मछली पालन शुरू किया. सफलता मिली तो वह अपना दायरा बढ़ाते गए. आज वे 6.5 एकड़ क्षेत्रफल में 66 तालाबों के जरिए मछली पालन कर रहे हैं जिसके जरिए उन्हें हर साल 3 से 4 करोड़ रुपये तक आमदनी होने लगी है. वह किसानों को मुफ्त ट्रेनिंग भी देते हैं.
बाराबंकी के गंगवारा के रहने वाले मोहम्मद आरिफ सिद्दीकी आर.ए.एस तकनीक के जरिए आज 6.5 एकड़ क्षेत्रफल में मछली पालन कर रहे हैं. नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेस लखनऊ से उन्होंने ट्रेनिंग ली है. ट्रेनिंग के बाद उन्होंने हाई डेंसिटी तकनीक के जरिए पंगेसियस किस्म की मछली का पालन शुरू किया. शुरुआत के दिनों में उन्हें मछली पालन के क्षेत्र में अच्छी सफलता मिली जिससे उनका हौसला और भी ज्यादा बढ़ गया. अब छोटे-छोटे 66 तालाबों में पंगेसियस मछली का पालन करते हैं. मोहम्मद आरिफ सिद्दीकी ने किसान तक को बताया कि मछली पालन से अच्छी कमाई कर रहे हैं. वह सालाना 210 टन से ज्यादा मछली का उत्पादन कर रहे हैं. उन्हें हर साल तीन से चार करोड़ का बिजनेस मिल जाता है. अपने इस बिजनेस में उन्होंने 20 से ज्यादा लोगों को रोजगार भी दिया है.
बाराबंकी के रहने वाले मोहम्मद आरिफ सिद्दीकी आज मछली पालन के जरिए खुद तीन करोड़ से ज्यादा कमाई करते हैं. वह दूसरे किसानों को भी मुफ्त ट्रेनिंग देते हैं. गंगवारा गांव में उन्होंने एक्यु फिशरीज फॉर्म बना रखा है जहां पर 6.5 एकड़ क्षेत्रफल में 66 से अधिक छोटे-बड़े तालाब बनाए हैं. इन तालाबों में वे पंगेसियस किस्म की मछली को हाई डेंसिटी तकनीक के जरिए पालन करते हैं. इस तकनीक के जरिए उन्होंने सफलता की नई इबादत गढ़ी है. उन्होंने किसान तक को बताया आर.ए.एस सिस्टम में सीमेंट के टैंक में कम क्षेत्र में ज्यादा मछली का पालन करते हैं. अगर कम क्षेत्र में ज्यादा मछली का पालन करना है तो पानी को लगातार बदलना होता है जिससे ऑक्सीजन सिस्टम भी लगाना होता है.
पक्के तालाबों की लागत ज्यादा होती है. वह कच्चे तालाबों में भी इस तकनीक से मछली पालन करते हैं. वियतनाम जैसे देशों में कच्चे तालाब में इस विधि से मछली पालन होता है. जब उन्होंने इस तकनीक के जरिए मछली पालन की शुरुआत की थी, तब उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. उन्होंने बताया कि जितने एरिया में मछली का उत्पादन करते हैं, इतने मछलियों का उत्पादन करीब 12 एकड़ क्षेत्रफल में मिलता है. वे अपने मछली पालन के लिए जिस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं उसमें उन्हें 15 से 20 फ़ीसदी कम पानी लगता है. जो पानी निकलता है उससे अपने खेतों की सिंचाई भी करते हैं जिससे खेत भी उपजाऊ होता है.
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मोहम्मद आरिफ सिद्दीकी कहते हैं कि वह अपने तालाबों में पंगेसियस किस्म की मछली का पालन करते हैं. एक किलो की मछली पर उन्हें 70 रुपये तक खर्च आता है जबकि यह मछली 90 से 100 रुपये तक बिकती है. इस तरह उन्हें प्रति किलो मछली पर 15 से 20 रुपये का मुनाफा होता है. इस तरह वे हर साल 3 से 4 करोड़ रुपये की मछली बेचते हैं जिससे उन्हें 60 से 65 लाख रुपये तक का शुद्ध मुनाफा होता है.
उन्होंने कम एरिया में ज्यादा मछली पालने का रिकॉर्ड भी बनाया है. आज वह 210 से 225 टन तक मछली का उत्पादन करते हैं. वह बताते हैं कि पंगेसियस नस्ल की मछली का पालन भारत में पश्चिम बंगाल में भी खूब होता है. यह मछली मीठे पानी में पाली जाने वाली दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी प्रजाति है. इस नस्ल की मछली का उत्पादन सबसे ज्यादा वियतनाम में होता है. वहीं भारत में सबसे ज्यादा आंध्र प्रदेश में होता है.
मोहम्मद आरिफ सिद्दीकी बताते हैं कि छोटे किसानों के लिए पंगेसियस किस्म की मछली का पालन करना काफी फायदेमंद साबित हो सकता है. कोई भी छोटा किसान चाहे वह 1 एकड़ क्षेत्रफल में ही इसकी शुरुआत कर सकता है. उन्होंने बताया है कि अगर किसी किसान के पास एक बीघा जमीन है तो उसके चौथाई हिस्से में तालाब बना कर उसे मछली पालन करना चाहिए और शेष हिस्से में वह खेती करे. इससे पैदावार भी बढ़ेगी और मछली पालन से उसे आमदनी भी होगी.
मोहम्मद आरिफ सिद्दीकी को केंद्रीय मत्स्य पालन पशुपालन डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने सर्वश्रेष्ठ मछली पालन के क्षेत्र में पुरस्कार से सम्मानित किया है. यह पुरस्कार हर साल तीन श्रेणियां में दिया जाता है. मोहम्मद आरिफ सिद्दीकी को यह पुरस्कार बेस्ट आईलैंड फिश फार्मर के क्षेत्र में मिला है. राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार पाने के अनुभव के बारे में बताते हैं कि अवार्ड मिलने से उनका हौसला और भी ज्यादा बढ़ा है.
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