
कहा जाता है कि जब इंसान ठान ले तो कोई भी लक्ष्य मुश्किल नहीं होता, लेकिन हकीकत ऐसी नहीं है. किसी कठिन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हर संभव कोशिश, दृढ़ता और संसाधनों की जरूरत होती है. यह हर किसी के बूते की बात नहीं. इसलिए कठिन लक्ष्य प्राप्त करने वाले खास होते हैं. ऐसा ही एक उदाहरण हैं राजस्थान के प्रगतिशील किसान कैलाश. उनके खेतों में सिंचाई की कमी थी, लेकिन उन्होंने कड़ी मेहनत, समर्पण और उन्नत तकनीक का उपयोग करके अपने खेतों को लहलहाया है.अपनी उपज के उचित मूल्य के लिए क्या तरकीब अपनानी चाहिए, इनसे सीखा जा सकता है. किसानों की आमतौर पर छवि बेचारे और लाचार वाली होती है. इससे बाहर निकल खेती से करोड़पति बना जाता है, यह उनकी कामयाबी सिखाती है.
राजस्थान में हरियाणा की सीमा को छूती हुई जयपुर जिले की कोटपूतली तहसील को जैविक खेती और फ़ूड प्रोसेसिंग प्लांट्स का हब बनाने वाले कीरतपुरा गांव के 73 वर्षीय जैविक किसान कैलाश चौधरी हैं. उन्हें न सिर्फ कोटपूतली में बल्कि पूरे राजस्थान में खेती में उपज के मार्केटिंग का रोलमॉडल या गुरु माना जाता है. उन्होंने आंवले की बागवानी से लाभ कमाने की ऐसी तरकीब निकाली है, जिसने राजस्थान की धरती को आंवला की महक से भर दिया है. कैलाश चौधरी ने अपनी मेहनत और नई सोच की बदौलत करोड़ों का करोबार खड़ा किया है.
कैलाश चौधरी ने अपनी खेती में इस मुकाम के सफलता के बारे में किसान तक से बात की. उन्होंने बताया कि दसवीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद हाथों में हल और फावड़ा उठा लिया ताकि खेती में पिता की मदद करके उनका बोझ कुछ कम किया जाए. कैलाश चौधरी ने बताया कि उनके पिताजी के पास 60 बीघा ज़मीन थी, लेकिन गांव में ज्यादा ज़मीन असिंचित थी, इसलिए सिर्फ 7-8 बीघा ही खेती हो पाती थी. उनके सामने घर-परिवार को चलाने के लिए कोई साधन नहीं दिख रहा था. केवल असिंचित बेकार पड़ी ज़मीन दिखाई दे रही थी, जिस पर उन्होंने खेती के लिए सिंचाई की व्यवस्था बनाने का निर्णय किया और 70 के दशक में उन्होंने विभिन्न प्रयोगों से सिंचाई की. उन्होंने एक बड़ा रेहट लगवाया, जिससे उन्होंने अपने खेतों की सिंचाई शुरू की. धीरे-धीरे डीजल पंप की स्थापना और अन्य उन्नति के साधनों के साथ उनकी खेतों में पैदावार बढ़ने लगी. उन्होंने साल 1977 में अपनी ज़मीनों की चकबंदी करवा दी और गांववालों के सामूहिक प्रयास से गांव में 25 ट्यूबवेलों में बिजली के तार जुड़वाए.
सिंचाई की व्यवस्था होने के बाद उनका और उनके गांव के खेतों में फसल की उपज में 8-10 गुणा इज़ाफ़ा हुआ. यह उनके गांव के लिए सही मायनों में खेती में नई उजाले की तरह थी जहां उनके गांव के खेतों में साल भर ज्यादातर धूल उड़ती थी और खाली रहता था. अब उनके गांव के किसान गेहूं से लेकर सरसों तक उगाकर और उपज को मंडी में बेचकर लाभ कमाने लगे. लेकिन मंडी में समस्याएं कई थीं. कैलाश जी बताते हैं, जब हम जयपुर की अनाज मंडी में अपना उपज लेकर जाते थे तो किसानों को कई-कई दिनों बाद उनके उपज के पैसे मिलते थे. हम और हमारे गांव किसान लोग मंडी के धक्के खाते रहते थे.
मंडी में अपना समय काटने के लिए हम रेडियो सुनते, तो कभी अखबार पढ़ते थे. एक दिन अखबार में उन्होंने एक छोटा-सा विज्ञापन देखा गणेश ब्रांड गेहूं. कैलाश जी को जिज्ञासा हुई कि आखिर इसमें क्या खास है? इस गेहूं की कीमत 6 रुपये प्रति किलो लिखी हुई है और हम अपनी उपज मंडी में 4 रुपये किलो गेहूं में बेच रहे हैं. उस विज्ञापन में जगह का पता भी लिखा था. बस फिर क्या था, कैलाश पहुंच गए वहां, जहां पर गणेश ब्राड गेहूं पैक होता था. इसकी पूरा प्रक्रिया समझने के लिए उन्होंने उस व्यवसायी के यहां पल्लेदारी का काम ले लिया. उन्होंने देखा कि मंडी से गेहूं खरीदकर, उसकी सफाई और ग्रेडिंग करके, उसे अच्छे से जूट की बोरियों में पैक करके उन पर ब्रैंड नेम लगता था. इससे गेहूं में वैल्यू एडिशन हो जाता. इसके बाद, गेहूं को शहर की कॉलोनियों में बेचा जाता था, जिससे उसे अधिक दाम मिलता था.
एक हफ्ते में कैलाश जी ने उस व्यवसायी के पास रहकर पूरी मार्केटिंग की प्रक्रिया समझ ली. इसके बाद अपने गांव में गेहूं साफ़ करने वाली ग्रेडिंग मशीन लगवा ली. अपनी गेहूं की उपज की सफाई और ग्रेडिंग करके उसे अच्छी बोरियों में पैक करके जयपुर शहर में बेचना शुरू कर दिया. इससे पहले की तुलना में ज्यादा मुनाफा मिलने लगा. बढ़ती मांग को देखकर कैलाशजी ने अपने गांव के और भी किसानों को अपने साथ जोड़ लिया. कैलाश चौधरी की सफलता ने न सिर्फ उनकी आमदनी बढ़ाई बल्कि गांव और तहसील में उनको काफी सम्मान मिलने लगा .
इसके बाद साल 1990 में कृषि विज्ञान केंद्र के सुझाव पर पराली की कम्पोस्टिंग बनाना शुरू कर दिया जिससे उन्हे पराली जलाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी. इसके बाद,उन्हें वर्मी-कम्पोस्ट के बारे में पता चला तो उन्होंने वो भी बनाकर खेतों में इस्तेमाल करने लगे 50 किसानों का जैविक खेती का ग्रुप बनाया. इसके बाद जैविक खेती करने लगे. जैविक उपज का ब्रांड बना कर बेचने लगे.
गेहूं के मामले में मिली कामयाबी के बाद वैज्ञानिक सलाह पर खेती के साथ आंवले की बागवानी शुरू की और कुल 80 पौधे अपने खेतों में रोपे. तीन साल बाद इसमें फल आने लगे. लेकिन जब इन आंवला के फलों को मंडी में बेचने की कोशिश की तो कोई खरीदार ही नहीं मिला. उन्हें मायूस लौटना पड़ा क्योंकि बाजार में तीन चार दिन में आंवला के फल खराब होने लगे. इस तरह कैलाश जी की तीन-चार साल की मेहनत का उन्हें एक पैसा भी नहीं मिला. इस घटना ने उनके पूरे परिवार को काफी प्रभावित किया. कैलाश आगे कहते हैं- गांव में तो मजाक बना ही और साथ ही, उनके परिवार में मनमुटाव हो गया.
कैलाश चौधरी ने हमेशा की तरह इस बार भी परेशानियों से लड़ने की ठानी. वह केवीके के कृषि वैज्ञानिकों से सलाह लेने पहुंच गए. केवीके में एक वैज्ञानिक ने कैलाश जी को बताया कि आंवले को प्रोसेस किए बिना बेचना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन आंवले फल का प्रोसेसिंग करके प्रोडक्ट्स बनाकर बेचें तो मुनाफा बहुत है. इसके लिए कैलाश जी ने बाकायदा ट्रेनिंग लेने के लिए आंवला के गढ़ माने जाने वाला उत्तर प्रदेश के जिला प्रतापगढ़ जाकर आंवले की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग सीखी. लौटने के बाद अपने गांव में साल 2003 में एक कमरे से आंवला प्रोसेसिंग यूनिट, शुरू की. यहां उन्होंने आंवले के लड्डू, कैंडी, मुरब्बा, जूस आदि बनाना शुरू किया. उनके जैविक सर्टिफाइड प्रोडक्ट्स हाथों-हाथ बिकने लगे. इसके बाद उनका करोबार बढ़ता गया.आज के समय में 100 से लेकर 125 टन आंवला की प्रोसेसिंग कर कई उत्पाद बना कर वह करोड़ों का व्यसाय कर रहे हैं.
कैलाश जी ने केवल अपनी किस्मत ही नहीं बदली, बल्कि उनसे जुड़ने वाले लगभग 5000 किसानों की किस्मत को बदला दिया. वह बताते हैं साल 2005 में हमने एक मिशन शुरू किया और तीन साल में लगभग 5000 किसानों को जैविक खेती, वैल्यू एडिशन, मार्केटिंग आदि की ट्रेनिंग दी. कई किसानों के यहां प्रोसेसिंग प्लांट शुरू करवाए. इससे उनकी आय बढ़ी और गांव के लोगों के लिए रोज़गार के साधन भी बढ़े. अपने इस सफल मॉडल के लिए उन्हें कई अवॉर्ड्स मिल चुके हैं, जिनमें राष्ट्रीय सम्मान, कृषि मंत्रालय से सम्मान और कई राज्य स्तरीय सम्मान शामिल हैं. कैलाश चौधरी के जैविक उत्पाद का लगभग सालाना करोड़ों रुपये टर्नओवर लेने वाले कैलाश चौधरी के मुताबिक, किसानों को सफलता के लिए खेती के साथ बागवानी, पशुपालन करना चाहिए. साथ ही, अपनी उपज वैल्यू एडिशन के साथ मार्केट में बेचनी चाहिए. किसानी के साथ व्यापारी सोच रखनी चाहिए.
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