Success Story: तालीम पांचवीं तक, प्रतिभा आसमान छूने वाली...पहाड़ के किसानों के नायक बने प्रेमचंद्र शर्मा

Success Story: तालीम पांचवीं तक, प्रतिभा आसमान छूने वाली...पहाड़ के किसानों के नायक बने प्रेमचंद्र शर्मा

सीमित संसाधनों और शिक्षा के बावजूद, अगर किसी में जज़्बा और मेहनत करने की ललक हो, तो सफलता के शिखर तक पहुंचा जा सकता है. इसका प्रमाण हैं प्रगतिशील किसान प्रेमचंद्र शर्मा. उनकी वैज्ञानिक सोच, दृष्टिकोण और जैविक-हाइटेक खेती में नवाचार ने उन्हें एक मिसाल बना दिया है. अपनी इस नई सोच के साथ उन्होंने न केवल अपनी जिंदगी बदली, बल्कि पहाड़ के किसानों के लिए भी एक नई राह दिखाई है.

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तालीम पांचवीं तक, प्रतिभा आसमान छूने वाली...पहाड़ के किसानों के नायक बने प्रेमचंद्र शर्माउत्तराखंड के पद्मश्री किसान प्रेमचंद शर्मा

खेती और बागवानी के क्षेत्र में अपने अनूठे योगदान के लिए पूरे देश में विख्यात प्रगतिशील किसान प्रेमचंद शर्मा सही मायनों में पहाड़ के नायक हैं. उन्होंने जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर के दुर्गम इलाकों में वैज्ञानिक विधियों से खेती और बागवानी की अलख जगाई, जिससे न केवल उन्हें क्षेत्रीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली. प्रेमचंद शर्मा ने जिस तरह से पत्थरों और दुर्गम पहाड़ी इलाकों में हरियाली की इबारत लिखी,, वह निश्चित रूप से पहाड़ के किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत है. उनकी मेहनत और लगन ने न केवल उनके जीवन को बदला, बल्कि सैकड़ों किसानों के जीवन में भी आर्थिक सुधार लाया. आज उनके प्रयासों की गूंज न केवल उनके गांव तक सीमित है, बल्कि पूरे देश में गूंज रही है.

पहाड़ के किसानों के नायक का संघर्ष 

प्रेमचंद शर्मा का जन्म 1957 में देहरादून जनपद से सटे जौनसार-बावर के सीमांत गांव अटाल में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था महज पांचवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने वाले प्रेमचंद को खेती विरासत में मिली थी. बचपन में ही वह अपने पिता स्व. झांऊराम शर्मा के साथ खेती में जुट गए और उन्हीं से खेती के गुर सीखे. पिता के असामयिक निधन के बाद पूरे खेत-खलिहान की जिम्मेदारी प्रेमचंद के कंधों पर आ गई. लेकिन प्रगतिशील किसान प्रेमचंद शर्मा ने अपनी सूझबूझ और अनूठी वैज्ञानिक दृष्टि से कृषि क्षेत्र में वो कर दिखाया है, जो दुर्गम पहाड़ी इलाकों में रहने वाले किसानों के लिए किसी सपने से कम नहीं है. उनकी हिमालय जैसी विशाल प्रतिभा को देखते हुए सरकार ने उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा है, जिसमें 2021 में मिला पद्मश्री पुरस्कार भी शामिल है.

साल 1994 में पहाड़ में अनार की जैविक खेती से शुरुआत

खेती की नई पहल से किसानों को दी नई रोशनी 

प्रेमचंद शर्मा का गांव हिमाचल प्रदेश के बॉर्डर से अधिक दूर नहीं है उन्होंने देखा कि उनके गांव के लोग रोजगार की तलाश में हिमाचल के खेतों में काम करने जाते थे. इससे प्रेरित होकर उन्होंने अपने गांव में ही कुछ नया करने की ठानी, ताकि लोग अपने गांव में रहकर ही सम्मानजनक जीवन यापन कर सकें. परंपरागत खेती से अपेक्षित लाभ न मिलते देख, प्रेमचंद ने नए प्रयोग करने का निर्णय लिया. 1994 में उन्होंने अनार की जैविक खेती से शुरुआत की. अनार की खेती के गुर सीखने के लिए उन्होंने हिमाचल प्रदेश के कुल्लू, जलगांव, महाराष्ट्र और कर्नाटक तक का दौरा किया. यह प्रयोग सफल रहा और इसके बाद उन्होंने क्षेत्र के अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित किया. 2000 में उन्होंने अनार की उन्नत किस्म के डेढ़ लाख पौधों की नर्सरी तैयार की, जिसे उन्होंने जौनसार-बावर और पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश के करीब 350 किसानों को वितरित किया. 

सैकड़ों किसानों के जीवन में खेती से आर्थिक सुधार के लिए 2021 में मिला पद्मश्री पुरस्कार

पहाड़ में किसानों की झोली भरने के लिए नई राह

साल 2013 में प्रेमचंद ने देवघार खत के सैंज-तराणू और अटाल पंचायत के 200 किसानों को एकत्र कर 'फल और सब्जी उत्पादक समिति' का गठन किया. इसके साथ ही उन्होंने ग्राम स्तर पर 'कृषि सेवा केंद्र' की शुरुआत कर खेती-बागवानी के विकास में अहम भूमिका निभाई. उनके नेतृत्व में किसानों को नकदी फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित किया गया जिससे सीमांत क्षेत्र के सैकड़ों किसानों ने नकदी फसलें उगाकर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया. इसके साथ ही उन्होंने किसानों को जैविक खेती का महत्व समझाया और इस दिशा में मार्गदर्शन किया और आज उनका यह नवाचार 'जैविक-हाइटेक मॉडल' के नाम से प्रसिद्ध हो गया.

उन्होंने गोभी, टमाटर और ब्रोकली जैसी सब्जियों की खेती के नए तरीकों पर काम किया और सफल मॉडल तैयार किया. जैविक और हाइटेक पद्धतियों के संयोजन से उनके उगाए उत्पादों की बाजार में भारी मांग होने लगी. इसके साथ ही उन्होंने सेब की खेती में भी सफलता पा. प्रेमचंद शर्मा ने सिंचाई की पारंपरिक समस्याओं को दूर करने के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीकों को अपनाया. पानी के सही इस्तेमाल से उनकी फसलों की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों में वृद्धि हुई. उनके इस मॉडल से क्षेत्र के युवाओं में भी खेती के प्रति रुचि बढ़ी और वे खेती में संभावनाओं को समझने लगे.

नेतृत्व के धनी प्रेमचंद शर्मा का काम प्रेरणा देने वाला

प्रेमचंद शर्मा का नेतृत्व भी उतना ही प्रेरणादायक रहा. उन्होंने वर्ष 1984 से 1989 तक सैंज-अटाल ग्राम पंचायत के उप-प्रधान और 1989 से 1998 तक प्रधान के रूप में कार्य किया. उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने क्षेत्र में खेती और बागवानी को एक नए मुकाम तक पहुंचाया. आज जौनसार-बावर क्षेत्र खेती और बागवानी के क्षेत्र में एक मिसाल बन चुके प्रेमचंद शर्मा के कृषि क्षेत्र में 20 से अधिक वर्षों के योगदान के लिए और उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए उन्हें कई राज्य और राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. साल 2021 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. उनकी इच्छा है कि उत्तराखंड सहित देशभर के किसान उनके जैविक और हाइटेक खेती मॉडल को अपनाएं और अपने गांव में रहकर ही उच्च आय अर्जित करें, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो सके और लोग शहरों की ओर पलायन से बचें. 

 

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