

जब ऊंची उड़ान भरने का हौसला हो तो देखना पड़ता है कि आसमान कितना ऊंचा है. बढ़ती लागत और कम जमीन के कारण लोगों का खेती से मोहभंग हो गया है. इस माहौल के बीच उनके साहस ने मशरूम की खेती के जरिए एक नई पहचान दी है. मशरूम की खेती को आर्थिक रूप से परेशान किसानों के लिए आशा की नई किरण के रूप में देखा जा रहा है. ऐसे ही एक प्रतिभा के धनी किसान हरियाणा कुरुक्षेत्र के भौर सैयदागांव के हरपाल सिंह बाजवा हैं जिन्होंने अपनी खेती के साथ साल 1995 में महज 50 हजार से मशरूम का रोजगार शुरू किया था. आज उन्होंने 100 करोड़ के टर्न ओवर के साथ मशरूम लैब बनाकर किसानों के लिए स्वरोजगार के दरवाजे खोल दिए हैं. वे कैसे 27 साल में इस मुकाम तक पहुंचे, आइए जानते हैं.
हरपाल सिंह बाजवा के मुताबिक, उनका पूरा परिवार धान और गेहूं की खेती पर निर्भर था, जिससे ज्यादा मुनाफा नहीं मिल रहा था. उन्होंने खेती की संस्कृति को समझा और मोहाली से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपना सारा समय मशरूम को समर्पित करने का फैसला किया. उन्होंने विदेश जाने के बजाय देश में खुद को इस क्षेत्र में कुशल बनाया है. अपनी खेती के साथ साल 1995 में बाजवा ने मशरूम का काम महज 50 हजार से शुरू किया था.
जब लाखों की आमदनी हुई और उनको अपने काम में सफलता मिलती गई, तो इससे जुड़े नए-नए आइडिया उनको आते गए. इसलिए उन्होंने अपने आप को मशरूम उत्पादन तक ही सीमित नहीं रखा. उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र कुरूक्षेत्र और खुंबा अनुसंधान निदेशालय सोलन के सहयोग से नवीनतम तकनीक की जानकारी ली. इसके बादब बटन मशरूम के लिए कंपोस्ट मेकिंग और स्पॉन उत्पादन में महारत हासिल की. उन्होंने 10वीं पास होते हुए भी वैज्ञानिक तरीके से स्पॉन मेकिंग के लिए एक लैब तैयार की है.
हरपाल सिंह बाजवा की सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज वे अपने फार्म पर प्रतिदिन 35 टन बटन मशरूम का उत्पादन करते हैं और 2500 किलोग्राम स्पॉन तैयार करते हैं. लगभग 300 टन मशरूम के उत्पादन के लिए खाद तैयार कर रहे हैं. वे बताते हैं कि एक टन मशरूम उत्पादन की लागत 6500 हजार रुपये है. एक टन मशरूम एक लाख में बिकता है. एक किलो स्पॉन 85 रुपये और एक टन खाद 950 रुपये में बिकता है. इसके अलावा मशरूम को प्रोसेस करके बाजार में बेचा जाता है जिससे उन्हें करोड़ों की आमदनी होती है.
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हरपाल सिंह मशरूम उत्पादन के लिए धान-गेहूं का भूसा इस्तेमाल करते हैं. लंबी विधि से कंपोस्ट तैयार करने में 30 दिन लगते हैं, जबकि टर्नर से 15 दिन में कंपोस्ट तैयार हो जाती है. 10 किलो खाद एक प्लास्टिक बैग में भरते हैं, जिसमें स्पॉन की बिजाई कर उसे 15 दिन के लिए 25 से 27 डिग्री तापमान पर रखा जाता है. उसके बाद 16-18 डिग्री तापमन पर मशरूम की विकास अच्छी होती है. इस तरह उन्हें 10 किलो खाद से दो से 2.5 किलो मशरूम मिल जाता है.
वे बताते हैं कि एक शेड से शुरुआत करने पर 30 हज़ार की बांस और 70 हज़ार की खाद की लागत आती है. यानी एक 65 बाई 30 का शेड बनाने और उसे रन करने में लगभग एक लाख का खर्चा है. इसमें 10 किलो वाले 1800 बैग रखे जा सकते हैं जबकि उत्पादन के लिए उनका 70 बाई 20 का जो एक एसी कमरा है, उसकी लागत उन्हें 20 लाख की आई. इसमें 3500 से 4000 तक बैग रखे जा सकते हैं.
हरपाल सिंह बाजवा बताते हैं कि पहले वे परंपरागत खेती करते थे. इसके बाद उन्होंने साल 1995 से मशरूम उगाना शुरू किया. धीरे-धीरे मुनाफा हुआ तो इस काम में उनकी रुचि और बढ़ती गई. छोटे पैमाने से शुरू किया गया मशरूम उत्पादन का उनका व्यवसाय, सच्ची लगन और मजबूत इच्छाशक्ति से की गई मेहनत रंग लाई. इससे उनका काम दिन दूना रात चौगुना बढ़ता गया जिसमें नई तकनीकों का सहारा भी काफी अहम था.
हरपाल सिंह के अनुसार उनके इलाके के दूसरे किसान मशरूम की खेती में रुचि लेने लगे. इसके बाद उन्होंने बड़े पैमाने पर किसानों के लिए कंपोस्ट बनाना शुरू कर दिया. जब उनके पास से किसानों ने कंपोस्ट खरीदना शुरू कर दिया तो किसानों द्वारा स्पॉन की भी मांग बढ़ने लगी. इसके लिए उन्होंने एक अत्याधुनिक स्पॉन लैब लगाने का मन बनाया और अपने खेत में ही स्पॉन लैब स्थापित कर स्पॉन का भी उत्पादन करके किसानों के बेचने लगे. इस काम के लिए उन्होंने बैंक से लोन की मदद ली और सरकार से सब्सिडी का लाभ लिया. वे आज कंपोस्ट मेकिंग और स्पॉन प्रोडक्शन से करोड़ों की रुपये की कमाई रहे हैं.
आज हरपाल सिंह का मशरूम उत्पादन का ये बिजनेस काफी बड़ा हो चुका है. वे कई तरह की आधुनिक तकनीकों और मशीनों का इस्तेमाल करते हैं. आज उनके पास मशरूम उत्पादन के लिए AC रूम सहित 60 शेड हैं. स्पॉन प्रोडक्शन का मॉडर्न लैब है और कंपोस्ट उत्पादन के लिए 5-6 आधुनिक चैंबर भी हैं. उनका मशरूम पंजाब और जम्मू के अलावा देश के कई इलाक़ों तक सप्लाई होता है. हरपाल सिंह बाजवा न केवल मशरूम की खेती कर रहे हैं, बल्कि टमाटर प्यूरी, सरसों का साग, मशरूम से बने अचार आदि का प्रसंस्करण भी कर रहे हैं. इसके अलावा वे बेरोजगार युवाओं को अपने खेतों में प्रशिक्षण देकर रोजगार भी मुहैया करा रहे हैं.
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मेहनत, लगन और दुष्वारियों से लड़ने की क्षमता ने हरपाल सिंह को बड़ा नाम दिलाया है. मशरूम उत्पादन में बेहतर काम करने के लिए उन्हें कई बार सम्मानित किया गया है. तो छोड़िए ना हिम्मत और बिसारिए ना मेहनत के काम, बस शुरुआत जितनी भी छोटी हो, अच्छी होनी चाहिए. आगे वक्त के साथ नई तकनीकों का इस्तेमाल करते रहना चाहिए. फिर आपको भी हरपाल सिंह बाजवा बनने की राह में कोई बाधा नहीं आएगी.
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