 आखिर कैसे मछली पालन में नए आयाम छू रहे हैं हरियाणा के सुशील कुमार
आखिर कैसे मछली पालन में नए आयाम छू रहे हैं हरियाणा के सुशील कुमार हरियाणा देश का वह राज्य है जो असल मायनों में 'जय जवान-जय किसान' को सच साबित करता हुआ नजर आता है. यहां के युवा या तो खेत में नजर आते हैं या फिर फौज में जाकर सीमा पर दुश्मन को जवाब देते हैं. लेकिन वहीं कुछ तो ऐसे भी हैं जिन्हें गन्ना, मक्का या गेहूं की खेती करने में भी दिलचस्पी नहीं है. ऐसे लोग यहां पर कुछ अलग करके अपने रास्तों को और रोशन करने में लगे हैं. ऐसे ही एक शख्स ने करीब 25 साल पहले पूरी तरह अलग रास्ता चुना और आज सबके लिए प्रेरणा बन गया है.
करनाल जिले के कमालपुर रोडान गांव के सुशील कुमार ने जब अपने गांव में पंचायत से लीज पर ली गई दो एकड़ की तालाब में मछली पालन शुरू करने का फैसला किया, तो लोग हैरान रह गए. साल 2000 में न तो हरियाणा में बहुत लोग मांसाहारी थे और न ही मछली खाने वाले. ऊपर से यह काम बहुत पानी मांगता था, जबकि हरियाणा वैसे ही पानी की कमी से जूझ रहा था. ऐसे में लोगों को यह फैसला बिल्कुल अजीब लगा. लेकिन सुशील कुमार ने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने बाजार में मौजूद एक खाली जगह को पहचाना. दसवीं कक्षा पास करने के बाद उन्होंने करनाल के नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट में जाकर मछली पालन का प्रशिक्षण लिया. जब लीज पर लिया गया उनका तालाब पहले ही साल में अच्छा मुनाफा देने लगा, तो उन्होंने इस काम को पूरी तरह से अपना लिया.
सुशील कुमार की मेहनत और प्रगतिशील सोच ने उन्हें शानदार सफलता दिलाई. साल 2002 तक उन्होंने अपने काम को और आगे बढ़ाते हुए झींगा पालन की शुरुआत कर दी थी. 2005 तक आते-आते उन्होंने अपनी जमीन के सात एकड़ हिस्से पर मछली के बीज तैयार करने के लिए एक हैचरी  बना ली, जबकि बाकी आठ एकड़ में व्यावसायिक रूप से मछलियों की खेती शुरू की. आज सुशील कुमार अपनी हैचरी से सालाना लगभग 40 लाख रुपये और मछली पालन से 20 लाख रुपये कमाते हैं. यानी कुल मिलाकर उनका वार्षिक मुनाफा करीब 60 लाख रुपये तक पहुंच चुका है.
 
उनके फार्म पर झींगा, रोहू, कतला, ग्रास कार्प और पंगास जैसी लगभग आठ किस्मों की मछलियां पाली जाती हैं. वे राजस्थान, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को मछली के बीज सप्लाई करते हैं, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा होता है. वहीं, जो मछलियां वे खुद तैयार करते हैं, उन्हें दिल्ली की फिश मंडी में बेचा जाता है. आज सुशील कुमार हरियाणा के एक प्रगतिशील किसान के रूप में जाने जाते हैं. उनके इस इनोवेटिव मॉडल को देखते हुए हरियाणा सरकार और मत्स्य विभाग ने 2005 में उन्हें राज्य के नंबर वन झींगा पालक का पुरस्कार दिया, जबकि 2006 में उन्हें झींगा पालन में दूसरा स्थान मिला.
25 साल की अपनी इस यात्रा में सुशील कुमार ने न सिर्फ खुद को स्थापित किया, बल्कि हजारों किसानों को भी प्रेरणा दी है. हरियाणा और आसपास के राज्यों से हजारों किसान उनके मत्स्य फार्म पर आ चुके हैं ताकि उनसे सीख सकें और मछली पालन का तरीका समझ सकें. सुशील कुमार बताते हैं कि अब तक करीब 300 किसान उनके मार्गदर्शन से मछली पालन शुरू कर चुके हैं, और यह उनके लिए गर्व की बात है कि लोग उनसे सीखने आते हैं. सिर्फ देश ही नहीं, बल्कि ऑस्ट्रेलिया, चीन और जापान जैसे देशों से भी कई विशेषज्ञ उनके फार्म का दौरा कर चुके हैं. सभी ने उनके अभिनव खेती मॉडल की तारीफ की है और इसे सीखने योग्य बताया है.
हालांकि सुशील कुमार की राह हमेशा आसान नहीं रही. साल 2015 में एक सड़क दुर्घटना में उनका पैर गंभीर रूप से घायल हो गया था. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. दर्द और मुश्किलों के बावजूद उन्होंने अपनी खेती जारी रखी और अपने जुनून को जिंदा रखा. खेती-किसानी परिवार से आने के कारण सुशील कुमार के भीतर प्रकृति के प्रति प्रेम स्वाभाविक रूप से है. जैसे-जैसे उनका मत्स्य व्यवसाय बढ़ा, उन्होंने तालाबों के किनारे फलों और छायादार पेड़ों की पंक्तियां लगाईं. आज उनके फार्म की पहचान दूर से ही इन पेड़ों के कारण हो जाती है.उनके फार्म पर आम, अमरूद, जामुन, चीकू और नींबू जैसे 8 से 10 तरह के फलदार पेड़ लगे हुए हैं. इन पेड़ों से मिलने वाले फलों की बिक्री से उन्हें अतिरिक्त आय भी हो जाती है, जिससे उनके फार्म का हर कोना आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश करता है.
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