Fish Farming: यूपी के देवरिया जिले में एक प्रगतिशील किसान मछली पालन को नई उड़ान दे रहे है. आज हम आपको संकरशन शाही की कहानी बताने जा रहे है. जो कभी एक निजी कंपनी में 12 हजार रुपये की नौकरी करते थे. लेकिन आज वो मछली पालन से साल में 2 करोड़ का टर्नओवर का करोबार कर रहे हैं. किसान तक से बातचीत में बरहज के गडेर गांव निवासी किसान संकरशन शाही ने बताया कि साल 2014 में पूर्वांचल पोट्ररी के नाम से सिफ पांच एकड़ में मछली पालन की शुरुआत की थी. लेकिन, जब इसमें मुनाफा होने लगा तो धीरे-धीरे अब 42 एकड़ में मछली पालन कर रहे हैं.
संकरशन बताते हैं कि 5 सितंबर 2023 मछली पालन से जुड़ी फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी (FPO) बनाई है. इससे करीब 385 किसान जुड़े हैं जिसमें से 80 फीसदी मछली पालन कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि पूर्वांचल पोट्ररी से साल में 40 लाख का मुनाफा हो रहा है. वहीं एफपीओ का सालाना टर्नओवर 2 करोड़ के करीब है. संकरशन बताते हैं उन्होंने तालाब के किनारे ही पपीते के पौधे लगाए हैं. इनसे सालाना 3 से 4 लाख रुपये से अधिक की आमदनी हो जाती है.
बरहज निवासी संकरशन शाही ने बताया कि रोहू, नैन, कतला, पेंगीशियस, ग्रास कॉर्प, सिल्वर कॉर्प एवं कॉमन कॉर्प सहित विभिन्न प्रजाति की मछलियों का पालन परंपरागत विधि से करते हैं. देवरिया जनपद समेत आसपास के जिलों में मछली की अच्छी खासी डिमांड है. शादी विवाह के सीजन मछलियों की खबर दोगुनी हो होती है. आसपास के जनपदों से भी मछली के खरीददार आते हैं. इस धंधे में संभावनाएं देख करके काफी संख्या में नौजवान मछली पालन शुरू कर रहे हैं.
प्रगतिशील किसान संकरशन ने आगे बताया कि मछली पालन से अच्छा मुनाफा लेने के लिए कुछ सावधानियां बरतना और खुद ध्यान देना भी जरूरी है. जैसे मछलियों को सबसे अधिक नुकसान चिड़िया और सांप से होता है. यह दोनों तालाब से मछली निकालकर खा जाते हैं. ध्यान न दिया जाए तो पूरा तालाब साफ हो जाएगा. इसके लिए तालाब के ऊपर रस्सियां बांधने के साथ ही किनारे की तरफ जाली लगा देनी चाहिए. दूसरा, मछलियों के दाने का विशेष ध्यान रखना चाहिए. सही दाने से इनकी गुणवत्ता अच्छी रहती है और वजन सही से बढ़ता है.
संकरशन ने बताया कि यूपी में मछली के उत्पादन और खपत में भारी अंतर है. उत्पादन कम होने की वजह से अन्य राज्यों से मछली मंगाई जाती है. सबसे अधिक निर्भरता बंगाल और आंध्र प्रदेश पर है. ऐसे में यहां मछली पालन के लिए काफी संभावनाएं हैं. वह खुद बाजार की मांग पूरी नहीं कर पाते हैं. इसीलिए अन्य किसानों को साथ जोड़कर इस काम को बड़े स्तर पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं.
बिहार के मुजफ्फरपुर से एमबीए करने वाले संकरशन ने बताया कि बहुत से मत्स्य पालक सर्दी के दिनों में मछलियां हटा देते हैं. तालाब खाली कर देते हैं. लेकिन, हम ऐसा नहीं है. हम वैज्ञानिक विधियों से तालाब में पानी का तापमान नियंत्रित करते हैं. सर्दियों में नर्सरी तैयार करते रहते हैं. इस तरह उनका कारोबार हमेशा चलता रहता है.
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