जानिए लहरी बाई को क्यों कहा जाता है मिलेट क्वीन, PM Modi भी कर चुके हैं तारीफ

जानिए लहरी बाई को क्यों कहा जाता है मिलेट क्वीन, PM Modi भी कर चुके हैं तारीफ

लहरी बाई छत्तीसगढ़ के डिंडोरी जिले के जंगली सिल्पिडी गांव की निवासी हैं जो अमरकंटक शहर से ज्यादा दूर नहीं है. इस शहर को नर्मदा नदी के स्रोत के रूप में जाना जाता है. वह अपनी दो कमरे की झोपड़ी में अपनी लागत पर मोटे अनाजों की 150 स्थानीय किस्मों को संरक्षित करने के लिए प्रसिद्ध हैं. 

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जानिए लहरी बाई को क्यों कहा जाता है मिलेट क्वीन, PM Modi भी कर चुके हैं तारीफWho is this Lahari Bai?

छत्तीसगढ़ की लहरी बाई का नाम आमने सुना होगा. उनकी तारीफ खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं. उनकी तारीफ के बाद लहरी बाई को भारत का मिलेट क्वीन कहा जाता है. लहरी बाई हाल में आयोजित जी-20 सम्मेलन में सुर्खियों में आईं क्योंकि सम्मेलन का एक थीम मिलेट भी था. छत्तीसगढ़ के बैगा आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली लहरी बाई ने मोटे अनाजों की खेती और बीजों के संरक्षण में क्रांति किया है जिसके बाद उन्हें मिलेट क्वीन के नाम से जाना जाता है. 

“लहरी बाई पर गर्व है, जिन्होंने श्री अन्न (मिलेट) के प्रति उल्लेखनीय उत्साह दिखाया है. उनके प्रयास कई अन्य लोगों को प्रेरित करेंगे,” मोदी ने लहरी बाई की तारीफ में ये बातें कही हैं.

कौन हैं ये लहरी बाई?

लहरी बाई छत्तीसगढ़ के डिंडोरी जिले के जंगली सिल्पिडी गांव की निवासी हैं जो अमरकंटक शहर से ज्यादा दूर नहीं है. इस शहर को नर्मदा नदी के स्रोत के रूप में जाना जाता है. वह अपनी दो कमरे की झोपड़ी में अपनी लागत पर मोटे अनाजों की 150 स्थानीय किस्मों को संरक्षित करने के लिए प्रसिद्ध हैं. 

27 वर्षीय लहरी बाई मिलेट की अलग-अलग प्रजातियों के बीज इकट्ठा करती हैं और उन्हें अपनी दो कमरे की झोपड़ी में मिट्टी के कंटेनरों में संरक्षित करती हैं. फिर वह इन बीजों को किसानों को बांटती हैं जो उन्हें उगा सकते हैं और उन्हें उपज का एक हिस्सा अपने घर के बीज बैंक में संरक्षित करने के लिए मिलता है.

मिलेट के संरक्षण को दिया प्राथमिकता

लहरी बाई कहती हैं कि बाजरा की कई स्थानीय किस्में लुप्त हो रही थीं और उन्हें संरक्षण की जरूरत थी, उन्होंने कहा कि पिछले दस वर्षों से उन्होंने उनकी रक्षा करना अपने जीवन का मिशन बना लिया है. लहरी बाई ने अपने जीवन में मिलेट के संरक्षण के काम को प्राथमिकता दी है और इसकी झलक उनकी हर दिनचर्या में दिखती है. यहां तक कि उनके शरीर पर बने टैटू में भी मिलेट की झलक दिख जाती है.

देश में कैसे की जाती है मिलेट की खेती

मोटे अनाज किसानों की आय और स्वास्थ्य दोनों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. मोटे अनाज यानी श्रीअन्न जिसे मिलेट्स भी कहा जाता है उसमें कई ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं. जो किसी अन्य अनाज में नहीं पाए जाते. इसकी खेती भी आसानी से की जा सकती है. शुष्क क्षेत्र भी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होते हैं. हाल के दिनों में सरकार ने किसानों के साथ मिलकर बाजरे की खेती को काफी बढ़ावा दिया है. इससे बाजरे के रकबे में बढ़ोतरी देखी जा रही है. लोगों में जागरूकता बढ़ने के कारण बाजरे की मांग भी बढ़ रही है जिससे किसानों की आय में बढ़ोतरी देखी जा रही है.

ये भी पढ़ें: खाद्य सुरक्षा और पोषण में मिलेट का अहम योगदान, विशेषज्ञों ने बताया मोटे अनाजों का महत्व

मिलेट की खेती के लिए ऐसी जगह का चुनाव करें जहां सबसे ज्यादा सूरज की रोशनी पड़ती हो. इससे मोटे अनाज वाले पौधों को बढ़ने के लिए पोषक तत्व मिलने में आसानी होगी. जिस खेत में मिलेट बोना हो उस खेत की मिट्टी तैयार करने के साथ-साथ उसमें नाइट्रोजन की मात्रा अधिक रखें. प्रत्येक मोटे आनाज के बीज को एक दूसरे से 5 सेमी की दूरी पर रोपें. प्रत्येक बीज को कम से कम एक इंच मिट्टी से ढक दें. बीज क्यारियों के बीच कम से कम 12 इंच की दूरी होनी चाहिए. जैसे-जैसे मोटे अनाज का पौधा बढ़ता है, उसकी मिट्टी में नाइट्रोजन उर्वरक की मात्रा बढ़ाते रहें. ऐसा इसलिए करना पड़ता है क्योंकि मोटे अनाज का पौधा मिट्टी से बड़ी मात्रा में नाइट्रोजन लेता है. प्रत्येक मिलेट के पौधे के चारों ओर मल्चिंग करें ताकि मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद मिल सके. मोटे अनाज में पानी न दें. मिलेट की वृद्धि के लिए सामान्य वर्षा पर्याप्त होती है, अत: अलग से सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती. मोटे अनाज के पकने का सही समय चुनें और कटाई शुरू करें. जब पौधों और बालियों का रंग सुनहरा हो जाए तो उनकी कटाई शुरू कर दें.

क्या है अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष?

दु‍न‍ियाभर के देशों में मौजूदा समय में जलवायु पर‍िवर्तन का संकट मंडरा रहा है. इस वजह से बैमौसम बार‍िश और सूखे जैसे हालात आम हो गए हैं. नतीजतन फसलों पर व‍िपर‍ीत असर पड़ा है. वहीं वैज्ञान‍िक इस दशक को जलवायु पर‍िवर्तन के ल‍िहाज से सबसे संवेदनशील बता रहे हैं. साथ ही इस संकट से न‍िपटने की बातें भी होने लगी हैं. इसी कड़ी में भारत दुन‍िया को रास्ता द‍िखाते हुए नजर आ रहा है. ज‍िसमें भारत ने मोटे अनाजों से जलवायु पर‍िवर्तन के संकट से न‍िपटने की रूपरेखा तैयार की है. भारत के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) ने 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट (international year of millet) के तौर पर मनाने का फैसला ल‍िया है. इसका आगाज इटली की राजधानी रोम में भारत सरकार की तरफ से क‍िया गया है. इतना ही नहीं लोगों की थाली में मिलेट को पहुंचाने और मिलेट्स के बारे में लोगों को बताने के लिए यह फैसला लिया गया है. 

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