पारंपरिक खेती से धीरे-धीरे किसानों का मोह भंग होता जा रहा है. इसका एकमात्र कारण यह है कि पारंपरिक खेती से कोई लाभ नहीं होता. यही वजह है कि किसान अब पारंपरिक खेती के स्थान पर फलदार पेड़ों की खेती करने लगे हैं. ऐसे ही बिहार सरकार को ओर से "किसान श्री" के सम्मान से सम्मानित किसान हैं, जिन्होंने धीरे-धीरे पारंपरिक खेती छोड़कर फलदार पेड़ों की खेती शुरू कर दी है और उन्हें इससे अच्छा मुनाफा भी हो रहा है. जमुई के एक किसान धान-गेहूं की खेती छोड़कर अब फलदार पेड़ों की खेती करना बेहतर समझ रहे हैं. यह किसान ना सिर्फ आम बल्कि अन्य फलों के पेड़ों की खेती कर अच्छी कमाई कर रहा है. इस किसान को सालाना 20 से 25 लाख का मुनाफा हो रहा है और धीरे-धीरे वह अपने सभी खेतों में केवल फलदार पेड़ लगाने की योजना भी बना रहा है.
जमुई जिला के बरहट प्रखंड के नूमर गांव के दिलीप सिंह बिहार सरकार के किसान श्री सम्मान से नवाजे जा चुके हैं. 63 वर्षीय दिलीप सिंह अब तक 13 बीघा खेत में आम और अन्य फलदार पेड़ लगा चुके हैं. यूं कहें तो दिलीप कुमार सिंह पारंपरिक खेती को छोड़ चुके हैं और उसकी जगह पर यह फलदार पौधों की खेती कर रहे हैं. पिछले 10 सालों से उनके द्वारा लगातार फलदार पौधों की खेती की जा रही है.
किसान श्री से सम्मानित किसान दिलीप कुमार सिंह का कहना है कि उनके परिवार में पुश्तों से धान और गेहूं की पारंपरिक खेती की जाती थी, जिसमें उन्हें किसी प्रकार का मुनाफा नजर नहीं आ रहा था. धान और गेंहू की खेती करने में जितनी लागत लगती है उतना मुनाफा भी नहीं निकल पाता था. स्थिति ऐसी हो जाती थी कि जमा पूंजी भी वापस नहीं मिलती थी. दिलीप सिंह का कहना है कि ऐसी स्थिति में अपने एक रिश्तेदार से सीख लेकर फलदार पेड़ ही लगाना उचित लगा.
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दिलीप सिंह ने बताया कि दस साल पहले उन्होंने 10 बीघे में आम के पेड़ लगाकर इसकी शुरुआत की और आज की तारीख में वह सालाना 20 से 25 लाख रुपये कमा रहे हैं. उन्होंने बताया कि 10 बीघे में करीब 400 आम के पेड़ लगाये गये हैं. एक पेड़ की कीमत करीब 400 रुपये है. जो तीन वर्ष में फलदायी हो जाता है.
उन्होंने बताया कि वह पिछले कई सालों से पारंपरिक खेती से हटकर कुछ करना चाहते थे, लेकिन परिवार के लोग इसके लिए तैयार नहीं थे. इसी बीच में अपने एक रिश्तेदार के घर गया था, जहां पर मैंने देखा कि उस गांव के लोग आम सहित अन्य कई प्रकार के पौधों की खेती कर अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं. वहीं से यह विचार मन में आया. आम के पेड़ अररिया के फारबिसगंज और भागलपुर के सबौर से लाकर अपने खेतों में लगाया है. उन्होंने कहा कि इसी महीने तीन बीघा में फिर से 100 आम के पेड़ को लगाया गया है जो तीन साल में तैयार हो जाएगा. दिलीप सिंह का कहना है कि फलदार पौधों की खेती करने से केवल आमदनी ही नहीं बल्कि इससे पर्यावरण की भी रक्षा होती है. उन्होंने कहा कि यह पौधे ऑक्सीजन देते हैं जो हमारे पर्यावरण के लिए काफी सही है.
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