तेलंगाना सरकार ने लोन माफी योजना के तहत किसानों के लिए दूसरी किस्त जारी कर दी है. एक दिन पहले सरकार ने 6.4 लाख किसानों के 6198 करोड़ रुपये के लोन माफ किए. सरकार ने दूसरी किस्त में हर किसान को लोन माफी के तौर पर 1.5 लाख रुपये दिए हैं. इसके अलावा सरकार ने पहली किस्त में 6,098 करोड़ रुपये जारी करके इस योजना की शुरुआत की थी, जिसमें लगभग 11.5 लाख किसानों की 1 लाख रुपये लोन माफी के तौर पर दिए गए.
तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने मंगलवार को कहा कि दूसरे चरण के किस्त वितरण की औपचारिक शुरुआत हो चुकी है. सीएम रेवंत रेड्डी ने विधानसभा परिसर में किसानों के एक समूह को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार ने किसानों के आधे हिस्से पर एकमुश्त निपटान की मांग नहीं की थी. उन्होंने कहा कि अपने पुनर्भुगतान कार्यक्रम में चूक करने के बाद, कॉर्पोरेट एकमुश्त निपटान की मांग करेंगे, बैंकों से भुगतान की जाने वाली राशि को कम करने के लिए कहेंगे, लेकिन हमने इस तरह की कटौती नहीं करने का फैसला किया है और उन्हें पूरा भुगतान कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें:- बिहार में गोदाम सब्सिडी योजना का ऑनलाइन आवेदन शुरू, इन 5 स्टेप्स में कर सकते हैं अप्लाई
सीएम रेवंत रेड्डी ने आरोप लगाया कि कॉर्पोरेट और अन्य व्यावसायिक घराने बैंकों से भारी कर्ज लेते हैं और घाटे का हवाला देकर उन्हें चुकाने से बचने की कोशिश करते हैं. उन्होंने कहा कि किसान घाटे के बाद आत्महत्या कर रहे हैं. वे कृषि कामों के लिए बैंकों और निजी कर दाताओं से कर्ज लेते हैं, लेकिन बाद में भारी कर्ज में डूब जाते हैं.
कर्ज माफी सबसे बड़े वादों में से एक है. 2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस द्वारा किया गया ये प्रमुख वादा है. इससे पहले बीआरएस सरकार पर राज्य पर भारी कर्ज का बोझ डालने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि कांग्रेस सरकार को पिछले आठ महीनों में ब्याज अदायगी के लिए 43,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा है.
तेलंगाना कि कृषि मंत्री तुम-माला नागेश्वर राव ने कहा कि राज्य में पाम ऑयल सेक्टर में अपार संभावनाएं हैं. उन्होंने कहा कि देश खाद्य तेल की खरीद पर 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर रहा है. हमारे पास मांग को पूरा करने की अपार संभावनाएं हैं. उन्होंने किसानों से अपील की कि वे अगले कुछ वर्षों में घरेलू मांग को पूरा करने के लिए रकबा बढ़ाकर 10 लाख करें.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today