पीएम कुसुम योजना का लाभ निचले स्तर तक पहुंचने और अपनाने में दिक्कतें आ रही हैं. अब तक तय टारगेट से केवल 30 फीसदी ही पूरा किया जा सका है. जबकि, योजना खत्म होने की डेडलाइन नजदीक है. एजेंसी ने रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पीएम कुसुम योजना को लेकर किए गए सर्वे में यह खुलासा हुआ है. हालांकि, हरियाणा के जिन किसानों ने योजना के जरिए सोलर सिंचाई पंप पर स्विच किया है वे सालाना 55 हजार रुपये तक की बचत कर रहे हैं.
देश में कृषि क्षेत्र में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 2019 में शुरू की गई पीएम कुसुम योजना का उद्देश्य किसानों को सौर ऊर्जा पर स्विच करने में मदद करना है, जिससे खेती अधिक टिकाऊ बने. योजना का लाभ पहुंचने और इसको अपनाने की गति बहुत धीमी बताई गई है. पीटीआई ने एक नई रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि योजना ने अपने टारगेट का केवल 30 फीसदी ही हासिल किया है.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की रिपोर्ट में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में किए गए सर्वे के बाद कहा गया है कि योजना ने 6 साल बाद अपने लक्ष्यों का केवल 30 फीसदी ही हासिल किया है, जबकि 2026 की समय सीमा तेजी से नजदीक आ रही है. एजेंसी ने कहा कि क्लाइमेट चेंज का बड़ा प्रभाव जारी है. कृषि क्षेत्र में पीएम कुसुम जैसी योजनाएं जलवायु बदलावों के असर को कम करने में मददगार हैं.
एजेंसी ने सर्वे रिपोर्ट में कहा कि योजना के पहुंचने की गति धीमी है. ज्यादातर प्रयास दूसरी कैटेगरी के लिए किए जा रहे हैं. कहा गया कि हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य पीएम कुसुम योजना के तहत बी कैटेगरी को लागू करने में आगे हैं. जबकि, पहली कैटेगरी और तीसरी कैटेगरी में प्रगति कम दिख रही है.
सर्वे रिपोर्ट में कहा गया कि पीएम कुसुम योजना के जरिए जिन किसानों ने सौर सिंचाई पंपों पर स्विच किया है वे खुश हैं. डीजल से सोलर पंप पर स्विच करने वाले किसान काफी बचत करते हैं. हरियाणा के कुछ किसान सालाना 55,000 रुपये तक की बचत करते हैं.
पीएम कुसुम योजना के लिए बड़ी चुनौतियों में किसानों को राज्यों से सस्ती बिजली मिलना है. इससे किसान इलेक्ट्रिक वॉटर पंप से सोलर वॉटर पंप पर स्विच में हिचक रहे हैं. इसके अलावा किसानों को अकसर अपनी जमीन की जरूरत से बड़े आकार के पंप लगाने की मजबूर भी बड़ी चुनौती बनी हुई है. वहीं, कुछ राज्यों में लागू होने वाला केंद्र का मॉडल भी चुनौती बना है. पीएम कुसुम योजना की क्षमता को सही मायने में साकार करने के लिए एक खुला मॉडल जरूरी है.
सीएसई की रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब में इस योजना का लाभ देने के लिए देखरेख पंजाब अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी करती है. जबकि, राजस्थान में योजना की हर कैटेगरी के लिए अलग-अलग एजेंसी है. योजना की कैटेगरी बारे में जरूरी जानकारी रखने वाली राज्य एजेंसियों को अपनी विशेषज्ञता के भीतर कैटेगरी को लागून करने के लिए जिम्मेदार होना चाहिए. एजेंसी ने सुझाव दिया कि किसानों को किस्त में सोल पंप के लिए भुगतान करने की अनुमति दी जानी चाहिए, जिससे यह उनके लिए वित्तीय रूप से अधिक सरल हो जाएगा. केंद्र सरकार को राज्यों को वित्तीय सहायता बढ़ानी चाहिए, खासकर कोविड के बाद सौर मॉडल की बढ़ती लागत को कवर करने के लिए.
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