सहकार‍िता क्षेत्र को आगे बढ़ाने के ल‍िए क‍िए गए 48 बड़े काम, अब सरकार इन समस्याओं पर भी दे ध्यान

सहकार‍िता क्षेत्र को आगे बढ़ाने के ल‍िए क‍िए गए 48 बड़े काम, अब सरकार इन समस्याओं पर भी दे ध्यान

नेशनल कोऑपरेटिव यून‍ियन ऑफ इंड‍िया (NCUI)  की वार्षिक सामान्य निकाय की बैठक में इसके चेयरमैन द‍िलीप भाई संघानी ने उठाया सहकारी ऋण समितियों और सहकारी शिक्षा निधि का मुद्दा. कहा-भारत ने तैयार क‍िया 'सहकार से समृद्धि' का रोडमैप. समितियों का हो रहा व‍िस्तार. 

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सहकार‍िता क्षेत्र को आगे बढ़ाने के ल‍िए क‍िए गए 48 बड़े काम, अब सरकार इन समस्याओं पर भी दे ध्यानएनसीयूआई की वार्षिक सामान्य निकाय की बैठक में मौजूद सहकार‍िता क्षेत्र के द‍िग्गज (Photo-Kisan Tak),

नेशनल कोऑपरेटिव यून‍ियन ऑफ इंड‍िया (NCUI) के चेयरमैन द‍िलीप भाई संघानी ने कहा है क‍ि सहकारी आंदोलन देश की अर्थव्यवस्था व सामाजिक उत्थान के लिए एक महत्वपूर्ण संगठन है. जो भारतीय संस्कृति व संस्कार तथा जीवन प्रणाली का हिस्सा है. यह गरीबों, किसानों, बेरोजगार युवाओं व महिलाओं की जीवका का एक संसाधन है. देश का हर गांव, व अधिकांश घर किसी न किसी रूप से सहकारिताओं से जुड़कर लाभ ले रहा है. सहकारिताओं की क्षमताओं को समझते हुए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में 'सहकार से समृद्धि' का रोडमैप तैयार क‍िया है. इसके ल‍िए उन्होंने नए सहकारिता मंत्रालय की स्थापना करके उसकी बागडोर अमित शाह को दी है. सहकारिता मंत्रालय ने प‍िछले दो साल में 48 ऐसे कदम उठाए हैं जिससे देश की सहकारी समितियों के कार्यक्षेत्र का व‍िस्तार हो रहा है और वो आर्थिक रूप से मजबूत होकर उभर रही हैं.

संघानी एनसीयूआई की वार्षिक सामान्य निकाय की बैठक को संबोध‍ित कर रहे थे. जानेमाने सहकार‍िता नेता संघानी इन द‍िन दुन‍िया की नंबर वन सहकारी कंपनी इफको यानी इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड के चेयरमैन भी हैं. वो सांसद और गुजरात के कैब‍िनेट मंत्री भी रह चुके हैं. संघानी ने कहा क‍ि नए मंत्रालय द्वारा सहकारी समितियों की समस्याओं को तेजी से दूर किया गया है. नई समितियों के गठन का लक्ष्य रखा गया है, टैक्स को कम किया गया है और समितियों के कम्प्यूटरीकरण जैसे महत्वपूर्ण काम क‍िए गए हैं. वार्षिक सामान्य निकाय की बैठक में उन्होंने खुद व‍िशेष तौर पर एमएसपी कमेटी के सदस्य ब‍िनोद आनंद को बुलाकर सहकार‍िता क्षेत्र के द‍िग्गजों के बीच जगह दी.

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ऋण समितियां पर न लागू क‍िए जाएं बैंकों जैसे न‍ियम 

संघानी ने कहा क‍ि बहुराज्यीय सहकारी जमा व ऋण समितियां, जो छोटे-छोटे व्यापारियों को ऋण देती हैं, उनकी व्यापार पूंजी अधिक नहीं होती. अभी सरकार ने उनके लिए सहकारी बैंक जैसे नियम लागू किए हैं. जैसे कि उनकी अपनी पूंजी का एक भाग आरबीआई और राष्ट्रीयकृत बैंको में संरक्षित रखना, सीआरआर यानी कैश रिजर्व रेश्यो का भी बैंको की तरह पालन करना होगा. हम जानते हैं इन ऋण समितियां को अधिकांश छोटे-छोटे दुकानदारों व गरीबों ने बनाई है. उसके पास अधिक पूंजी नहीं होती.  यदि वह एक बड़ा हिस्सा सरकारी संस्थाओं में जमा कर देंगी तो फिर लोन देने के लिए व्यापारिक पूंजी कम हो जाएगी.

साथ ही इन समितियों को इस संरक्षित धन पर बहुत कम ब्याज मिलता है. जबकि समितियों में ज‍िन लोगों का पैसा जमा होता है उस पर वे अधिक ब्याज देती हैं. यदि कम ब्याज देंगे तो लोग इनमें पैसा जमा नहीं करेंगे. फ‍िर ये समितियां लोन नहीं दे पाएंगी.  ऐसे में धीरे-धीरे घाटे में चलकर बंद हो जाएंगी. जिससे छोटे दुकानदारों व गरीबों का ऋण का साधन खत्म हो जाएगा. यह एक व्यवहार‍िक समस्या है. उम्मीद क‍ि सहकार‍िता मंत्रालय इस समस्या को दूर करेगा.  

बिगड़ने न पाए सहकारिता का स्वरूप  

संघानी ने कहा क‍ि कुछ बिंदु जो एनसीयूआई के कार्यक्रम और देश में सहकारी आंदोलन के विकास से संबंधित है, पर हमने सरकार को अपनी असहमति दर्शायी है. परंतु अभी बहुराज्यीय सहकारी अधिनियम की नियमावली में सहकारी शिक्षा निधि कमेटी के सभी 9 सदस्य अधिकारियों को बनाया गया है. यह सहकारिता के मूल दर्शन के विरुद्ध है. 

सहकारी आंदोलन जिसमें लोग अपनी आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एकत्र होकर सहकारिता का गठन करते हैं. उसमें पूंजी लगाते हैं. प्रजातांत्रिक तरीके से उसका प्रबंध करते हैं. सरकार इसमें एक सहयोगी की भूमिका निभाती है. अगर सरकार का कहीं पर अनावश्यक हस्तक्षेप होता है तो सहकारिता का स्वरूप बिगड़ जाता है. 

एनसीयूआई के चेयरमैन ने कहा क‍ि वर्ष 1967 में सरकार द्वारा गठित कमेटी के सुझाव पर सहकारी शिक्षा निधि राज्य सहकारी संघों को भेजी जाती है. जिससे वह राज्य की सहकारी समितियों के विकास के लिए शिक्षण व प्रशिक्षण का कार्य करते हैं. उसी प्रकार सरकार द्वारा बनाई गई क्रेफीकार्ड कमेटी ने 1980 में सुझाया था कि राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ, मानव संशाधन विकास के ल‍िए उचित संस्था है. 

इसलिए वर्ष 1984 में बहुराज्यीय सहकारी अधिनियम के पास होने से अब तक सहकारी शिक्षा निधि एनसीयूआई एकत्र करती थी. सरकार द्वारा बनाई नियमावली के अनुसार, एक कमेटी द्वारा स्वीकृत धनराशि शिक्षा व प्रशिक्षण के कार्यों पर खर्च करती थी. इस कमेटी का अध्यक्ष, भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ का अध्यक्ष होता था. 

सहकारी शिक्षा निधि का उठाया मुद्दा

संघानी ने कहा, हम सभी जानते हैं कि सहकारी आंदोलन में उसके सदस्य समिति के मालिक होते हैं. वह अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं. उनकी देख रेख में सहकारिताओं के सारे काम होते हैं. अर्थात सहकारिताओं का नेतृत्व चुने हुए प्रतिनिधि करते हैं. चूंकि सहकारी शिक्षा निधि, सहकारी समितियों द्वारा एकत्र धनराशि है, जिसका प्रबंधन न‍िश्च‍ित तौर पर सहकारी नेतृत्व के हाथ में होना चाहिए. इसल‍िए हमने अपना सुझाव सहकारिता मंत्रालय तथा सहकारिता मंत्री तक पहुंचा दिया है. आशा है, वह इस पर गंभीरता से विचार करेंगे तथा कमेटी के सदस्यों में चुने हुए सहकारी प्रतिनिधियों का अधिक प्रतिनिधित्व देंगे. 

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एनसीयूआई ने नई योजना पर जताई असहमत‍ि

चेयरमैन ने कहा क‍ि एक और विषय पर भी हमने अपनी असहमति दर्शायी है. सहकारिताओं में शिक्षण व प्रशिक्षण के ल‍िए एक नई योजना बनाई जा रही है. अब इस योजना के माध्यम से ही दिए गए धन से सहकारी संस्थाओं द्वारा शिक्षण प्रशिक्षण व अनुसंधान कार्य किए जाएंगे. लेक‍िन इसमें एनसीयूआई का नाम नहीं रखा गया है. जबकि राज्यों में संचालित सहकारी प्रशिक्षण केंद्रों के नाम हैं. एनसीयूआई के राष्ट्रीय सहकारी शिक्षा केंद्र तथा परियोजनाओं के माध्यम से दो लाख से अधिक लोगों को प्रतिवर्ष प्रशिक्षित किया जाता है. इस संबंध में भी हमने प्रमाणित तथ्यों सहित र‍िपोर्ट सहकारिता मंत्रालय को दी है. उम्मीद है क‍ि संघ को देश के सहकारी शिक्षण प्रशिक्षण, अध्ययन व प्रचार प्रसार के कार्यों के लिए मुख्य भूमिका में रखा जाएगा. 


 
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