किसानों को एमएसपी में नहीं मिल रहा फसलों का सही रेट (सांकेतिक तस्वीर)कर्नाटक एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन (KAPC) ने एमएसपी को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार का एमएसपी फॉर्मूला किसानों के लिए घाटे का सौदा है. इस रिपोर्ट के जरिये केएपीसी ने केंद्र सरकार से मांग की है कि उसे जल्द एमएस स्वामीनाथन फॉर्मूले को लागू कर देना चाहिए. रिपोर्ट में कहा गया है कि एमएसपी फॉर्मूले से किसानों की खेती का खर्चा भी नहीं निकल पाता. कर्नाटक एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन की यह रिपोर्ट पिछले साल ही जारी होने वाली थी, लेकिन इसे फरवरी 2023 में पेश किया गया. रिपोर्ट में देरी के पीछे चुनाव का हवाला दिया गया है. देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी कि MSP का मुद्दा बेहद संवेदनशील है क्योंकि यह सीधे किसानों की आय से जुड़ा है. ऐसे में कर्नाटक से आई यह रिपोर्ट एमएसपी पर एक नए बहस को छेड़ सकती है.
एमएसपी का मौजूदा फॉर्मूला केंद्र सरकार के बनाए कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट्स एंड प्राइसेस (CACP) पर आधारित है. सीएसीपी के सुझाए नियमों पर ही अभी किसानों को उनकी फसलों की एमएसपी दी जाती है. सीएसीपी के फॉर्मूले के मुताबिक, फसल का खर्च, खेत के किराये (लैंड लीज) का खर्च और मजदूरी का खर्च एक साथ जोड़ा जाता है. इन तीनों खर्च को जोड़ने के बाद सरकार उस पर 50 फीसद अधिक रेट लगाकर किसानों का एमएसपी तय करती है. कर्नाटक एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन को इस रेट पर एतराज है.
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'डेक्कन हेराल्ड' में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, केएपीसी ने एमएसपी को लेकर अपना जो हिसाब लगाया है, उसके मुताबिक केंद्र सरकार किसानों के खर्च को कम आंक रही है. रिपोर्ट कहती है, राष्ट्रीय स्तर पर फसलों की खेती का जो औसत है, उससे अधिक खर्च कर्नाटक के किसानों को वहन करना पड़ता है. इस हिसाब से केंद्र सरकार फसलों की जो एमएसपी देती है, वह कर्नाटक के किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित नहीं होता. रिपोर्ट में रागी की खेती का फॉर्मूला दिया गया है. फॉर्मूले के मुताबिक, कर्नाटक में एक क्विंटल रागी उगाने में 3935 रुपये का खर्च आता है जबकि केंद्र सरकार का सीएसीपी इसे घटाकर 2385 रुपये निर्धारित करता है. बड़ी बात ये है कि कर्नाटक के एग्रीकल्चर कमीशन ने इसमें लैंड लीज का खर्च नहीं जोड़ा है.
एमएस स्वामीनाथन की रिपोर्ट में लैंड लीज के खर्च को भी एमएसपी में शामिल करने का सुझाव है. ऐसे में अगर लैंड लीज को शामिल कर लें तो एक क्विंटल रागी की केएपीसी 5286 रुपये हो जाएगी जबकि केंद्र सरकार इसके लिए 3198 रुपये ही देने का फॉर्मूला देती है. केएपीसी की रिपोर्ट एक और महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाती है. इसमें कहा गया है कि एपीएमसी में फसलों की आवक और उसकी कीमतों के आधार पर एमएसपी तय की जाती है. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि 369 लाख खाद्यान्न और बागवानी फसलों का 15 परसेंट ही एमएसपी में बिक्री होता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि एमएसपी को सही आंकने के लिए यह जरूरी है कि एपीएमसी से बाहर बेची गई फसलों के रेट के आधार पर एमएसपी तय की जाए.
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कर्नाटक की रिपोर्ट में कहा गया है कि एमएसपी में फैमिली लेबर (घर के लोगों की मजदूरी का खर्च) और खेती के खर्च को कम आंका जाता है जबकि ये दोनों खर्च बहुत मायने रखते हैं. उदाहरण के लिए, बारिश से सिंचित इलाके में धान की एमएसपी फैमिली लेबर और खेती के खर्च से 19 परसेंट कम दी जाती है. इसी तरह ज्वार की एमएसपी 10 परसेंट कम, हाइब्रिड ज्वार की एमएसपी 16 परसेंट कम, बाजरे की एमएसपी 14 फीसद कम, उड़द दाल की 13 और तुर की एमएसपी तीन फीसद कम दी जाती है. रिपोर्ट के मुताबिक, रागी, ज्वार, बाजरा, तुर दाल, उड़द, मूंगफली, सोया और सूरजमुखी उगाने वाले किसानों को भारी घाटा होता है. अगर इसमें लैंड लीज का खर्च शामिल कर दिया जाए तो मक्का और चने को छोड़कर सभी किसान घाटे में रहते हैं.
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