
झारखंड सरकार की महत्वाकांक्षी योजना 'पलाश' योजना को एडीबीआई के शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा. झारखंड राज्य आजीविका संवर्धन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) के अंतर्गत चलने वाली यह योजना अब देश के बाहर भी लोकप्रिय हो रही है. टोक्यो स्थित एशियाई विकास बैंक संस्थान (एडीबीआई) ने झारखंड की 'पलाश' योजना पर एक महत्वपूर्ण केस स्टडी प्रकाशित की है. यह योजना ग्रामीण महिलाओं को उद्यमिता के माध्यम से सशक्त बनाने के लिए शुरू की गई है. झारखंड कैडर के आईएएस अधिकारी डॉ. मनीष रंजन द्वारा लिखित यह केस स्टडी जल्द ही अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनेगी.
हज़ारीबाग के डीसी शशि प्रकाश सिंह ने कहा, "यह केस स्टडी दर्शाती है कि कैसे पलाश मॉडल ग्रामीण महिलाओं को सामूहिक रूप से उत्पाद बनाने और उन्हें 'पलाश' ब्रांड के तहत बेचने में मदद कर रहा है. इससे उन्हें बेहतर दाम मिल रहे हैं और स्थायी आजीविका सुनिश्चित हो रही है. यह केस एमबीए छात्रों, जननेताओं और नीति निर्माताओं के लिए एक संसाधन का काम करेगा."
वर्तमान में, झारखंड में 2,89,000 स्वयं सहायता समूह (सखी मंडल) सक्रिय हैं, जिनमें 32 लाख से ज़्यादा महिला सदस्य हैं. ये महिलाएं अब सफल किसान और उत्पादक के रूप में उभरी हैं और नए आर्थिक अवसर पैदा कर रही हैं.
JSLPS के तहत हज़ारीबाग में पलाश से जुड़ी महिलाएं स्वरोज़गार कर खुद को समृद्ध बना रही हैं. गांव में सखी मंडल द्वारा बनाए गए उत्पादों के आउटलेट समाहरणालय में खोले गए हैं जहां पलाश से जुड़ी महिलाओं के वन उत्पाद, कला, खाद्य सामग्री बेची जाती है. आउटलेट की संचालिका कहती हैं कि सरकार की यह योजना बेहद कारगर है और हम सभी के जीवन स्तर में इसकी वजह से काफी सुधार आया है, हम सभी आज अपने पैरों पर खड़ी हो पाई हैं.
समाहरणालय परिसर में दीदी कैफ़े चलाने वाली दीदी कहती हैं, "पलाश से जुड़ने के बाद हमारी आर्थिक स्थिति में काफ़ी सुधार आया है. पहले पैसों की बहुत कमी थी, लेकिन अब यहाँ से जुड़ने और इस आउटलेट को खोलने के बाद हम सभी आर्थिक रूप से मज़बूत हो गई हैं. हम सभी यहाँ पारंपरिक व्यंजन बनाती हैं, जिनमें धुस्का, बर्रा, कचरी जैसी चीज़ें शामिल हैं, जो ग्रामीण स्वाद के कारण बहुत से लोगों को पसंद आती हैं. हम सभी जेएसएलपीएस पलाश से जुड़कर बहुत खुश हैं."
झारखंड सरकार द्वारा ग्रामीण महिलाओं को समृद्ध बनाने के उद्देश्य से चलाई जा रही पलाश योजना एक बेहद सफल योजना कही जा सकती है क्योंकि लाखों महिलाएं इस योजना से जुड़कर अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बना रही हैं. इसे और समृद्ध बनाने की आवश्यकता है ताकि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं अपने उत्पादों को देश-विदेश में भी भेज सकें. (बिस्मय अलंकार का इनपुट)
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