Makhana Farming: देश में मखाने की 80 फीसदी खेती अकेले बिहार में की जाती है, लेकिन अब बिहार ही नहीं बल्कि यूपी के किसान भी मखाने की खेती करेंगे. इसके लिए वाराणसी उद्यान विभाग के अधिकारियों ने बड़ी पहल की है. इंडिया टुडे के किसान तक से बातचीत में वाराणसी के जिला उद्यान अधिकारी सुभाष कुमार ने बताया कि पहली बार किसानों को मखाने की खेती के लिए प्रोत्साहन किया जा रहा है. वाराणसी में मखाने की खेती से किसान अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं. इसके लिए 25 किसानों को अक्टूबर में दरभंगा के मखाना संस्थान ट्रेनिंग के लिए भेजा जाएगा. इसके लिए वाराणसी के सभी 8 ब्लॉक से किसानों का चयन हुआ है.
उन्होंने बताया कि दरभंगा स्थित मखाना संस्थान में ट्रेनिंग के बाद यह किसान वाराणसी में इसकी खेती शुरू करेंगे. इसके लिए उद्यान विभाग ने तालाबों का चयन भी कर लिया है. वाराणसी के बाद आसपास के जिलों में भी इसकी खेती शुरू होगी. जिला उद्यान अधिकारी सुभाष कुमार बताते हैं कि शुरुआत में 10 हेक्टेयर के क्षेत्रफल में इसकी खेती की जाएगी. मखाने की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर करीब 80 हजार रुपये की लागत आती है. मखाने की खेती करने वाले किसानों को इसका 50 फीसदी यानी 40 हजार रुपये उद्यान विभाग की तरफ से किया जाएगा.
जिला उद्यान अधिकारी सुभाष कुमार ने बताया कि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल, तराई और मध्य यूपी के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां खेतों में साल भर जल जमाव रहता है. इन खेतों में किसान आसानी से मखाना की खेती कर सकते हैं. मखाने की खेती ज्यादातर तालाबों या तालों में की जाती है. अगर तालाब उपलब्ध नहीं हैं तो खेत में भी इसकी खेती की जा सकती है. बशर्ते खेत में 6 से 9 इंच तक पानी जमा होने की व्यवस्था करनी होती हैं.
सुभाष कुमार ने कहा कि तालाब में मखाना की खेती पारंपरिक तकनीक है. इसमें सीधे तालाब में ही बीज का छिड़काव होता है. वहीं बीज डालने के करीब डेढ़ महीने बाद पानी में बीज उगने लगता है. वहीं 60 से 65 दिन बाद पौधे जल की सतह पर दिखने लगते हैं. उस समय पौधों से पौधों और पंक्ति से पंक्ति के बीच करीब एक मीटर की दूरी रखनी चाहिए. मखाने की खेती से न सिर्फ किसान मोटी कमाई कर सकेंगे बल्कि इससे पर्यावरण और जल संरक्षण का काम भी होगा. क्योंकि मखाने की खेती तालाब में होती है.
Copyright©2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today