इथेनॉल प्रोडक्शन पर जलवायु परिवर्तन (climate change) की मार पड़ी है. जलवायु परिवर्तन की वजह से इथेनॉल के उत्पादन में भारी गिरावट की आशंका है. ऐसे में बड़ा सवाल ये खड़ा हो रहा है कि सरकार ने पेट्रोल में इथेनॉल ब्लेंडिंग का जो लक्ष्य रखा है, उसका क्या होगा. सरकार ने 2030 तक पेट्रोल में 20 परसेंट इथेनॉल मिलाने का निर्णय लिया है. लेकिन अभी चीनी उद्योग और इथेनॉल ब्लेंडिंग को लेकर कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं.
इन चुनौतियों को देखते हुए इंडियन शुगर एंड बायो-एनर्जी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ISMA) ने सरकार से आग्रह किया है कि नीतियां बनाकर इस समस्या से निपटा जाए. इथेनॉल उत्पादन में गिरावट के पीछे की असली वजह गन्ने के उत्पादन में कमी को बताया जा रहा है. गन्ने की कमी के पीछे क्लामेट चेंज और अल-नीनो सबसे बड़ा जिम्मेदार है. दरअसल, जलवायु परिवर्तन की वजह से अल-नीनो का असर बढ़ा है. अल-नीनो की वजह से बारिश की मात्रा घटी है जिससे खेती प्रभावित हुई है. इसी खेती में गन्ना भी शामिल है. बीते साल से लेकर अभी तक बारिश कम हुई है जिससे गन्ने की फसल बेहद प्रभावित हुई है. गन्ने का उत्पादन गिरा है. लिहाजा इथेनॉल के उत्पादन में भी कमी आई है.
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अल-नीनो की वजह से दिसंबर 2023 से इथेनॉल के उत्पादन पर प्रतिकूल असर देखा जा रहा है. अल-नीनो ने गन्ने की पैदावार घटाई है जिससे चीनी के साथ-साथ इथेनॉल का उत्पादन गिरा है. इस गिरावट के बीच इस्मा ने कहा है कि नीतियों में कुछ बदलाव किया जाए तो भारत में अतिरिक्त 250 करोड़ लीटर इथेनॉल का उत्पादन हो सकता है. इस्मा का कहना है कि अगर 25 लाख टन चीनी इथेनॉल बनाने वाली फैक्ट्रियों को दिया जाए तो भारत आसानी से 250 करोड़ लीटर इथेनॉल का उत्पादन कर सकता है. इस्मा ने कहा है कि चीनी के इस डायवर्जन से देश की मांग पर कोई बुरा असर भी नहीं पड़ेगा. चीनी की इस मात्रा से देश में इथेनॉल उत्पादन के टारगेट को आसानी से हासिल किया जा सकता है.
इस्मा के अध्यक्ष प्रभाकर राव ने 'बिजनेसलाइन' से कहा, भारत का चीनी उद्योग सरकार के इथेनॉल उत्पादन टारगेट को पूरा करने में सक्षम है. साल 2023 तक ईंधन में 20 परसेंट इथेनॉल मिलाने का लक्ष्य रखा गया है जिसे शुगर इंडस्ट्री आसानी से हासिल कर सकती है. राव ने कहा कि सरकार अगर नीतियों के मुताबिक शुगर इंडस्ट्री की मदद करे और गन्ना उत्पादन बढ़ाने के लिए निवेश करे तो चीनी उद्योग कुल इथेनॉल के उत्पादन का 60 परसेंट हिस्सा पूरा सकता है. हालांकि इस काम में कई चुनौतियां हैं जिनमें इथेनॉल उत्पादन के लिए कच्चे माल की आपूर्ति सबसे अहम है. राव ने अपने सुझाव में कहा कि चीनी पर अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाए और गन्ने का एफआरपी घोषित किया जाए तो इससे इथेनॉल उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी.
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