केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सोमवार को कहा कि सरकार ने 1,584 करोड़ रूपये के खर्च के साथ एक अलग योजना के रूप में प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय मिशन को मंजूरी दी है. हालांकि, योजना का ब्योरा अभी जारी नहीं किया गया है. दिल्ली में टिकाऊ खेती के लिए मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन पर राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए तोमर ने कहा कि रासायनिक खेती और अन्य कारणों से मिट्टी की उर्वरता कम हो रही है.
उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में जलवायु परिवर्तन देश और दुनिया के लिए एक बड़ी चिंता का विषय होगा. यह कहते हुए कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. तोमर ने कहा, "मिट्टी में जैविक कार्बन की कमी हमारे लिए एक गंभीर चिंता का विषय है."
रासायनिक खेती से मिट्टी की उर्वरता खत्म होने की ओर इशारा करते हुए तोमर ने कहा कि बेहतर मृदा स्वास्थ्य की गंभीर चुनौती से निपटने के लिए हमें प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना होगा, जो पर्यावरणीय दृष्टि से उपयुक्त है. आंध्र प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु आदि राज्यों ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए अनेक नवाचार किए है. वहीं, पिछले एक साल के दौरान 17 राज्यों में 4.78 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र प्राकृतिक खेती के अंतर्गत लाया गया है.
उन्होंने कहा कि एक समय था, जब नीतियां उत्पादन केंद्रित थीं और रासायनिक खेती के कारण कृषि उपज में वृद्धि हुई, लेकिन वह तब की परिस्थितियां थीं, अब स्थितियां बदल गई हैं. जलवायु परिवर्तन की चुनौती सामने है और मिट्टी की सेहत को बरकरार रखना बड़ी चुनौती है. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, "प्रकृति के सिद्धांतों के विपरीत धरती का दोहन करने की कोशिश की गई तो परिणाम खतरनाक हो सकते हैं."
उन्होंने कहा कि सरकार ने कृषि के लिए भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति को फिर से अपनाया है, जो कि किसानों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक प्राचीन पद्धति है. नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत गंगा किनारे भी प्राकृतिक खेती की परियोजना चल रही है, जबकि कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) तथा सभी कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) केंद्रीय और राज्य कृषि विश्वविद्यालय, महाविद्यालय प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए चौतरफा कोशिश कर रहे हैं.
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