
छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी RIPA योजना के तहत बने गौठानों में रूरल इंडस्ट्रियल पार्क संचालित किए जा रहे हैं. इनमें गांव के युवाओं एवं महिलाओं को आय में इजाफा करने के नित नए अवसर मिल रहे हैं. रीपा योजना से ग्रामीण इलाकों में लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के उपायों के सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं. गांव के युवाओं और महिलाओं को उनके हुनर के मुताबिक रोजगार के अवसर देकर स्वावलंबी बनने की कड़ी में गारमेंट से लेकर फ्लाई ऐश की ईंट बनाने के उपक्रम सफलता की ओर बढ़ने लगे हैं.
अब तक विकास की मुख्यधारा से कटे रहे छत्तीसगढ़ के गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में बारी उमराव गांव की महिलाएं अब सफल कारोबारी बन गई हैं. मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार इस गांव में राधिका महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाएं गांव में ही स्थापित रीपा केंद्र में फ्लाई ऐश की ईंट बना रही हैं.
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एनआरएलएम की जिला मिशन प्रबंधक दुर्गाशंकर सोनी ने बताया कि हर जिले में ग्रामीण स्तर पर रीपा केंद्र स्थापित किए गए हैं. सोनी ने बताया कि बारी उमराव गांव में राधिका समूह की महिलाएं गांव के पुरुषों के साथ मिलकर फ्लाई एश ब्रिक्स यूनिट का संचालन कर रही हैं. समूह की सदस्य दुवासा पुरी फ्लाई एश की ईंट बनाने वाली मशीन को चलाती हैं. समूह द्वारा अब तक 1.30 लाख से अधिक ईटों का निर्माण किया जा चुका है. इनमें से 1.18 लाख इंटों की बिक्री से समूह को 3.54 लाख रुपये की आय हुई है.
पिछले साल 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 'महात्मा गांधी रूरल इंडस्ट्रियल पार्क योजना' का आगाज किया था. इस योजना के तहत पहले चरण में राज्य के ग्रामीण इलाकों में 300 रूरल इंडस्ट्रियल पार्क विकसित किए जा रहे हैं.
इन पार्कों के विकास के लिए राज्य सरकार ने 600 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया है. इसमें प्रत्येक रीपा केंद्र को स्थापित करने पर 2 करोड़ रुपये दिए जा रहे हैं. इसमें ग्रामीणों काे उनके हुनर के मुताबिक कामों को लघु एवं कुटीर उद्योग के रूप में स्थापित किया जाता है. सरकार का दावा है कि इस योजना की वजह से गांव के गौठानों को रूरल इंडस्ट्रियल पार्क से जोड़ कर ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों की आय में इजाफा हुआ है. इससे ग्रामीणों को अपनी आय बढ़ाने के अवसर पर मिल रहे हैं. साथ ही गांव में उद्यमिता को बढ़ावा मिलने से स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी ग्रामीणों को मिल रहे हैं. इससे लोगों को अब रोजी मजदूरी के लिए बाहर नहीं जाना पड़ रहा है.
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छत्तीसगढ़ में ईटपाल स्थित बीजापुर गारमेंट फैक्टरी में महिलाएं कपड़े बनाने का काम करती है. इस कारखाने में ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाए गए कपड़े देश के दूसरे राज्यों में भेजे जाते हैं. सीएम बघेल ने सोमवार को इस कारखाने का औपचारिक लोकार्पण कर इसमें कपड़े बनाने के कामों का निरीक्षण भी किया. इस दौरान उन्होंने कारखाने में कार्यरत महिलाओं से संवाद कर उनके अनुभव साझा किए. बघेल ने कारखाने में बने कपड़ों की खेप को हरी झंडी दिखाकर बाजार के लिए रवाना किया.
गौरतलब है कि बीजापुर जिले में ग्रामीणों की आजीविका का मुख्य स्रोत खेती एवं वनोपज है. जिले में उद्योग नहीं होने के कारण गांव के लोग रोजगार के लिए पलायन करने को मजबूर हैं. इस स्थिति से किसानों को बचाने के लिए गारमेंट फैक्ट्री शुरू की गई है. यह कारखाना कम लागत में ज्यादा से ज्यादा हितग्राहियों को रोजगार देने के व्यावसायिक मॉडल का उदाहरण बना है.
देश की प्रमुख गारमेंट कंपनियों के साथ करार कर महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे कपड़ों की आपूर्ति की जाएगी. गारमेंट फैक्ट्री में काम करने के लिए 800 महिलाओं की काउंसलिंग कर 200 हितग्राहियों को कामकाज का प्रशिक्षण दिया जा चुका है.
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