‘कल का किसान आज साइकिल में कोयला बेच रहा है’ आदिवासी महोत्सव पर बोले सीएम हेमंत सोरेन

‘कल का किसान आज साइकिल में कोयला बेच रहा है’ आदिवासी महोत्सव पर बोले सीएम हेमंत सोरेन

इस महोत्सव से आदिवासी जीवन दर्शन और लोक संस्कृति को एक अलग और विशिष्ट पहचान मिलेगी. मुख्यमंत्री ने कहा कि नृत्य, संगीत के साथ-साथ सदैव संघर्ष आदिवासी समाज की मुख्य पहचान है.

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‘कल का किसान आज साइकिल में कोयला बेच रहा है’ आदिवासी महोत्सव पर बोले सीएम हेमंत सोरेनझारखड आदिवासी महोत्सव में शामिल हुए शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन फोटोः किसान तक

देश और झारखंड के आदिवासी समाज एकजुट हो और एकजुट होकर आगे बढ़ें. विश्व आदिवासी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने समाज के लोगों से यह अपील की. आदिवासी दिवस के मौके पर रांची के बिरसा मुंडा संग्रहालय में दो दिवसीय महोत्सव का आयोजन किया गया है. इस महोत्सव में देश के कई राज्यों के आदिवासी समाज के लोग शामिल हुए हैं. महोत्सव को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा सभी आदिवासी समुदाय की संस्कृति एक जैसी है. आदिवासियों से मेरा आग्रह है कि वे अपने बच्चे- बच्चियों को शिक्षित जरूर करें. जब बच्चे शिक्षित होंगे तभी आदिवासी समुदाय उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ेगा.

इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों से आये हुए आदिवासी समूह अपना नृत्य एवं गायन तो प्रस्तुत करेंगे ही, साथ ही आदिवासी समाज की समस्या एवं अन्य समसामयिक विषयों पर विमर्श का भी कार्यक्रम रखा गया है. इस महोत्सव से आदिवासी जीवन दर्शन और लोक संस्कृति को एक अलग और विशिष्ट पहचान मिलेगी. मुख्यमंत्री ने कहा कि नृत्य, संगीत के साथ-साथ सदैव संघर्ष आदिवासी समाज की मुख्य पहचान है. उन्होने कहा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में हमारे आदिवासी भाई-बहन प्रताड़ना झेलने को विवश हैं, अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं. 

सभी आदिवासियों को एकजुट होने की अपील

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर मैं देश के 13 करोड़ से ज्यादा आदिवासियों भाइयों-बहनों से एक होकर लड़ने एवं बढ़ने का अपील करता हूं. गोंड, मुंडा, भील, कुकी, मीणा, संथाल, असुर, उराँव, चेरो आदि सभी को एकजुट होकर सोचना होगा. आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है. हम जाति-धर्म-क्षेत्र के आधार पर बंटे हुए हैं. जबकि सबकी संस्कृति एक है. खून एक है, तो समाज भी एक होना चाहिए. हमारा लक्ष्य भी एक होना चाहिए.

कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर

हेमंत सोरेन ने कहा कि लगभग सभी हिस्सों में आदिवासी समाज को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा है एवं केंद्र तथा राज्य में सरकार चाहे किन्हीं की हो आदिवासी समाज के दर्द को कम करने के लिए कभी समुचित प्रयास नहीं किये गये. कभी यह पता लगाने का काम भी नहीं किया कि कहाँ गए खदानों, डैमों, कारखानों के द्वारा विस्थापित किये गए लोग ? खदानों, उद्योगों, डैमों से विस्थापित हुए, बेघर हुए लोगों में से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं. कल का किसान आज वहां साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है. बड़े-बड़े शहरों में जाकर बर्तन धोने, बच्चे पालने या ईंट भट्ठों में बंधुआ मजदूरी करने के लिए विवश किया गया है. 

हमारे पूर्वजों ने जल, जंगल और जमीन को बचाया

मुख्यमंत्री ने कहा, कि क्या यह दुर्भाग्य नहीं है कि जिस अलग भाषा-संस्कृति-धर्म के कारण हमें आदिवासी माना गया ,उसी विविधता को आज के नीति निर्माता मानने के लिए तैयार नहीं हैं ? हम आदिवासियों के लिए अपनी जमीन- अपनी संस्कृति- अपनी भाषा बहुत महत्वपूर्ण है. आदिवासी समुदाय एक स्वाभिमानी समुदाय है, मेहनत करके खाने वाली समुदाय है, ये किसी से भीख नहीं मांगती है. हम भगवान बिरसा, एकलव्य, राणा पूंजा की समुदाय के हैं. हम इस देश के मूल वासी हैं. हमारे पूर्वजों ने ही जंगल बचाया, नदियां बचाई, पहाड़ बचाया है.
 

 

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