जल्द ही लोकसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हो जाएगा. ऐसी खबरें हैं कि कांग्रेस ने अपने सभी 17 उम्मीदवारों की लिस्ट तैयार कर ली है. कहा जा रहा है कि वाराणसी से एक बार फिर कांग्रेस वाराणसी से प्रदेश अध्यक्ष अजय राय को टिकट दे सकती है. अगर ऐसा होता है तो इस बार के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अजय राय के बीच में मुकाबला देखने को मिल सकता है. अजय राय वह नाम है जो किसी समय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े रहे हैं. साल 2014 में उन्होंने पहली बार कांग्रेस के टिकट पर वाराणसी से चुनाव लड़ा था.
अजय राय वाराणसी में नरेंद्र मोदी के खिलाफ दो लोकसभा चुनाव लड़ने से पहले हिंदू राष्ट्रवादी संगठन (आरएसएस) की छात्र शाखा के साथ अपना करियर शुरू किया था. अगस्त 2023 में कांग्रेस ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष नियुक्ति किया था. साल 2012 में वह कांग्रेस से जुड़े थे. राय, वाराणसी से पांच बार विधायक रह चुके हैं. 54 वर्षीय राय उच्च जाति भूमिहार समुदाय से हैं. हालांकि भूमिहार यूपी के समग्र जाति के गणित में महत्वहीन है. लेकिन वाराणसी के आसपास के जिलों में राजनीतिक महत्व है और 'जाति अस्मिता' या जाति गौरव की एक मजबूत भावना है.
जिस समय कांग्रेस ने अजय राय ने उन्हें यूपी कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया था, उस समय पार्टी ने कहा था कि राय को केवल जातिगत गणना के बजाय उनके व्यक्तिगत रिकॉर्ड और प्रभाव के कारण इस पद के लिए चुना गया था. यूपी में पार्टी को ऐसा व्यक्ति चाहते हैं जो सड़कों पर लड़ सके. पार्टी के मुताबिक उन्हें ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो सीधे तौर पर पीएम मोदी के खिलाफ लड़ सकें. साथ ही वह यह संकेत भी देना चाहती थी कि पार्टी की लड़ाई सीधे तौर पर बीजेपी के खिलाफ है.
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ब्रज लाल खबरी की तरह राय भी कांग्रेस में बाहर से आए हुए इंसान थे. खबरी, जालौन से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के पूर्व सांसद थे. कांग्रेस में शामिल होने से पहले राय का भाजपा के साथ पुराना रिश्ता था. उन्हें पिछले साल पूर्वी यूपी में पार्टी का प्रांतीय अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. वाराणसी में काशी विद्यापीठ से ग्रेजुएट राय ने साल 1991-92 में आरएसएस-बीजेपी की स्टूडेंट विंग एबीवीपी के संयोजक के रूप में अपना करियर शुरू किया. राय ने राम जन्मभूमि आंदोलन में भाग लिया और यहां तक कि उन्हें कानून की निवारक धाराओं के तहत वाराणसी जिला जेल में भी रखा गया.
अजय राय 1996 में जोरदार तरीके से चुनावी राजनीति में प्रवेश किया. उन्होंने कोलास्ला सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नौ बार के विधायक उदल को हराया. साल 2002 में उन्होंने कोलासला विधानसभा क्षेत्र से फिर से जीत हासिल की थी. कुछ महीने बाद उन्हें मायावती के नेतृत्व वाली बसपा-बीजेपी गठबंधन सरकार में सहकारिता राज्य मंत्री के रूप में मंत्री पद से पुरस्कृत किया गया. साल 2007 में तीसरी विधानसभा जीत के बाद, यह महसूस करते हुए कि पार्टी ने वादा करने के बावजूद अनुभवी नेता मुरली मनोहर जोशी को वाराणसी से लोकसभा उम्मीदवार के रूप में चुना था. साल 2009 में उन्होंने इस बात से नाराज होकर बीजेपी छोड़ दी थी.
कांग्रेस के साथ राय का सफर साल 2012 में शुरू हुआ था. उस समय उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव लड़ा था. कांग्रेस ने साल 2014 में बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को वाराणसी में रोकने के लिए राय को चुना था. इस बेहद चर्चित मुकाबले में अरविंद केजरीवाल दूसरे उम्मीदवार थे. राय के नामांकन से उनका कद ऊंचा हो गया. हालांकि, चूंकि मुकाबला मोदी और केजरीवाल के बीच सिमट गया था, इसलिए उन्हें तीसरे स्थान पर रहना पड़ा. साल 2019 में भी ऐसा ही हुआ जब सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार मोदी के खिलाफ उपविजेता बन गए, जिन्होंने भारी अंतर से जीत हासिल की.
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