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छुट्टा जानवरों का आतंक बना चुनावी मुद्दा, यूपी के इन दो जिलों के किसान सबसे ज्यादा नाराज

छुट्टा जानवरों का आतंक बना चुनावी मुद्दा, यूपी के इन दो जिलों के किसान सबसे ज्यादा नाराज

2019 पशुधन जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 1.90 करोड़ से अधिक मवेशी हैं, जिनमें 62,04,304 दुधारू गायें और 23,36,151 सूखी गायें शामिल हैं. 2012 में पिछली जनगणना की तुलना में 2019 में स्वदेशी मादा मवेशियों की आबादी में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई. 2012 से 2019 तक विदेशी और क्रॉस-ब्रेड मवेशियों की आबादी में 26.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

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यूपी में आवारा पशु से किसान परेशान. (सांकेतिक फोटो) यूपी में आवारा पशु से किसान परेशान. (सांकेतिक फोटो)

उत्तर प्रदेश में आवारा पशु किसानों के लिए सर दर्द बन गए हैं. ये आवारा पशु झुंड बनाकर खेतों में घुस जाते हैं और फसलों को कुछ ही घंटों में चट कर जाते हैं. इससे किसानों को बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. वहीं, कई बार तो ये पशु लोगों के ऊपर हमले भी कर देते हैं. उत्तर प्रदेश में आवारा पुशओं के हमले में कई लोगों की मौत भी हो गई है. लेकिन इसके बावजूद भी अभी तक इन पशुओं को नियंत्रित करने के लिए सरकार की तरफ से कोई समाधान नहीं निकाला गया. ऐसे में किसानों ने इस लोकसभा चुनाव में आवारा पशुओं को ही मुद्दा बनाया है.

हाथरस के पिलखना गांव में खेतीहर मजदूर केशव कुमार का कहना है कि एक बार आवारा पशु ने उनके ऊपर हमला कर दिया था. उनकी पीठ पर चोट लगी थी और एक हफ्ते तक वे अस्पताल में भर्ती रहे थे. इसके अलावा कई बार गायों और नीलगाय ने उनका पीछा किया है. फिरोजाबाद के अकिलाबाद गांव के किसान धर्मेंद्र सिंह का कहना है कि मेरे खेत में आवारा मवेशियों के घुसने के कारण मेरी 30 प्रतिशत उपज बर्बाद हो गई. धर्मेंद्र सिंह का कहना है कि बेमौसम बारिश है और आवारा मवेशी किसानों के लिए सर दर्द बन गए हैं.

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आवारा पशु बना चुनावी मुद्दा

खास बात यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आवारा पशु एक चुनावी मुद्दा बनते जा रहा है. कुमार नाम के एक किसान ने कहा है कि मैंने पिछले दो आम चुनावों में बीजेपी को यह सोचकर वोट दिया था कि इस समस्या का समाधान हो जाएगा. लेकिन यह समस्या अभी तक अनसुलझी हुई है. इसलिए मैंने विधानसभा चुनाव में उन्हें वोट नहीं दिया और इस बार एसपी को वोट देने की योजना बना रहा हूं. उनका कहना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांवों में आवारा मवेशियों को घूमते हुए देखना बहुत आम हो गया है और नष्ट हुई फसलों को भी देखना आम बात हो गई है.

फसलों की हो रही बर्बादी

वहीं, अकिलाबाद के किसान सिंह ने कहा कि कुछ किसान राज्य सरकार के उस फैसले से नाराज हैं, जिसमें खेतों की बाड़ लगाने के लिए कंटीले तारों का इस्तेमाल नहीं करने की बात कही गई है. अब, अधिकांश किसान खेतों की बाड़ लगाने के लिए सादे तारों या साड़ी या दुपट्टे का उपयोग करते हैं. हालांकि, इससे कोई फायदा नहीं हुआ है. आवारा मवेशी खेतों में घुसकर फसलों को बर्बाद कर रहे हैं.

एक किसान ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि आवारा पशुओं की समस्या ने किसानों की आर्थिक परेशानियों को भी बढ़ा दिया है, क्योंकि उन्हें नहीं पता कि उन गायों का क्या किया जाए जिन्होंने दूध देना बंद कर दिया है. पहले, हम डाउन पेमेंट के 10-20 प्रतिशत के बदले में पुरानी गाय दे देते थे और नई ले लेते थे. लेकिन नई नीति से यह भी संभव नहीं है. हमारे पास या तो उन्हें अवैध रूप से बेचने या उन्हें छोड़ देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

राजनीतिक दलों ने साधी चुप्पी

वहीं, जैसे- जैसे उत्तर प्रदेश में चुनावी उत्साह बढ़ता जा रहा है कि वैसे-वैसे ग्रामीण क्षेत्रों में आवारा पशु भी राजनीतिक मुद्दा बनते जा रहा है. जैसे-जैसे मतदान का दिन नजदीक आ रहा है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मतदाता इस बात पर उत्सुकता से नजर रख रहे हैं कि चुनाव मैदान में उतरे विभिन्न उम्मीदवार आवारा मवेशियों की समस्या से निपटने के लिए किस तरह का प्रस्ताव रखते हैं. अब तक, राजनीतिक दलों द्वारा इस मुद्दे पर चुप्पी साधने के कारण उनके पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं है.

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7 मई को हाथरस में मतदान

समाजवादी पार्टी (सपा) के एक पदाधिकारी ने बताया कि आवारा मवेशियों की समस्या का मुद्दा बहुत संवेदनशील है.उन्होंने कहा कि यह यहां एक बड़ा मुद्दा है और अगर हम सत्ता में आए तो हम इस पर गंभीरता से विचार करेंगे. सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनाव के तीसरे दौर में 7 मई को हाथरस और फिरोजाबाद में मतदान होना है.