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Lok Sabha Election 2024: जातिवादी राजनीति के बीच बिहार के किसान कर रहे MSP की बात, मुद्दा गरम देख पार्टी ने बदले प्रत्याशी 

Lok Sabha Election 2024: जातिवादी राजनीति के बीच बिहार के किसान कर रहे MSP की बात, मुद्दा गरम देख पार्टी ने बदले प्रत्याशी 

लोकसभा के चुनावी समर के बीच अब बिहार के किसान एमएसपी से लेकर फसल के उचित मुआवजे की भी बात कर रहे हैं. वहीं कई पार्टियों ने स्थानीय स्तर पर किसानों से जुड़े मुद्दे देख अपने प्रत्याशी तक बदल दिए हैं. 

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बिहार में लोकसभा चुनाव 2024 बिहार में लोकसभा चुनाव 2024

इन दिनों गर्मी का पारा काफी तेजी से बढ़ रहा है. इसके साथ ही चुनावी पारा भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है. इस बढ़ते घटते तापमान के बीच किसान भी अपने मुद्दों के साथ मतदान करने का निर्णय लेते हुए नज़र आ रहे हैं. पिछले कई सालों के चुनाव के दौरान किसान उन्हीं मुद्दों के साथ वोट करते आ रहे हैं जो पक्ष या विपक्ष के नेताओं द्वारा तय किया गया है. हालांकि इस बार के चुनाव में किसान अपनी फसलों से लेकर कृषि के क्षेत्र में बेहतर सुविधाओं को लेकर खुलकर बात कर रहे हैं. वहीं कुछ पार्टी तो किसानों की नाराजगी की वजह से अपने कैंडिडेट तक बदल दिए हैं. बिहार में किसान की नाराज़गी का एक मिला जुला असर बक्सर संसदीय क्षेत्र में देखने को मिला है. यहां बीजेपी ने अपने कैंडिडेट को ही बदल दिया. चौसा थर्मल पावर प्लांट मामले में उचित मुआवजे की बात कर रहे किसानों पर लाठीचार्ज का दर्द भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने नजदीक से समझते हुए इस बार कैंडिडेट को ही बदल दिया.

 पहली बार हुआ लोक सभा चुनाव के दौरान बक्सर में किसान महापंचायत का आयोजन.
बक्सर में किसान महापंचायत का आयोजन.

इस साल के चुनाव में बदलाव को लेकर जानकारों का कहना है कि इसका कनेक्शन किसान आंदोलन से जुड़ा हुआ है. वहीं कुछ किसान तेजी से बदल रहे तकनीक को मान रहे हैं. बिहार के कैमूर जिले के 30 वर्षीय लखनलाल निषाद वैसे तो बड़े पैमाने पर सब्जी की खेती करते हैं. लेकिन इनका कहना है कि कोई भी सरकार आए, उसे बिहार में मंडी कानून और देश स्तर पर एमएसपी कानून को लेकर सोचना होगा. हालांकि बातचीत के क्रम में अपने वोट देने को लेकर कहते हैं कि जो हमारे समाज के बारे में सोचेगा, उसे ही मतदान किया जाएगा. वैसे भी बिहार में जातीय समीकरण की कुंजी जिस नेता के पास है, उसके लिए सांसद और विधायक बनने की राह थोड़ी आसान हो जाती है. हालांकि इस लोक सभा चुनाव में जातीय समीकरण के बीच खेती और किसानी को लेकर एक नया चुनावी समीकरण बनता हुआ नजर आ रहा है. 

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कृषि सामानों का बढ़ रहा है दाम

चुनावी समर के बीच अब बिहार के किसान एमएसपी से लेकर फसल के उचित मुआवजे की भी बात कर रहे हैं. बदलाव के इस दौर में अब किसानों से लेकर ग्रामीण क्षेत्र के लोग इस बात का विशेष ध्यान दे रहे हैं कि उनका नेता उनके बीच कितना पहुंच रहा है. बक्सर संसदीय क्षेत्र के रामगढ़ विधानसभा के रहने वाले किसान राजेश सिंह और रामाशंकर सिंह गेहूं की कटाई करते हुए कहते हैं कि खेती में लागत के अनुपात में दाम नहीं मिल रहा है. अगर सरकार सम्मान निधि का छह हज़ार रुपए पूरे साल में देती है, तो उसके अनुपात में उर्वरक, बीज सहित खेती से जुड़े अन्य सामान का दाम भी बढ़ा है. इसलिए अब कोई भी सरकार बने, उसे हमारी फसलों के दाम को लेकर सोचना होगा. बिहार में मंडी कानून लागू करने के बारे में सोचना होगा. जो पार्टी इसकी बात करेगी, हम उसे ही वोट करेंगे. 

बक्सर लोक सभा सीट पर स्थानीय स्तर पर किसान आंदोलन बना हुआ है मुद्दा
बक्सर में किसान आंदोलन है मुद्दा

पार्टी ने बदल दिए अपने प्रत्याशी

बिहार की राजनीति में अपनी बेहतर पकड़ रखने वाले सीनियर पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि इस लोक सभा चुनाव में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों के बीच किसानों से जुड़े मुद्दे भी देखने को मिल रहे हैं. उदाहरण के तौर पर बक्सर संसदीय क्षेत्र को ले सकते है. यहां लड़ाई बीजेपी और आरजेडी से है. इस बार दोनों ही प्रत्याशी नए हैं. बक्सर के चौसा थर्मल पावर प्लांट मामले में किसानों पर हुए लाठीचार्ज की चोट को बीजेपी ने बखूबी तरीके से समझा है. शायद अन्य मुद्दों के बीच बक्सर से अश्विनी चौबे की सीट कटने की एक मुख्य वजह चौसा का किसान आंदोलन भी हो सकता है. यहां एनडीए ने बीजेपी के मिथिलेश तिवारी को मैदान में उतारा है. वहीं किसानों के मुद्दों को लेकर प्रखर रहने वाले और कृषि मंत्री के पद से इस्तीफा देने वाले सुधाकर सिंह को इंडिया गठबंधन ने टिकट दिया है. हालांकि चौसा मामले में किसानों पर लाठीचार्ज के दौरान पहली बार जेडीयू के साथ आरजेडी तो दूसरी बार बीजेपी और जेडीयू की राज्य में सरकार रही है. इसलिए किसानों की नाराजगी दोनों पार्टियों से है. 

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क्षेत्रीय पार्टियों की क्या है घोषणा 

वैसे पहली बार हुआ है कि लोकसभा चुनाव के दौरान बक्सर में किसान महापंचायत का आयोजन किया गया. यहां राज्य के कई जिलों के किसान अपनी स्थानीय मांगों के साथ फसलों के उचित दाम और चीनी मिल शुरू करने की बात करते हुए नजर आए. वहीं बिहार में किसानों के बढ़ते विरोध और उनकी मांग को लेकर आरजेडी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में दस फसलों की खरीद एमएसपी पर करने की बात कही. इसके साथ ही स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करने की बात भी कही. जहां कभी चुनाव में जाति की बात और बुनियादी मुद्दों से हटकर व्यक्तिगत कटाक्ष का दौर चलता था. अब बदलते समय में किसानों को लेकर भी बात की जा रही है.